सोमवार, 13 नवंबर 2017

महामृत्युंजय मंत्र कथा

निरंजन निराकर महेश्वर ही एक मात्र महादेव है जो मृत्यु के मुख में गए हुए प्राण को बल पूर्वक निकलकर उसकी रक्षा करते है ! मर्काण्ड ऋषि का पुत्र मार्कण्डेय अलप आयु था ! ऋषियों ने उसे शिव मंदिर में जा कर महामृत्युंजय मंत्र की सममिति प्रदान की ! मार्कण्डेय ऋषियों के वचनो में श्रद्धा रख कर शिव मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र के जाप का यथा विधि जाप करने लगे ! समय पर यमराज आए किन्तु मृतुन्जय की शरण में गए हुए को कौन छू सकता है ! यमराज लौट गए ! मार्कण्डेय ने दीर्घ आयु पाई और मार्कण्डेय ने मार्कण्डेय पुराण की रचना भी की!

ॐ मृतुन्जय महादेव तर्हिमान शरणागता
जन्म मृत्यु जरा रो गई पिडिदम कर्मबंदनी


हे मृतुन्जय महादेव मैं सांसारिक दुविधा में फसा हुआ हूँ रोग और मृत्यु मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे है मैं आपकी शरण में हूँ मेरी रक्षा कीजिये!

महामृत्युंजय मंत्र महा मंत्र  है जिसकी यथा विधि प्रयाण से  व्यक्ति पापो से छूट कर सुख समृद्धि प्राप्त करता है! इस लोक में न न प्रकार के कष्टों से मृत्यु भय से मुक्त हो कर सम्पत रिद्धि सीधी को प्राप्त करने का सरल उपाय महामृत्युंजय मंत्र ही है!

शनिवार, 11 नवंबर 2017

मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग




कथा के अनुसार भगवान शंकर के दोनों पुत्रों में आपस में इस बात पर विवाद उत्पन्न हो गया कि पहले किसका विवाह होगा. जब श्री गणेश और श्री कार्तिकेय जब विवाद में किसी हल पर नहीं पहुंच पायें तो दोनों अपना- अपना मत लेकर भगवान शंकर और माता पार्वती के पास गए.

अपने दोनों पुत्रों को इस प्रकार लडता देख, पहले माता-पिता ने दोनों को समझाने की कोशिश की. परन्तु जब वे किसी भी प्रकार से गणेश और कार्तिकेयन को समझाने में सफल नहीं हुए, तो उन्होने दोनों के समान एक शर्त रखी. दोनों से कहा कि आप दोनों में से जो भी पृ्थ्वी का पूरा चक्कर सबसे पहले लगाने में सफल रहेगा. उसी का सबसे पहले विवाह कर दिया जायेगा. 

विवाह की यह शर्त सुनकर दोनों को बहुत प्रसन्नता हुई. कार्तिकेयन का वाहन क्योकि मयूर है, इसलिए वे तो शीघ्र ही अपने वाहन पर सवार होकर इस कार्य को पूरा करने के लिए चल दिए. परन्तु समस्या श्री गणेश के सामने आईं, उनका वाहन मूषक है., और मूषक मन्द गति जीव है. अपने वाहन की गति का विचार आते ही श्री गणेश समझ गये कि वे इस प्रतियोगिता में इस वाहन से नहीं जीत सकते. श्री गणेश है. चतुर बुद्धि, तभी तो उन्हें बुद्धि का देव स्थान प्राप्त है, बस उन्होने क्या किया, उन्होनें प्रतियोगिता जीतने का एक मध्य मार्ग निकाला और, शास्त्रों का अनुशरण करते हुए, अपने माता-पिता की प्रदक्षिणा करनी प्रारम्भ कर दी. 

शास्त्रों के अनुसार माता-पिता भी पृ्थ्वी के समान होते है. माता-पिता उनकी बुद्धि की चतुरता को समझ गये़. और उन्होने भी श्री गणेश को कामना पूरी होने का आशिर्वाद दे दिया.

 शर्त के अनुसार श्री गणेश का विवाह सिद्धि और रिद्धि दोनों कन्याओं से कर दिया गया. पृ्थ्वी की प्रदक्षिणा कर जब कार्तिकेयन वापस लौटे तो उन्होने देखा कि श्री गणेश का विवाह तो हो चुका है. और वे शर्त हार गये है. श्री गणेश की बुद्धिमानी से कार्तिकेयन नाराज होकर श्री शैल पर्वत पर चले गये़ श्री शैल पर माता पार्वती पुत्र कार्तिकेयन को समझाने के लिए गई और भगवान शंकर भी यहां ज्योतिर्लिंग के रुप में अपनी पुत्र से आग्रह करने के लिए पहुंच गयें. 

उसी समय से श्री शैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग की स्थापना हुई, और इस पर्वत पर शिव का पूजन करना पुन्यकारी हो गया.