गुरुवार, 30 मई 2019

भद्रवाह कैलाश पर्वत


भद्रवाह कैलाश पर्वत, जहाँ वासुकि नाग जी देते है दर्शन जोकि वासुकि नाग का भी पवित्र स्थान माना जाता है, वहां पर स्थित कैलाश - कुण्ड आध्यात्मिक और पर्यटन की दृष्टि से कई लोक मान्यताओं को अपने में संजोए हुए है भद्रवाह का प्राचीन नाम भद्रकाशी कहा जाता है और इस घाटी में शिवजी के साथ - साथ वासुकि नाग का आवास एवं विशेष कृपा मानी जाती है। इसी के साथ - साथ इस घाटी को पार्वती जी का मायका भी माना जाता है। प्रमाणों के साथ यह भी बताया जाता है कि पांडवों ने अपना अज्ञात वास भी इन वादियों - घाटियों में व्यतीत किया था। इसलिए शिव-पार्वती और वासुकि नाग की भूमि और पांडवों की तपोभूमि होने के कारण समस्त भद्रवाही अपने को बहुत अधिक भाग्यशाली मानते हैं।

यह पवित्र कुंड वास्तव में भगवन नाग की एक अशीम हिमाछादित झील है।यहाँ प्रतिवर्ष सितम्बर मास में एक विशाल मेला लगता है। मेले में जम्मू , कश्मीर , हिमाचल , हरयाणा , पंजाब और दिल्ली तक के अशंकया लोग भाग लेते हैं। स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक होती है।

सामान्य श्रद्धालु लोग झील के बर्फीले गहरे पानी में सेब फेकते हैं। पवित्र झील में सफ़ेद रंग क विशालकाय वासुकि नाग के दर्शन भी अशंकया लोगो को प्रायः होते रहते हैं। नागराज को बर्फीले पानी में देख कर यात्री दांग रह जाते हैं।

कैलाश यात्रा वाश्तव में भारतवर्ष की कठिनतम यात्रियों में से है। कश्मीर सरकार की ओर से जगह जगह उपचार , आवास , सुरक्षा आदि समुचित यात्रियों प्रबंध आदि समुचित प्रबंध होते हैं।

वासुकि कुंड आधयात्मिक , ऎतिहासिक और रहश्यमय स्थल हैं। कहते हैं , लाखों वर्ष पूर्व गरूर और वासुकि का भयानक यूद्ध हुआ था। वासुकि गरूर से बचने के लिए भदरवाह के कैलाश परबत में चुप गए। गरूर ने वासुकि की छिपने वाली जगह में एक गड्ढा बना दिया। वह आशिम गड्ढा तत्काल दुद्घ गंगा के पवित्र जल से भर गया।

नागराज वासुकि ने उस पावित्र्य जल में छुपकर आत्मा रक्षा की थी। तभी से यह सर्वोच झील विदेशी पर्यटकों और पर्वतारोहियों आकर्षण का केंद्र हैं। आज भी पर्वतारोही कैलाश पर्वत के परवता रोहन के बिना आपने अभियानों को अपूर्ण मानते हैं।


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