मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

तारकेश्वर महादेव



 महादेव शिव के देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है बंगाल का तारकेश्वर महादेव का मंदिर। कहा जाता है शिव तारक मंत्र देते हैं तभी मनुष्य का उद्धार होता है। न सिर्फ बंगाल में बल्कि दूर दूर तक इस मंदिर की मान्यता है। पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के तारकेश्वर शहर में स्थित है बाबा भोले नाथ का मंदिर तारकेश्वर धाम।

इस प्रसिद्ध तारकेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। कहा जाता है कि यहां भक्तजन जो भी मन्नत मांगते हैं उनकी मन्नत पूरी होती है। इस मंदिर का निर्माण साल 1729 में हुआ था। यह बांगला वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है। मंदिर के गर्भ गृह के आगे बरामदा बना हुआ है। मंदिर के बगल में एक विशाल सरोवर है। इस सरोवर को दूधपुकुर ( दूध का पोखर) कहते हैं। पूजा के लिए आने वाले श्रद्धआलुओं में से काफी लोग पहले मंदिर में स्नान करते हैं फिर पूजा करते हैं। इस मंदिर का पौराणिक महत्व है इस मंदिर को एक शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने तारकेश्‍वर के पश्चिम दिशा की ओर एक कुंड खोदा था और भगवान शिव का शिवलिंग की स्थापना करके उनकी आराधना की थी। ऐसी भी मान्यता है कि तारकेश्‍वर देवी लक्ष्मी का मूल निवास स्थल है। देवी लक्ष्मी यहां देवी सरस्वती के साथ वैष्णवी रूप में भी निवास करती हैं। महादेव तारकेश्वर का मंत्र - ओम स्त्रों तारकेश्वर रुद्राय ममः दारिद्रय नाशय नाशय फट।।
मंदिर के बारे में एक कहानी है कि शिव का एक भक्त विष्णु दास उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर से यहां पहुंचा था। हालांकि हुगली के स्थानीय लोगों ने किसी मुद्दे पर इस सीधे सच्चे इंसान के पूरे परिवार पर शक किया। अपने को निर्दोष साबित करने के लिए उसने अपने हाथ को गर्म लोहे के छड़ से जला लिया।

कुछ दिनों बाद उसके भाई ने पास के जंगल में एक ऐसा स्थल तलाशा जहां गाय अपने आप जाकर दूध देने लगती थी। भाई को यह पता चला कि जहां गाय दूध देती है वहां एक शिवलिंग स्थित है। यह एक स्वंभू शिवलिंग है। इसके बाद विष्णुदास को स्वप्न में आया कि यह स्थल तारकेश्वर (शिव) का स्थान है। विष्णुदास ने यहां शिव की पूजा की और उसे लोगों के कोप से मुक्ति मिली। बाद में गांव के लोगों ने वहां पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया। वर्तमान मंदिर राजा भारमल्ल का 1729 का बनवाया हुआ है।

महाशिवरात्रि और चैत्र संक्रांति के समय तारकेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा सावन के महीने में यहां पूरे माह कांवर लेकर आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
कैसे पहुंचे - तारकेश्वर कोलकाता शहर के पास हावडा रेलवे स्टेशन से 58 किलोमीटर की दूरी पर है। रोज सुबह 4.22 से लेकर रात्रि 11 बजे तक इस मार्ग पर लोकल ट्रेनें चलती रहती हैं। आमतौर पर हर घंटे तारकेश्वर मार्ग पर आपको लोकल ट्रेन मिल जाएगी।

लोकल ट्रेन से पहुंचने डेढ़ घंटे का वक्त लगता है। इसी तरह वापसी के लिए भी दिन भर लोकल ट्रेन मिलती हैं। तारकेश्वर हावड़ा से आरामबाग रेलवे लाइन पर पड़ता है। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी महज आधा किलोमीटर है। इस लिए मंदिर तक पहुंचना कोलकाता से काफी सहज है।


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