सोमवार, 22 मार्च 2021

आखिर ! क्या थी हनुमान जी की उडने की गति


बचपन में जब हमारे बड़े हमें रामायण की कहानियां सुनाया करते थे तब हमें लक्ष्मण जी के बेहोश होने पर हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेने जाना व जाने का किस्सा सुनाया जाता था जिसमे संजीवनी बूटी ना मिलने पर पूरा का पूरा पर्वत उठाकर लाने वाला किस्सा रोचक लगता था। 

क्या कभी आपने यह सोचा कि उनके उड़ने की गति क्या होगी ? जिस तरह से हनुमान जी एक ही रात में श्रीलंका से हिमालय के पर्वतों पर पहुंचे ? और पहाड़ उठाकर वापस भी आ गए तो निश्चित ही उनके उड़ने की क्षमता बेहद तेज रही होगी। लेकिन कितनी तेज ? इस बात का सही सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता लेकिन फिर भी आपके मन में उठ रहे सवालों के जवाब खोजने के लिए हमने कुछ तथ्यों का सहारा लिया और गुणा भाग करके हनुमान जी की रफ्तार जानने की कोशिश की है।

अगर इसमे कोई गलती या चूक होने कि संभावना भी हो सकती है। जहां तक हमारी जानकारी है जिस वक्त लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध होने वाला था उससे ठीक पहले मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की तपस्या शुरू की थी और वह तपस्या मेघनाथ ने पूरा दिन की थी। इस पूजा की खबर जब श्रीराम व उनकी सेना को लगी तो विभीषण ने बताया कि अगर मेघनाथ की तपस्या पूर्ण हो गई तो मेघनाथ अमर हो जाएगा उसके बाद तीनों लोकों में मेघनाथ को कोई नहीं मार सकेगा। इसीलिए मेघनाथ की तपस्या किसी तरीके से भंग कर के उसे अभी युद्ध के लिए ललकारना होगा। इसके बाद हनुमान जी सहित कई वानर मेघनाथ की तपस्या भंग करने गए। उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से मेघनाथ की तपस्या भंग करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तब तक रात हो चुकी थी।

लक्ष्मण जी ने रात को ही मेघनाथ को युद्ध के लिए ललकारा, रामायण के अनुसार उस समय रात्रि का दूसरा पहर शुरु हो चुका था। दोस्तों रात्रि का पहला पहर सूर्य अस्त होते ही शुरू हो जाता है और सूर्य उदय होने के साथ ही रात्रि का अंतिम यानी चौथा पहर खत्म हो जाता है। यानी चार पहर होते हैं। इसका मतलब प्रत्येक पहर 3 घंटे का हुआ अब अगर आधुनिक काल की घड़ी के हिसाब से देखें तो लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध रात के करीब 9:00 बजे शुरू हुआ होगा। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मण जी और मेघनाथ के बीच बेहद घनघोर युद्ध हुआ था जो लगभग 1 पहर यानी 3 घंटे तक चला था उसके बाद मेघनाथ ने अपने शक्तिशाली अस्त्र का प्रयोग किया जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। लक्ष्मण जी के मूर्छित होने का समय लगभग 12:00 बजे के आसपास का रहा होगा।

लक्ष्मण जी के मूर्छित होने से समस्त वानर सेना में हड़कंप मच गया मेघनाथ ने मूर्छित लक्ष्मण को उठाने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन जो शेषनाग समस्त पृथ्वी को अपने फन पर उठा सकता था उसी शेषनाग के अवतार को भला मेघनाथ कैसे व क्या उठा पाता। लक्ष्मण जी को ना उठा पाने पर मेघनाथ वापस चला गया। श्री राम अपने प्राणों से भी प्यारे भाई को मूर्छित देखकर शोक में डूब गए, उसके बाद विभीषण के कहने पर हनुमान जी लंका में से लंका के राज्य वैद्य को जबरदस्ती उठा लाए। लक्ष्मण जी अगर 12:00 बजे मूर्छित हुए तो जाहिर है उसके बाद श्री राम के शोक और विभीषण द्वारा सुषेण वैद्य लाने के लिया कहना और हनुमान जी द्वारा सुषेण वैद्य को उठा लाना इन सब में कम से कम 1 घंटा तो लग ही गया होगा। यानी रात्रि के करीब 1:00 बज चुके होंगे | इसके बाद वैद्य द्वारा लक्ष्मण की जांच करने और उनके प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने की सलाह देने और हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करने में भी कम से कम आधा घंटा जरूर लगा होगा।

तो हम ये मान सकते हैं कि बजरंगबली हनुमान आज के समय के अनुसार करीब रात्रि में 1:30 पर संजीवनी बूटी लाने के लिए रावण की नगरी से उड़े होंगे। जहां तक सवाल उनके वापस आने का है तो निश्चित ही वह सूर्य उदय होने से पहले वापस आ गए होंगे। यानि की बजरंगबली के वापस आने का समय लगभग 5:00 बजे का रहा होगा। 1:30 बजे लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए हनुमान जी उड़े और 5:00 बजे तक वापस आ गये इसका मतलब हनुमान जी 3:30 घंटे में द्रोणागिरी पर्वत उठाकर वापस आ गए। लेकिन मित्रों इन 3:30 घंटों में से भी हमें कुछ समय कम करना होगा क्योंकि जैसे ही लंका से निकलकर पवन पुत्र भारत आए तो रास्ते में उन्हें कालनेमि नामक राक्षस अपना रूप बदले मिला।

कालनेमि निरंतर श्री राम नाम का जप कर रहा था लेकिन वास्तव में उसकी मंशा हनुमान जी का समय खराब करने की थी। हनुमान जी ने जब जंगल से रामनाम का जाप सुना तो जिज्ञासावश नीचे उतर आए कालनेमि ने खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी बताया और हनुमान जी से कहा कि पहले आप स्नान करके आओ उसके बाद मैं आपको रावण के साथ चल रहे युद्ध का नतीजा बताऊंगा। भोले हनुमान जी उसकी बातों में आ गए और स्नान करने चले गए | स्नान करते समय उनका सामना एक मगरमच्छ से हुआ जिसे हनुमान जी ने मार डाला।

उस मगर की आत्मा ने हनुमान को उस कपटी कालनेमि की वास्तविकता बताई तो बजरंगबली ने उसे भी अपनी पूंछ में लपेटकर परलोक भेज दिया। लेकिन इन सब में भी हनुमान जी का कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। उसके बाद बजरंगबली ने उड़ान भरी होगी और द्रोणागिरी पर्वत जा पहुंचे लेकिन हनुमान जी कोई वैद्य तो नहीं थे इसीलिए संजीवनी बूटी को पहचान नहीं सके और संजीवनी को खोजने के लिए वह काफी देर तक भटकते रहे होंगे। इसमें भी उनका कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। बूटी को ना पहचान पाने की वजह से हनुमान जी ने पूरा पर्वत ही उठा लिया और वापस लंका की ओर जाने लगे। लेकिन हनुमान जी के लिए एक और मुसीबत आ गई।

हुआ यह की जब पवन पुत्र पर्वत लिए अयोध्या के ऊपर से उड़ रहे थे तो श्री राम के भाई भरत ने सोचा कि यह कोई राक्षस अयोध्या के ऊपर से जा रहा है और उन्होंने बिना सोचे समझे महावीर बजरंगबली पर बाण चला दिया। बाण लगते ही वीर हनुमान श्री राम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे। हनुमान जी के मुंह से श्री राम का नाम सुनते ही भरत दंग रह गए और उन्होंने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने (हनुमान जी) ने उन्हें राम रावण युद्ध के बारे में बताया। लक्ष्मण के मूर्छित होने का पूरा किस्सा सुनाया तब सुनकर वह भी रोने लग गए और उनसे माफी मांगी| फिर हनुमानजी का उपचार किया गया और हनुमान जी वापस लंका की ओर ओर चलें। लेकिन इन सभी घटनाओं में भी बजरंगबली के कीमती समय का आधा घंटा फिर से खराब हो गया। अब हनुमान जी के सिर्फ उड़ने के समय की बात करें तो सिर्फ दो घंटे थे और इन्हीं दो घंटों में वह लंका से द्रोणागिरी पर्वत आए और वापस गए।

अब अगर हम उनके द्वारा तय की गई दूरी को देखें तो श्रीलंका और द्रोणागिरी पर्वत तक की दूरी लगभग “ 2500 किलोमीटर” की है यानी कि यह दूरी आने जाने दोनों तरफ की मिलाकर 5000 किलोमीटर बैठती है और बजरंगबली ने यही 5000 किलोमीटर की दूरी 2 घंटे में तय की। इस हिसाब से हनुमान जी के उड़ने की रफ्तार लगभग 2500 किलोमीटर प्रति घंटा की दर से निकलती है. तो इसकी तुलना अगर ध्वनी की रफ्तार से करें तो उसकी तुलना में हनुमानजी की गति लगभग 2 गुना ज्यादा बैठती है।

आधुनिक भारत के पास मौजूद रसिया से मंगवाए गए लड़ाकू विमान मिग 29 की रफ्तार 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है. अगर इसकी तुलना हनुमान जी की रफ्तार से करें तो यहां पर भी हनुमान जी की रफ्तार ज्यादा निकलती है यानी हनुमान जी आधुनिक भारत के पास मौजूद सबसे तेज लड़ाकू विमान से भी तेज उड़ते थे।

!!जय जय सियाराम!!

मंगलवार, 16 मार्च 2021

गंगा जल का महत्व

 

गंगा जल का सदा सेवन करना चाहिये |वह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं |जिनके बीच से गंगा बहती हैं, वे सभी देश श्रेष्ठ तथा पावन हैं |उत्तम गति की खोच करनेवाले प्राणियों के लिये गंगा ही सर्वोत्तम गति हैं |

गंगा का सेवन करने पर वह माता और पिता – दोनों के कुलों का उद्धार करती हैं |एक हजार चान्द्रायण-व्रत की अपेक्षा गंगाजी के जल का पीना उत्तम हैं |एक मास गंगाजी का सेवन करनेवाला मनुष्य सब यज्ञों का फल पाता हैं |गंगा देवी सब पापों को दूर करनेवाली तथा स्वर्ग लोक देनेवाली हैं |गंगा के जल में जब तक हड्डी पड़ी रहती है, तब तक वह जीव स्वर्ग में निवास करता हैं |अंधे आदि भी गंगाजी का सेवन करके देवताओं के समान हो जाते हैं |

गंगा-तीर्थ से निकली हुई मिटटी धारण करनेवाला मनुष्य सूर्य के समान पापों का नाशक होता हैं |

जो मानव गंगा का दर्शन, स्पर्श, जलपान अथवा ‘गंगा’ इस नाम का कीर्तन करता हैं, वह अपनी सैकड़ो-हजारों पीढ़ियों के पुरुषों को पवित्र कर देता हैं | कलियुग में गंगाजी की विशेष महिमा है |

कलियुग में तीर्थ स्वभावतः अपनी अपनी शक्तियों को गंगाजी में छोड़ते है परन्तु गंगा जी अपनी शक्तियों को कही नहीं छोड़ती |गंगाजी पातको के कारण नर्क में गिरनेवाले नराधम पापियों को भी तार देती है |कई अज्ञात स्थान में मर गये हो और उनके लिए शास्त्रीय विधि से तर्पण नहीं किया गया हो तो ऐसे लोगो की हिड॒डयॉ यदि गंगाजी में प्रवाहित करते है तो उनको परलोक मेंउत्तम फल की प्राप्ति होती है |


बासी जल त्याग देने योग्य माना गया है परन्तु गंगाजल बासी होने पर भी त्याज्य नहीं है |इस लोक में गंगा जी की सेवा में तत्पर रहनेवाले मनुष्य को आधे दिन की सेवा से जो फल प्राप्त होता है वह सेकड़ो यज्ञो द्वारा भी नहीं मिलता है ।


( नारद पुराण )

देव तथा ऋषियों के स्पर्श से पावन हुआ एवं हिमालय से उद्गमित नदियों का जल, विशेषकर गंगाजल स्वाथ्यकारी अर्थात आरोग्य के लिए हितकारी है |


“हिमवत्प्रभवाः पथ्याः पुण्या देवर्षिसेविताः ।

– चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय २७, श्लोक २०९

हिमालय से प्रवाहित गंगाजल औषधि (रोगी के लिए हितकारी) है |

“यथोक्तलक्षणहिमालयभवत्वादेव गाङ्गं पथ्यम् ।


– चक्रपाणिदत्त (वर्ष १०६०)

(श्रीशुकदेवजी ने परीक्षित् से कहा ) राजन् ! वह ब्रह्माजी के कमण्‍डलुका जल, त्रिविक्रम (वामन) भगवान् के चरणों को धोने से पवित्रतम होकर गंगा रूप में परिणत हो गया।वे ही (भगवती) गंगा भगवान् की धवल कीर्ति के समान आकाश से (भगीरथी द्वारा) पृथ्‍वी पर आकर अब तक तीनों लोकों को पवित्र कर रही है।

“धातु: कमण्‍डलुजलं तदरूक्रमस्‍य, पादावनेजनपवित्रतया नरेन्‍द्र । स्‍वर्धन्‍यभून्‍नभसि सा पतती निमार्ष्टि, लोकत्रयं भगवतो विशदेव कीर्ति: ।।


( श्रीमद्भा0 8।4।21)

“देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली है | आप जीवनरुपा है | आप आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथाप्राणों की स्वामिनी हैं | आपको बार बार नमस्कार है |

“संसारविषनाशिन्ये जीवनायै नमोऽस्तु ते | तापत्रितयसंहन्त्रयै प्राणेश्यै ते नमो नम : ||

विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्टकरने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे ।

सन् १९४७ में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था । उसने वाराणसी से गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है – ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है ।

दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् १९२४ में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशकजल घोषित कर दिया था ।

‘आइने अकबरी में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृत मानते थे ।

औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे ।शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।

कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं । अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भराहुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगडता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आनेतक खराब हो जाता है ।

अभी रुडकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं ।

फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोगमें उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा !


संत तुलसीदासजी कहते हैं :

गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।

सोमवार, 1 मार्च 2021

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई

 शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था. मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए. मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.


महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.

ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है. मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.

मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे. मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥


समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था. यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.

इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए. बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया. यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.

शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया? यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.
भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.

यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा. महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उवके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है.