मंगलवार, 30 मई 2017

महामृत्युंजय मंत्र










शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ्य देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय मंत्र के जरिए किया जाता है। इस मंत्र के जाप से भगवान शिव की कृपा मिलती है।

शास्त्रों में इस मंत्र को कई कष्टों का निवारक बताया गया है। यह मंत्र यों हैं : ओम् त्र्यम्बकं यजामहे, सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

भावार्थ : हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, उसी उसी तरह से जैसे एक खरबूजा अपनी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है।

मनसा देवी मंदिर







मनसा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो चंडीगढ़ शहर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी मनसा देवी को समर्पित है जो ऋषी कश्यप के दिमाग की उपज है। कश्यप ऋषी प्राचीन वैदिक समय में एक महान ऋषी थे। मनसा देवी, सापों के राजा नाग वासुकी की पत्नी हैं। यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्व पर्वत पर स्थित है और इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियाँ हैं।
एक मूर्ती की पांच भुजाएं एवं तीन मुहं है एवं दूसरी अन्य मूर्ती की आठ भुजाएं हैं। 52 शक्तिपीठों(हिंदू देवी सती या शक्ति की पूजा किये जाने वाले स्थल) में से एक यह मंदिर सिद्ध पीठ त्रिभुज के चरम पर स्थित है। यह त्रिभुज माया देवी, चंडी देवी एवं मनसा देवी मंदिरों से मिलकर बना है।
इस मंदिर में भ्रमण के दौरान भक्त एक पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधते हैं एवं भगवान् से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद वृक्ष से इस धागे को खोलना आवश्यक है।

शनिवार, 27 मई 2017

कार्तिक मास की पूर्णिमा






कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था। त्रिपुरों का नाश करने के कारण ही भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी भी प्रसिद्ध है। भगवान शिव ने कैसे किया त्रिपुरों का नाश, ये पूरी कथा इस प्रकार है
शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।
तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।
अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।

बुधवार, 10 मई 2017

रूपवान की सम्पूर्ण परिभाषा क्या है ?




एक शिशु जो संसार के मापदंड के अनुसार कुरूप होता है किन्तु वो अपनी वो माता के लिए संसार में सबसे सुन्दर शिशु होता है ! तो इसमें सही क्या है संसार का दृष्टिकोण या माँ का भरी सुंदरता का माप दंड प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन होता है तो इसका चुनाव कैसे हो क्या सुन्दर है क्या नही ! माता पिता को एक बात अवशय समझ लेनी चाइये शारीरिक सुंदरता से अधिक मन की सुंदरता का होता है ! इस नशवर शरीर का रूप समय के साथ ढलने लगता है किन्तु मन की सुंदरता सास्वत है.