गुरुवार, 13 अगस्त 2020

चौसर खेल शिव-पार्वती ने रची बड़ी लीला


हुत कम लोगों को ये पता होगा कि चौसर का निर्माण भी भगवान शिव ने ही किया था। एक दिन महादेव ने देवी पार्वती से कहा कि आज मैंने एक नए खेल का निर्माण किया है। उनके अनुरोध पर दोनों चौसर का खेल खेलने लगे। चूँकि चौसर का निर्माण महादेव ने किया था, वे जीतते जा रहे थे। अंत में माता पार्वती ने कहा कि ये उचित नहीं है। अगर ये एक खेल है तो उसके नियम भी होने चाहिए। उनके ऐसा कहने पर महादेव ने चौसर के नियम बनाये और एक बार फिर चौसर का खेल आरम्भ हो गया।

इस बार माता पर्वती बार-बार विजय होने लगी और थोड़े ही समय में भगवान शिव अपना सब कुछ हार गए। अंत में भगवान शिव ने लीला करते हुए कैलाश को भी दांव पर लगाया और हार गए। इसके बाद भगवान शिव अपनी लीला रचाने के लिए हारने के बाद पत्तो के वस्त्र पहन कर देवी पार्वती से रुठने का नाटक करते हुए गंगा नदी के तट पर चले गए। थोड़ी देर बाद जब कार्तिकेय कैलाश लौटे तो उन्होंने भगवान शिव का माता पर्वती से चौसर के खेल में हारने की बात सुनी। वे अपने पिता को अपनी माता से अधिक प्रेम करते थे इसी कारण अपने पिता को वापस लाने के लिए उन्होंने माता पार्वती को चौसर में हराकर भगवान शिव की सारी वस्तुएं प्राप्त कर ली और अपने पिता को लौटने के लिए गंगा के तट पर चल दिए।

इधर माता पार्वती परेशान हो गयी कि पुत्र कार्तिकेय जीत कर महादेव का सारा समान भी ले गया और उनके स्वामी भी उनसे दूर चले गए। यह बात उन्होंने अपने पुत्र गणेश को बतलाई। गणेश अपनी माता को अपने पिता से अधिक प्रेम करते थे इसी कारण उनका दुःख सहन ना कर सके और अपनी माँ की इस समस्या का निवारण करने के लिए वे भगवान शिव को ढूढ़ने निकल गए। गंगा के तट पर जब उनकी भेट भगवान शिव से हुई तो उन्होंने उनके साथ चौसर का खेल खेला तथा उन्ही की माया से उन्हें हराकर उनकी सभी वस्तुए पुनः प्राप्त कर ली।

भगवान शिव के सभी वस्तुए लेकर गणेश माँ पार्वती के पास पहुंचे तथा उन्हें अपनी विजय का समाचार सुनाया। गणेश को अकेले देख वे बोली की तुम्हे अपने पिता को भी साथ लेकर आना चाहिए था। तब गणेश पुनः भगवान शिव को ढूढ़ने निकल पड़े। भगवान शिव गणेश को हरिद्वार में कार्तिकेय के साथ भ्रमण करते हुए मिले। जब भगवान गणेश ने शिव से वापस कैलाश पर्वत चलने की बात कही तो उन्होंने गणेश के बार-बार निवेदन करने पर कहा कि यदि तुम्हारी माता मेरे साथ एक बार फिर चौसर का खेल खेले तो में तुम्हारे साथ चल सकता हूँ।

गणेश ने माता पार्वती को भगवान शिव की शर्त बतलाई और उन्हें लेकर अपने पिता के पास पहुँचे। वहाँ पहुँचकर माता पार्वती हँसते हुए भगवान शिव से बोली कि "हे नाथ! आप के पास हारने के लिए अब बचा ही क्या है?" तब नारद जी ने अपनी वीणा भगवान शिव को दांव लगाने के लिए दे दी। भगवान शिव की इच्छा से भगवान विष्णु पांसों के रूप में भगवान शिव के पास आ गए और भगवान ब्रह्मा मध्यस्थ बनें। इस बार भगवान शिव चौसर के खेल में माता पर्वती को बार-बार हराने लगे। जब माता पार्वती अपना सब कुछ हार गयी तब महादेव ने हँसते हुए इसका रहस्य बताया। हालाँकि भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ यूँ ही ठिठोली की थी किन्तु देवी पार्वती को बड़ा क्रोध आया।

उन्होंने क्रोधित होते हुए भगवान शिव से कहा कि आप हमेशा अपने सर के उपर गंगा का बोझ सहेंगे। देवर्षि नारद को कभी एक जगह न टिकने का श्राप मिला तथा भगवान विष्णु को धरती में जन्म लेकर स्त्री वियोग का श्राप मिला। माता पार्वती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय पर भी क्रोधित होते हुए श्राप दिया कि वे सदैव बाल्यवस्था में ही बने रहेंगे। बाद में माता पार्वती को अपने श्राप पर बड़ा क्षोभ हुआ और उन्होंने भगवान शिव और नारायण से प्रार्थना की कि वे उनके श्राप को निष्फल कर दें किन्तु भगवान विष्णु ने कहा कि वे जगत माता है और वे उनका श्राप निष्फल कर उनका अपमान नहीं कर सकते। इस कारण सभी को माता पार्वती द्वारा दिया गया श्राप झेलना पड़ा। इस प्रकार चौसर ने केवल मनुष्यों का नहीं बल्कि स्वयं ईश्वर का भी अहित किया।

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