मंगलवार, 20 नवंबर 2018

भगवान शिव के त्रिशूल के संबंध में कहा जाता है की यह त्रिदेवो का प्रतीक ब्र्ह्मा, विष्णु, महेश है



भगवान शिव के त्रिशूल के संबंध में कहा जाता है की यह त्रिदेवो का प्रतीक ब्र्ह्मा, विष्णु, महेश है यानि इसे रचना, पालन एवं विनाश के रूप में देखा जाता है। इसे भुत, भविष्य तथा वर्तमान के साथ स्वर्ग, धरती तथा पाताल एवं इच्छा क्रिया एवं बुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है! देवो के देव महादेव शिव अत्यन्त निराले तथा इसके साथ ही उनकी वेशभूषा भी अत्यन्त विचित्र है। भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र त्रिशूल है। शिव शंकर के हाथ में मौजूद यह त्रिशूल अपने विषय में एक अलग ही कथा प्रस्तुत करता है। कुछ लोग भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल को विनाश की निशानी मानते है। परन्तु वास्तव में भगवान शिव के त्रिशूल के रहस्य को समझ पाना भगवान शिव के समान ही रहस्मयी एवं बहुत कठिन है। हमारे हिन्दू धार्मिक पुराणों एवं ग्रंथो में अनेक गूढ़ रहस्य छिपे हुए है जिनमे से एक है भगवान शिव के हाथ में उपस्थित त्रिशूल ! हिन्दू धर्म में देवियो के हाथो में भी त्रिशूल देखा जाता है। देवी शक्ति दुष्टों का विनाश अपने शस्त्र त्रिशूल से करती है। अतः भगवान शिव के त्रिशूल को त्रिदेवियों माता लक्ष्मी, सरस्वती एवं पार्वती के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है की भगवान शिव के त्रिशूल का निर्माण भौतिक लोक, पूर्वजो की दुनिया तथा विचारों की दुनिया के सर्वविनाश के लिए हुआ था। ताकि दुनिया में मनुष्य के बढ़ते पाप का विनाश कर एक नए आध्यात्मिक दुनिया का निर्माण हो सके ताकि सृष्टि में कोई पाप शेष ना रहे।

त्रिशूल, तीनों गुण सत, रज, तम का भी परिचायक है और त्रिशूल का शिव के हाथ में होने का अर्थ है कि भगवान तीनों गुणों से ऊपर है, वह निर्गुण है। शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है तथा इसमें मनुष्य के अतीत, भविष्य तथा वर्तमान के कष्टों को दूर करने की ताकत होती है। इतना ही नहीं इसी के साथ हमारी आत्मा जन्म एवं मृत्यु के चक्र को छोड़ मोक्ष की प्राप्ति द्वारा ईश्वर का सानिध्य पा सकती है। विभिन्न बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने की भी ताकत है। मनुष्य शरीर में भी त्रिशूल, जहां तीन नाड़ियां मिलती हैं, मौजूद है और यह ऊर्जा स्त्रोतों, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को दर्शाता है। सुषुम्ना जो कि मध्य में है, को सातवां चक्र और ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है। हमारे शरीर में एक स्थान ऐसा होता है जो बाहरी उठापटक को पूरी तरह नजरअंदाज करता है और यह तभी कार्य करता है जब सुषुम्ना तक ऊर्जा पहुंचने लगती है। सुषुम्ना तक ऊर्जा पहुंचने के साथ ही जीवन की असली शुरुआत होती है। जब बाहर हो रही किसी भी तरह की गतिविधियों का प्रभाव मनुष्य के भीतर नहीं होता। वहीं अन्य दो कोनों को इड़ा और पिंगला कहा जाता है। इड़ा और पिंगला को शिव और शक्ति का नाम भी दिया जाता है। इन्हें शिव और शक्ति का नाम लिंग के अनुसार नहीं बल्कि उनकी विेशेषताओं के आधार पर दिया गया है।

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