हम सभी जानते है की हमारे सभी मंगल कार्यो में हम सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करते है | उन्हें निमंत्रण देते है और अपने सभी कार्यो को निर्विघ्नं सम्पन्न करने की विनती करते है | इन्हे सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता का वरदान प्राप्त है | इसके पीछे दो कथाये जुडी हुई है |
भगवान श्री गणेश मंगल करने वाले हैं। वे विघ्न व बाधाओं का हरण करते हैं इसलिए विघ्नहर्ता कहे जाते हैं। शिव-पार्वती के पुत्र गणेश ज्ञान व बुद्धि के देवता हैं तो मातृ व पितृ भक्ति के पर्याय भी हैं। पूरे भारत में उन्हें प्रथम पूज्य देव का मान प्राप्त है। हर शुभ कार्य में श्री गणेश का वंदन सबसे पहले किया जाता है।
भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे जन्में श्री गणेश को सभी देवताओं का सम्मान व शक्तियां प्राप्त हैं।
ब्रह्मा जी जब ‘देवताओं में कौन प्रथम पूज्य हो’ इसका निर्णय करने लगे, तब यह तय किया गया कि जो पृथ्वी-प्रदक्षिणा सबसे पहले करके आएगा वही सबसे पहले पूज्य माना जाएगा। गणेश जी का छोटा सा मूषक कैसे सबसे आगे दौड़े। पर वे थे बुद्धि के महान देवता | उन्होंने युक्ति निकाली और अपने पिता और माता भगवान शंकर और पार्वती जी की प्रदक्षिणा करने लगे । उनके लिए उनके माता-पिता ही सब कुछ थे | उन्होंने सात प्रदक्षिणा कर ली। शिवजी का ह्रदय यह देखकर गदगद हो गया और आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी। जाहिर है भगवान गणेश शेष देवताओं से सबसे पहले पहुंचे। उनका यह बुद्धि-कौतुक देखकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें प्रथम पूज्य बनाया।
दूसरी कथा में बताया गया है की जब शिव ने गणेश का सिर काटा था तब माँ पार्वती अत्यंत रूद्र हो गयी थी | तीनो लोको में त्राहिमाम त्राहिमाम हो गया था | सभी देवी देवता कैलाश पर एकत्रित हो गये | उमा ने शिव जी ने अपने पुत्र को पूण्य जीवित करने की मांग कर ली | शिव आदेश पर गणेश के कटे सिर की जगह हाथी के बच्चे का सिर लगाया गया और गणेश फिर से जीवित हो गये | तब सभी देवी देवताओ ने उन्हें लाड किया और तरह तरह के वरदान दिए | उनमे से एक वरदान प्रथम पूज्य होने का भी गणपति को प्राप्त हुआ |
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