शनिवार, 1 अप्रैल 2017

क्यों दिया ऋषि दुर्वासा ने महादेव को श्राप

क्यों दिया ऋषि दुर्वासा ने महादेव को श्राप

यह कथा उसे समय आरम्भ होती है जब माता पारवती अपनी तपस्या पूर्ण कर अपने विवाह के उत्सव में लगी थी और उधर कैलाश पर वर यात्रा  सजाने का  उत्सव मान्य जा रहा था ! जिसमे सभी देवता  ऋषि मुनि सभी जन महादेव के वर यात्रा   का उत्सव मना रहे थे ! उस उत्सव में सभी देवता आपसी भेद भाव को भुला कर महादेव के विवाह की ख़ुशी में नाच गा  रहे थे ! उस उत्सव में पहले महादेव  का भसम से फिर जल से फिर दूध से अभिषेक किया गया और फिर महादेव को उनकी प्रिय भांग का भोग लगाया गया और वही  भोग का पार्षद सभी को दिया गया ! जिसे  उस उत्सव में और भी हर्ष उल्लास का महौल बन गया और सभी खूब विवाह उत्सव का आनंद लेने लगी और नाचने गाने लगे ! तभी उस उत्सव में ऋषि दुर्वासा भी पहोचे ! दुर्वासा हिंदुओं के एक महान ऋषि हैं। वे अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं। दुर्वासा सतयुग, त्रैता एवं द्वापर तीनों युगों के एक प्रसिद्ध सिद्ध योगी महर्षि हैं। वे महादेव शंकर के अंश से आविर्भूत हुए हैं। कभी-कभी उनमें अकारण ही भयंकर क्रोध भी देखा जाता है। वे सब प्रकार के लौकिक वरदान देने में समर्थ हैं। जब ऋषि दुर्वासा महादेव में दर्शन करने गए तोह महादेव के गण  ने ऋषि दुर्वासा से अभदरव  वव्यहार किया तब उन्होंने क्रोधित हो कर कहा मूरखु घोर दुराचार घोर दुराचार हो रहा है ! शिव विवाह के उनमान में तुम सब की बुद्धि भ्रष्ट कर दी  तुम सब ने मेरा घोर अपमान किया है घोर अपमान तुम सब के इसे आभद्रव व्यवहार के लिए मैं ऋषि दुर्वासा तुम सबको श्राप देता हूँ  के तुम्हारा यह करूप रूप को देख कर कन्यापक्ष केलोग मूर्छित हो जाएगे और महादेव का  इस वैरागी  रूप में कभी विवाह नही होगा ! तब देव ऋषि नारद ने उनको उनके श्राप का बोध करवाया और खा यह आपने क्या कर दिया तब उन्हें अपनी गलती का बोध हुआ और महादेव से शमा मांगी ! तब नारायण भगवन ने उन्हें समझया के आपके नाम का अर्थ ही आपके नाम की परवर्ति को निर्धारित करता है ! आज यहाँ जो कुछ भी हुआ है वो विधि कर विधान था ! इसका समाधान भी विधि द्वारा ही  होगा इसे लिए सभी अतिथिगण  वर यात्रा की  तैयारी करे