रविवार, 18 मार्च 2018

पाप पुण्य रहस्य






पाप और पुण्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं? पाप क्रिया है और पुण्य संचरण! परन्तु किसका संचरण? शुभ कर्मों का? कौन सा शुभ कर्म? ऐसा कौन सा कर्म है जो शुभ है और ऐसा कौन सा कर्म है जो अशुभ है? कौन है जो इसका निर्धारण करता है कि शुभ ये है और अशुभ यह? प्रचलित है, सत्य बोलिए! अब फिर प्रश्न उठता है, ये सत्य क्या है? कौन निर्धारित करेगा या करता है कि ये सत्य है या ये सत्य? प्रचलित है, निंदा नहीं कीजिये!

फिर वही प्रश्न! क्या निंदनीय है और क्या अनिन्दनीय? अब इसका निर्धारण कौन करेगा?

है एक ऐसा न्यायकर्ता! परन्तु वो है कहाँ? वो है हमारा मस्तिष्क! और मस्तिष्क में विराजित विवेक! यही विवेक हमें पशुओं से पृथक करता है! मनुष्य इस विवेक का तर्क जब भी कभी नकार देता है, शुभ अशुभ हो जाता है! पाप-क्रिया करता है! क्योकि विवेक कभी असत्य नहीं बोलता! जल का कार्य प्यास बुझाना है! जीवन देना है! इसी कारणवश जल स्वादहीन है! वायु का कार्य निर्मलता लाना है, इसीलिए वो दृश्यमान नहीं है! उसी तरह से पाप और पुण्य संचरण दिखाई नहीं देते! और हम वही निरंतर दोहराते रहते हैं, दोहराते रहते हैं! इस से क्या होता है? इस से विवेक अपना कार्य करना बंद कर देता है! जैसे कि प्रकृति! प्रकृति ने विशिष्ट स्थान पर विशिष्ट वनस्पतियाँ उगाई हैं! जहां उनकी उपयोगिता है! ये प्रकृति का स्वयं-विवेक है! और अकाट्य है!

सागर में अथाह जल होते हुए भी जल पीने योग्य नहीं! कभी सोचा क्यूँ? सागर का जल समस्त संसार को पालता है! वही जल हमारे भूमंडल पर स्वच्छ एवं मीठे जल में परिवर्तित हो जाता है! ये चक्र निरंतर चलता रहता है! ऐसे ही पाप और पुण्य हैं! आप अपने पापों का भी निर्मलीकरण कर सकते हैं! उन्हें पुण्य में परिवर्तित कर सकते हैं! परन्तु हम वास्तविकता से अनभिज्ञ हैं हमको पाप और पुण्य के बीच में अंतर ही नहीं पता!

किसी भूखे को खाना खिलाना पाप है या पुण्य? अधिकाँश कहेंगे कि पुण्य का काम है! मै भी कहता हूँ! परन्तु ये कौन बताये कि जिसको खाना खिलाया है वो पापी है या सत्कर्मी? स्मरण रहे, आपने केवल उसकी देह की क्षुधापूर्ती की है, उसकी आत्मा की नहीं! दान वो नहीं जो आप अपनी बचत में से देते हो! कदापि नहीं! वरन दान तो वो है जिसके कारण आप भूखे रह जाते हो! दान वो है जिसके कारण आपका तन वस्त्रहीन हो जाता है! धन-दान कोई दान नहीं! मनुष्य अपने पाप और पुण्य का टोकरा स्वयं उठाता है! बस ये दिखाई नहीं देते! लेकिन रहते सदैव आपके साथ ही हैं! इन्ही संचित पुण्यों के कारण ही, एक ही वार में, एक ही, नक्षत्र में, एक ही घडी -पल में, एक ही राशि में, एक ही चरण में दो मनुष्य जन्म लेते हैं! एक राजा के यहाँ और एक रंक के यहाँ! ये है पुण्य-फल! ये है संचित पाप-फल!

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