मंगलवार, 24 सितंबर 2019

कौन सी समस्याओं से रक्षा करते हैं हनुमानजी!



ज्योतिष की मानें तो घटना-दुर्घटना को राहु-केतु और शनि अंजाम देते हैं। हनुमानजी आपको सभी तरह की घटना और दुर्घटना से बचा लेते हैं। इसके लिए आप सदा उनकी शरण में रहकर प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ते रहें। कभी कभी सुंदरकांड भी पढ़ें और बजरंग बाण भी।

हनुमान जी का शाबर मंत्र अत्यंत ही सिद्ध मंत्र है। इसके प्रयोग से हनुमानजी तुरंत ही आपके मन की बात सुन लेते हैं। यह मंत्र आपके जीवन के सभी संकटों और कष्टों को तुरंत ही चमत्कारिक रूप से समाप्त करने की क्षमता रखता है। हनुमानजी के कई शाबर मंत्र हैं तथा अलग-अलग कार्यों के लिए हैं।

मंगल दोष :
बहुत से लोग मंगलदोष के भय से ग्रसित हैं। ऐसा माना जाता है कि 28 वर्ष की उम्र के बाद यह दोष समाप्त होना शुरू हो जाता है। मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिंदूर से हनुमानजी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है। इसके अलावा लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल का अमंगल दूर होता है।

कर्ज से मुक्ति :
यदि किसी कारणवश आप कर्ज में डूब गए हैं या कर्ज से परेशान हैं तो हनुमान भक्ति से कर्ज से छुटकारा पा सकते हैं। कर्ज से मुक्त होना आसान नहीं लेकिन कठिन भी नहीं। हनुमानजी की कृपा हुई तो तुरंत ही इससे मुक्त हो जाएंगे।

मंगलवार का दिन हनुमानजी का माना जाता है। यह दिन कर्ज से मुक्ति के लिए सबसे उत्तम है। यदि किसी से कर्ज लिया है तो उसे मंगलवार के दिन चुकाने के बारे में सोचे। मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करके हनुमान मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।

* मंगलवार को इन चीजों के प्रयोग व दान का विशेष महत्व है- तांबा, मतान्तर से सोना, केसर, कस्तूरी, गेहूं, लाल चंदन, लाल गुलाब, सिन्दूर, शहद, लाल पुष्प, शेर, मृगछाला, मसूर की दाल, लाल कनेर, लाल मिर्च, लाल पत्थर, लाल मूंगा।

* आटे के बने दीपक को बढ़ के पत्ते पर रखकर जलाएं। ऐसे पांच पत्तों पर पांच दीपक रखें और उसे ले जाकर हनुमानजी के मंदिर में रख दें। ऐसा कम से कम 11 मंगलवार को करें।

* शुक्लपक्ष के किसी मंगलवार की रात को हनुमानजी के मंदिर में दो दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें।

नौकरी और रोजगार :
आप बेरोजगार है या आपका व्यापार नहीं चल रहा है तो आप मंदिर में मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करें। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और प्रति मंगालवार को हनुमानजी के मंदिर जाएं। हो सके तो पांच शनिवार को हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। यदि यह संभाव नहीं हो तो पांच बार कभी भी किसी भी शनिवार को चोला चढ़ाएं।

चिंता :
बहुत से लोगों को अनावश्यक भय और चिंता सताती रहती है जिसके कारण वे तनाव में रहने लगते हैं। तनाव में रहने की आदत भी हो जाती है जिसके चलते व्यक्ति कई तरह के रोग से भी घिर सकता है।

ऐसे व्यक्ति को मन ही मन हनुमानजी के मंत्र 'ॐ हनुमते नम:' का जप करते रहना चाहिए। रात में सोते समय उसे 108 बार इस मंत्र का जप करके सो जाना चाहिए और सुबह उठकर नित्यकर्म से निपटने के बाद एक आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करना चाहिए। धीरे-धीरे भय, चिंता, तनाव और आशंका मिटने लगेंगे। 

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

भोलेनाथ को क्यों प्रिय है भस्म, जानेंगे तो श्रद्धा से भावुक हो जाएंगे!


आप अक्सर सोचते होंगे कि आखिर भगवान भोलेनाथ को विचित्र सामग्री ही प्रिय क्यों है। चाहे वह जहरीला धतूरा हो, गण भी उनके भूत, गले में लिपटे नागदेव. इसी तरह वे अपने तन पर भस्म रमाए रहते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके शरीर पर लिपटी सौंधी भस्म का क्या कारण है.

भगवान शिव ने अपने तन पर जो भस्म रमाई है वह उनकी पत्नी सती की चिता की भस्म थी जो कि अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत हो वहां हो रहे यज्ञ के हवनकुंड में कूद गई थी। भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत बेचैन हो गए। जलते कुंड से सती के शरीर को निकालकर प्रलाप करते हुए ब्रह्माण्ड में घूमते रहे। उनके क्रोध व बेचैनी से सृष्टि खतरे में पड़ गई।

जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। फिर भी शिव का संताप जारी रहा। तब श्री हरि ने सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर दिया। शिव ने विरह की अग्नि में भस्म को ही सती की अंतिम निशानी के तौर पर तन पर लगा लिया।

पहले भगवान श्री हरि ने देवी सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया था। जहां-जहां उनके अंग गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई। लेकिन पुराणों में भस्म का विवरण भी मिलता है।

भगवान शिव के तन पर भस्म रमाने का एक रहस्य यह भी है कि राख विरक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव चूंकि बहुत ही लौकिक देव लगते हैं। कथाओं के माध्यम से उनका रहन-सहन एक आम सन्यासी सा लगता है। एक ऐसे ऋषि सा जो गृहस्थी का पालन करते हुए मोह माया से विरक्त रहते हैं और संदेश देते हैं कि अंत काल सब कुछ राख हो जाना है।

एक रहस्य यह भी है चूंकि भगवान शिव को विनाशक भी माना जाता है। ब्रह्मा जहां सृष्टि की निर्माण करते हैं तो श्री विष्णु पालन-पोषण लेकिन जब सृष्टि में नकारात्मकता बढ़ जाती है तो भगवान शिव विध्वंस कर डालते हैं। विध्वंस यानि की समाप्ति और भस्म इसी अंत इसी विध्वंस की प्रतीक भी है। शिव हमेशा याद दिलाते रहते हैं कि पाप के रास्ते पर चलना छोड़ दें अन्यथा अंत में सब राख ही होगा।

शिव का शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम घमंड करते हैं, जिसकी सुविधा और रक्षा के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं एक दिन इसी इस भस्म के समान हो जाएगा। शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत।

कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कूपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है।

रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। मच्छर, खटमल आदि जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं।

💀 महाकाल की भस्मार्ती 💀

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर की भस्मार्ती विश्व भर में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि वर्षों पहले श्मशान भस्‍म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्‍म आरती होती थी लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है और अब कंडे की भस्‍म से आरती-श्रृंगार किया जा रहा है। वर्तमान में महाकाल की भस्‍म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने औषधियुक्त उपलों में शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर बनाई भस्‍म का प्रयोग क‌िया जाता है।

जलते कंडे में जड़ीबूटी और कपूर-गुगल की मात्रा इतनी डाली जाती है कि यह भस्म ना सिर्फ सेहत की दृष्टि से उपयुक्त होती है बल्कि स्वाद में भी लाजवाब हो जाती है। श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो वह लौकिक भस्म है।

गुरुवार, 12 सितंबर 2019

श्री गणेश चालीसा



जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥

ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥

गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥

पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥

गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥

मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुँ कौन बिधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

दोहा

श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥

सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥