गुरुवार, 28 मार्च 2019

कैसे हो घर के मंदिर में देवी देवताओं की तस्वीरे और मूर्तियाँ


प्राय सभी हिन्दुओ के घरो में पूजा घर होता है | उसमे वे अपने आराध्य देवी देवताओ की मूर्ति और तस्वीर रखते है | पर कुछ बाते ऐसी है जो घर के मंदिर में ध्यान रखने योग्य होती है जिससे की पूजा का पूर्ण फल आपको मिले | कुछ मुर्तिया या तस्वीर ऐसी भी बताई गयी है जो आपको लाभ की जगह प्रतिकूल फल दे सकती है | आज हम यही विस्तार से जानेंगे की वास्तु के अनुसार घर के मंदिर में मूर्तियाँ कैसी हो |

1. कृष्ण मूर्ति
घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की बाल रूप में बैठी हुई मूर्ति रखना उत्तम माना जाता है । कई घरो में लड्डू गोपाल जी स्थापना करके बच्चे की तरह उनका लालन पालन किया जाता है | इसके अलावा मंदिर में कृष्ण राधा की मूर्ति या तस्वीर भी आप लगा सकते है जो खड़ी अवस्था में हो |

2. गणेश
गणेश जी नृत्य करती प्रतिमा या सिंदूरी रंग की मूर्ति रखना अच्छा माना जाता है | इन्हे आप पीले या केसरिया रंग के वस्त्र पहना के रखे |

3. बैठी अवस्था में
पूजा घर में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और धन के देवता कुबेर की मूर्ति बैठी अवस्था में होनी चाहिए। इन देवताओ का खड़ा रहना घर में इनका स्थाई निवास नही करवाता |

4. भगवान शिव
घर में आप शिव प्रतिमा या फिर रोज जल अभिषेक कर पूजा कर सके तो घर में शिवलिंग की स्थापना करना अच्छा माना जाता है | सबसे अच्छा पारद शिवलिंग को माना गया है |

5. राम दरबार :
परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम के लिए घर में राम दरबार की फोटो का होना अति शुभ माना जाता है जिसमे हनुमान जी राम के चरणों में बैठे हुए हो |

6. दक्षिण मुखी हनुमान
घर में एक पंचमुखी हनुमान जी की फोटो दक्षिण दिशा को देखती हुई लगानी चाहिए | दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यमराज की दिशा बताया जाता है | यदि इस दिशा की तरफ दक्षिणमुखी हनुमान की फोटो होगी तो अकाल मृत्यु से परिवार के सदस्य बचे रहेंगे |

7. भगवान सूर्य की प्रतिमा को घर में लगाना है तो ध्यान रखे यदि सूर्य प्रतिमा ताम्बे की बनी हो तो ज्यादा प्रभावशाली मानी जाती है |

8. विष्णु जी की प्रतिमा घर के मंदिर में हमेशा देवी माँ लक्ष्मी के साथ लगाये क्योकि विष्णु जी तभी घर में कृपा करेंगे जब उनकी जीवनसंगिनी लक्ष्मी जी की फोटो या मूर्ति भी स्थापित हो |

9. तामसिक देवी देवता :
माना जाता है कि तामसिक देवता जैसे काल भैरव , माँ काली , छिन्मस्तिका , बगलामुखी आदि की फोटो या तस्वीर घर में स्थापित नही करे | ये सभी रूद्र देवी देवता है और यदि इन्हे विधि विधान से पूजा अर्चना ना मिले तो जल्दी ही रुष्ट हो जाते है | अगर आप फिर भी रखना चाहते हैं आप किसी गुरु या ज्ञानी की राय लें।

बुधवार, 13 मार्च 2019

भगवान शिव के सामने ही क्यों होती हे नंदी की प्रतिमा



पुराणों में यह कथा मिलती है कि शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने अपनी चिंता उनसे व्यक्त की। शिलाद निरंतर योग तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान माँगा। इंद्र ने इसमें असर्मथता प्रकट की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब शिलाद ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया और उनके ही समान मृत्युहीन तथा दिव्य पुत्र की माँग की।

भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन वरदान दिया- वत्स नंदी! तुम मृत्यु से भय से मुक्त, अजर-अमर और अदु:खी हो। मेरे अनुग्रह से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी से भी भय नहीं होगा।

भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर का वरदान है कि जहाँ पर नंदी का निवास होगा वहाँ उनका भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है।

शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक है। नंदी का एक संदेश यह भी है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की दृष्टि शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी दृष्टि भी आत्मा की ओर होनी चाहिये। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी यह संकेत देता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही सामान्य भाषा में मन का स्वच्छ होना कहते हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाते हुए मनुष्य अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।

धर्म शास्त्रों में उल्लेख है कि जब शिव अवतार नंदी का रावण ने अपमान किया तो नंदी ने उसके सर्वनाश को घोषणा कर दी थी। रावण संहिता के अनुसार कुबेर पर विजय प्राप्त कर जब रावण लौट रहा था तो वह थोड़ी देर कैलाश पर्वत पर रुका था। वहाँ शिव के पार्षद नंदी के कुरूप स्वरूप को देखकर रावण ने उसका उपहास किया। नंदी ने क्रोध में आकर रावण को यह श्राप दिया कि मेरे जिस पशु स्वरूप को देखकर तू इतना हँस रहा है। उसी पशु स्वरूप के जीव तेरे विनाश का कारण बनेंगे।

नंदी का एक रूप सबको आनंदित करने वाला है। सबको आनंदित करने के कारण ही भगवान शिव के इस अवतार का नाम नंदी पड़ा। शास्त्रों में इसका उल्लेख इस प्रकार है-

त्वायाहं नंन्दितो यस्मान्नदीनान्म सुरेश्वर।
तस्मात् त्वां देवमानन्दं नमामि जगदीश्वरम।।
-शिवपुराण शतरुद्रसंहिता ६/४५

अर्थात नंदी के दिव्य स्वरूप को देख शिलाद मुनि ने कहा तुमने प्रगट होकर मुझे आनंदित किया है। अत: मैं आनंदमय जगदीश्वर को प्रणाम करता हूं।

नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है जिसमें नंदी नहीं है। अपनी तरह का यह एक अकेला शिवमंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि कपालेश्वर महादेव मंदिर नामक इस स्थल पर किसी समय में भगवान शिवजी ने निवास किया था। यहाँ नंदी के अभाव की कहानी भी बड़ी रोचक है। यह उस समय की बात है जब ब्रह्मदेव के पाँच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पाँचवाँ निंदा करता था। उस निंदा से संतप्त शिवजी ने उस मुख को काट डाला। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे लेकिन उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला। एक दिन जब वे सोमेश्वर में बैठे थे, तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। कथा में बताया गया है कि यह बछड़ा नंदी था। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गया और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ति हुई थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया।

आज भी माना जाता है कि पुरातन काल में इस टेकरी पर शिवजी की पिंडी थी। अब तक वह एक विशाल मंदिर बन चुकी है। पेशवाओं के कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर की सीढि़याँ उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती नजर आती है। उसी में प्रसिद्ध रामकुंड है। भगवान राम में इसी कुंड में अपने पिता राजा दशरथ के श्राद्ध किए थे। इसके अलावा इस परिसर में काफी मंदिर है। लेकिन इस मंदिर में आज तक कभी नंदी की स्थापना नहीं की गई।