गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

तुलसी पूजा और उससे होने वाले फायदे

 

 एक आध्यात्मिक और आयुर्वेद के रूप तुलसी का पौधा एक बहुत गुणकारी औषधि हैं. तुलसी का पौधा न केवल आध्यात्मिक शांति के लिए , बल्कि घर को प्रदुषण और ,मौसमी बीमारियों से बचाने के लिए भी तुलसी का पौधा बहुत गुणकारी होता हैं ।

तुलसी का पौधा जिस घर में भी होता हैं. वहाँ त्रिदेव निवास करते हैं.तुलसी के पौधे की नियमित रूप से पूजा करने वाला महापापी व्यक्ति भी पवित्र हो जाता हैं. तुलसी के पत्ते के बिना किसी भी प्रसाद या चरणामृत का कोई महत्व नहीं हैं. विष्णु भगवान की पूजा में तुलसी का प्रयोग ही विष्णु पूजा को सफल बना देता हैं ।

तुलसी की पूजा का हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व हैं, तुलसी की पूजा में इन मंत्रो का जाप करने से घर में , सुख , शांति और वैभव आता हैं.तुलसी की पूजा से अकाल मृत्यु का शोक नहीं हो हैं. तुलसी की पूजा करते समय जब उसे जल अर्पित करे , तो इस मन्त्र का जाप करे,

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।I

तुलसी की पूजा करने के दौरान इस मंत्र का जप करते हुए उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए ।

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

धन , वैभव , सुख, सम्पदा की प्राप्ति के लिए इस मन्त्र का जाप सर्वाधिक उपयुक्त हैं ।

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।


तुलसी न केवल पूजा अर्चना बल्कि यह स्वस्थ्य की दृष्टि से भी बहुत उत्तम है, तुलसी के पत्ते आयुर्वेद चिकित्सा में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. आइये जानते हैं तुलसी के लाभदायक तत्वों के बारे में.

1- तुलसी में आरोग्यदायक तत्व होते हैं, जो मानव को एकाग्र, बनाते हैं. तुलसी को संजीवनी के समान माना गया हैं,

2- तुलसी की पूजा से घर में सौभाग्य, वैभव और सम्पन्नता आती हैं. क्युकी तुलसी को लक्ष्मी स्वरुप माना गया हैं.

3- तुलसी के पत्ते में अमृत समान गुण हैं. तुलसी की पूजा करने से महापापी के भी पाप समाप्त हो जाते हैं.

4- प्रसाद में तुलसी के पत्तो का होना आवश्यक हैं , जिस प्रसाद (कसार ) में तुलसी के पत्ते नहीं होते, उसे भगवान् भी स्वीकार नहीं करते हैं.

5- विष्णु की पूजा में तुलसी का महत्वपूर्ण स्थान हैं, कोई नैवेद्य , चरणामृत न भी हो , केवल तुलसी को ही अर्पित कर देने से विष्णु पूजा सफल और पूर्ण हो जाती हैं.

तुलसी के महत्व का बखान विष्णु पुराण में निहित हैं. तुलसी का पौधा जिस भी घर में हो, उस घर में सुख ,शांति , समृद्धि , हमेशा बनी रहती हैं. विष्णु पुराण में तुलसी के महत्व का वर्णन करते हुए लिखा हैं कि एकादशी, द्वादशी, संक्रांति ,सूर्य ग्रहण , चंद्र ग्रहण के दिन और सूर्यास्त के पश्च्यात तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए. ऐसी मान्यता हैं, कि माता तुलसी एकादशी का व्रत करती हैं, इसलिए एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते को नहीं तोड़ना चाहिए ।

एकादशी के अलावा रविवार का दिन भी बहुत महत्वपूर्ण हैं , इस दिन भी माता तुलसी के पत्तो को नहीं तोड़ना चाहिए , क्युकी रविवार का दिन विष्णु को प्रिय हैं , ऐसे में लक्ष्मी स्वरूपा माँ तुलसी को तोड़ना विष्णु का अपमान करने जैसा हैं ।

किसी भी प्रसाद में तुलसी के पत्तो का प्रयोग आवश्यक हैं, बिना तुलसी के पत्तो के प्रसाद अपूर्ण माना जाता हैं. इसलिए , चरणामृत हो या कसार प्रसाद उसे बनाने के बाद उसमे तुलसी के पत्ते अवश्य डाले . 

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

जानिए महाभारत में कौन किसका था अवतार

 

 महाभारत में जितने भी प्रमुख पात्र थे वे सभी देवता, गंधर्व, यक्ष, रुद्र, वसु, अप्सरा, राक्षस तथा ऋषियों के अंशावतार थे।

भगवान नारायण की आज्ञानुसार ही इन्होंने धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। महाभारत के आदिपर्व में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। उसके अनुसार-

वसिष्ठ ऋषि के श्राप व इंद्र की आज्ञा से आठों वसु शांतनु के द्वारा गंगा से उत्पन्न हुए।उनमें सबसे छोटे भीष्म थे।भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए।महाबली बलराम शेषनाग के अंश थे।

देवगुरु बृहस्पति के अंश से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ।अश्वत्थामा महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुए।रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया।

द्वापर युग के अंश से शकुनि का जन्म हुआ।अरिष्टा का पुत्र हंस नामक गंधर्व धृतराष्ट्र तथा उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में जन्में।सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए।कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृतिका का जन्म हुआ था।

मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था।कर्ण सूर्य का अंशवतार था।युधिष्ठिर धर्म के, भीम वायु के, अर्जुन इंद्र के तथा नकुल व सहदेव अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे।राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रोपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थी।

दुर्योधन कलियुग का तथा उसके सौ भाई पुलस्त्यवंश के राक्षस के अंश थे।मरुदगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था।अभिमन्य, चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था।

अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था।विश्वदेवगण द्रोपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे।

दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था।कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था।इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से सोलह हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं।

इस प्रकार देवता, असुर, गंधर्व, अप्सरा और राक्षस अपने-अपने अंश से मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए थे।