मंगलवार, 27 नवंबर 2018

अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र



चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारज:पुंजविचर्चिताय।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है। पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है। पार्वतीजी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

पार्वतीजी के केशपाशों में मन्दार-पुष्पों की माला सुशोभित है और भगवान शंकर के गले में मुण्डों की माला सुशोभित हो रही है। पार्वतीजी के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप में सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

पार्वतीजी के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिए हुए चमकती दीखती है। पार्वतीजी परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय।

भगवती पार्वती लास्य नृत्य करती हैं और उससे जगत की रचना होती है और भगवान शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है। पार्वतीजी संसार की माता और भगवान शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय।

पार्वतीजी प्रदीप्त रत्नों के उज्जवल कुण्डल धारण किए हुई हैं और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का आभूषण धारण किए हैं। भगवती पार्वतीजी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।

एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि:।

आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है।

।।इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

भगवान शिव के त्रिशूल के संबंध में कहा जाता है की यह त्रिदेवो का प्रतीक ब्र्ह्मा, विष्णु, महेश है



भगवान शिव के त्रिशूल के संबंध में कहा जाता है की यह त्रिदेवो का प्रतीक ब्र्ह्मा, विष्णु, महेश है यानि इसे रचना, पालन एवं विनाश के रूप में देखा जाता है। इसे भुत, भविष्य तथा वर्तमान के साथ स्वर्ग, धरती तथा पाताल एवं इच्छा क्रिया एवं बुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है! देवो के देव महादेव शिव अत्यन्त निराले तथा इसके साथ ही उनकी वेशभूषा भी अत्यन्त विचित्र है। भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र त्रिशूल है। शिव शंकर के हाथ में मौजूद यह त्रिशूल अपने विषय में एक अलग ही कथा प्रस्तुत करता है। कुछ लोग भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल को विनाश की निशानी मानते है। परन्तु वास्तव में भगवान शिव के त्रिशूल के रहस्य को समझ पाना भगवान शिव के समान ही रहस्मयी एवं बहुत कठिन है। हमारे हिन्दू धार्मिक पुराणों एवं ग्रंथो में अनेक गूढ़ रहस्य छिपे हुए है जिनमे से एक है भगवान शिव के हाथ में उपस्थित त्रिशूल ! हिन्दू धर्म में देवियो के हाथो में भी त्रिशूल देखा जाता है। देवी शक्ति दुष्टों का विनाश अपने शस्त्र त्रिशूल से करती है। अतः भगवान शिव के त्रिशूल को त्रिदेवियों माता लक्ष्मी, सरस्वती एवं पार्वती के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है की भगवान शिव के त्रिशूल का निर्माण भौतिक लोक, पूर्वजो की दुनिया तथा विचारों की दुनिया के सर्वविनाश के लिए हुआ था। ताकि दुनिया में मनुष्य के बढ़ते पाप का विनाश कर एक नए आध्यात्मिक दुनिया का निर्माण हो सके ताकि सृष्टि में कोई पाप शेष ना रहे।

त्रिशूल, तीनों गुण सत, रज, तम का भी परिचायक है और त्रिशूल का शिव के हाथ में होने का अर्थ है कि भगवान तीनों गुणों से ऊपर है, वह निर्गुण है। शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है तथा इसमें मनुष्य के अतीत, भविष्य तथा वर्तमान के कष्टों को दूर करने की ताकत होती है। इतना ही नहीं इसी के साथ हमारी आत्मा जन्म एवं मृत्यु के चक्र को छोड़ मोक्ष की प्राप्ति द्वारा ईश्वर का सानिध्य पा सकती है। विभिन्न बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने की भी ताकत है। मनुष्य शरीर में भी त्रिशूल, जहां तीन नाड़ियां मिलती हैं, मौजूद है और यह ऊर्जा स्त्रोतों, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को दर्शाता है। सुषुम्ना जो कि मध्य में है, को सातवां चक्र और ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है। हमारे शरीर में एक स्थान ऐसा होता है जो बाहरी उठापटक को पूरी तरह नजरअंदाज करता है और यह तभी कार्य करता है जब सुषुम्ना तक ऊर्जा पहुंचने लगती है। सुषुम्ना तक ऊर्जा पहुंचने के साथ ही जीवन की असली शुरुआत होती है। जब बाहर हो रही किसी भी तरह की गतिविधियों का प्रभाव मनुष्य के भीतर नहीं होता। वहीं अन्य दो कोनों को इड़ा और पिंगला कहा जाता है। इड़ा और पिंगला को शिव और शक्ति का नाम भी दिया जाता है। इन्हें शिव और शक्ति का नाम लिंग के अनुसार नहीं बल्कि उनकी विेशेषताओं के आधार पर दिया गया है।

शनिवार, 10 नवंबर 2018

प्रदोष व्रत - भगवान शिव के लिए रखा जाता है




हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है।मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह केसातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।

यह व्रत बहुत्त मंगलकारी होता है तथा इस व्रत को त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है| यदि इस दिन आप व्रत रखें तो आपको भगवान शिव की कृपा प्राप्त होगी| इस दिन भगवान शिव के लिए व्रत रखने तथा उनकी पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है| मोक्ष का अर्थ है अपने मनोविकारों से मुक्ति प्राप्त करना !

पौराणिक कथा

इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान केभक्त सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूतजी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगाहर तरफ अन्याय और अनाचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोकको प्राप्त होगा। सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्यको अभीष्ट की प्राप्ति होगी। इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत सेक्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया। सूत जी ने शौनकादि ऋषियों कोबताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती कोसुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया है। प्रदोष व्रत विधानसूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकरकी पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।

प्रदोष व्रत कथा

प्रदोष व्रत कथा स्कंद पुराण में वर्णित है| इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को वापिस घर लौटती थी| एक दिन जब वह अपने पुत्र के साथ भिक्षा लेकर लौट रही थी तो रस्ते में उसे नदी के किनारे के पास एक सुंदर बालक दिखाई दिया| वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था| शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था| उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी| ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया|
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई| वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई| ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था| ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी| ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी अपनी माता के साथ प्रदोष व्रत करना शुरू किया|
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे| तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई| ब्राह्मण बालक तो घर वापिस लौट आया| परन्तु राजकुमार धर्मगुप्त “अंशुमती” नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया और उससे बात करने लग गया| कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया| दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है| भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करवा दिया|
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया| यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था| स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिव पूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती|

प्रदोष व्रत विधि

स्कंदपुराण में त्रयोदशी तिथि में सांयकाल को प्रदोष काल कहा गया है| प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है|
इस दिन सूर्यास्त से पहले स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए|
इसके बाद सायंकाल में विभिन्न पुष्पों, लाल चंदन, हवन और पंचामृत द्वारा भगवान शिव जी की पूजा करनी चाहिए|
पूजा के समय एकाग्र रहना चाहिए और शिव-पार्वती का ध्यान करना चाहिए|
मान्यता है कि एक वर्ष तक लगातार यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं|


प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल 

प्रदोष व्रत के लाभ अलग – अलग वारों के अनुसार प्राप्त होते हैं|
रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छे स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त किया जा सकता है|
सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और व्यक्ति की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है|
मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है|
बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है|
गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है|
शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख -शान्ति के लिए किया जाता है|
संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए|
अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है|