मंगलवार, 1 सितंबर 2020

शिव मे ‘ शि ’ ध्वनि का अर्थ

 


शिव मे ‘ शि ’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है।
भारतीय जीवन शैली मे हमने हमेशा से स्त्री गुण को ' शक्ति ' के रूप मे स्वीकार किया है।

‘ शि ’ का मूल अर्थ शक्ति या ऊर्जा है,
यदि हम केवल ‘ शि ’ का ही अधिक जप करेंगे तो वह हमे असंतुलित कर देगा।इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें ‘ व ' जोड़ा गया।

‘ व ’ वाम से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता।
‘ शि-व ’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित या नियंत्रित करता है। दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है,वह विनाशकारी हो सकती है।इसलिए जब हम ‘ शिव ’ कहते हैं तो हम ऊर्जा को सकारात्मक रूप देते हुये अपने आंतरिक ऊर्जा स्त्रोत को सघन करते हैं।

इसी क्रम मे ,शंकर के एक सौम्य रूप को शंभू या शम्भो भी कहा जाता है,शिव उग्र होते हैं किन्तु यह शिव का बहुत सौम्य, सुंदर रूप है।

शम्भो शब्द का अर्थ है “ वह जो पावन है ”।शम्भो की ध्वनि चेतना के समस्त आयामों को छू जाती है।

हमारे आत्मबोध को सर्वोच्च ऊंचाई तक ले जाने मे सक्षम है यह स्तुति -
" क्रीडार्थं सृजसि प्रपञ्चमखिलं क्रीडामृगास्ते जना,
यत्कर्माचरितं मया च भवत: प्रीत्यै भवत्वेव तत् !
शम्भो स्वस्य कुतूहलस्य करणं मच्चेष्टितं निश्चितं
तस्मान्मामकरक्षणं पशुपते कर्तव्यमेव त्वया !! "

अर्थात् -
हे शम्भो !
आप केवल अपनी क्रीडा के लिए ही इस सम्पूर्ण प्रपंच की रचना करते हो,
इस प्रपंच मे जितने भी प्राणि वर्ग हैं, वह सब आपके क्रीडार्थ मृग के समान हैं,
हे भगवान् इस संसार में आकर मैंने यहाँ जो कुछ भी कर्म किया है,
वह सब आपके प्रसन्नतता के लिए ही हो।
हे पशुपते !मेरी जितनी भी क्रियायें हैं, निश्चित ही वे एक तरह से कौतूहलपूर्ण हैं,
अर्थात् केवल अपने मनोरंजन हेतु ,इसलिए मेरी रक्षा का भार भी सर्वथा आपके ही ऊपर है।
स्वयं को शिवस्वरूप जानना ही शिपिविष्ट की उपासना है।
!! ॐ नमः शिवाय !!

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