अघोर मार्ग का तन्त्र में बहुत उच्च स्थान है लेकिन अघोर मार्ग पर चलना उतना ही कठिन भी है। आज के समय मे अघोर के प्रति लोग ज्यादा आकर्षित इसलिए हो रहे है क्योकि इस मार्ग में शुद्ध अशुद्ध का कोई नियम नही होता। मास मदिरा स्त्री किसी प्रकार का कोई नियम नही लोगो को ऐसी ही तो आजादी चाहिए। लेकिन मास मदिरा स्त्री का अघोर में क्या महत्व है ये जानना भी आवश्यक है।
मास मदिरा पीकर स्त्री संग लिप्त रहना अघोर नही है। ये अघोर के नाम पर सिर्फ पाखंड है। अघोर क्या पूरे तन्त्र में स्त्री को शक्ति स्वरूप में देखकर पूजन होता है ना कि स्त्री भोग की वस्तु है। स्त्री के अंदर माँ कामाख्या को देखकर पुजन होता है। लेकिन लोगो ने अपनी ही इच्छाओ की पूर्ति के लिए तन्त्र जैसे मार्ग को भी दूषित कर दिया है जिससे आम लोग नाम से भी भय खाते है। अघोर तो भगवान शिव का ही रूप है जो भेदभाव मिटाता है।
मास मदिरा का प्रयोग भोग के लिए किया जाता है क्योकि स्मशानिक शक्तियो का भोग यही है। इसका अर्थ ये नही होता कि आप सयम भी मास मदिरा पीकर पड़े रहो और लोगो को गालिया देकर बात करो। ऐसा करने वाले लोग अघोर को कभी नही समझ सकते।
अघोर कभी नही कहता काले वस्त्र धारण करो स्मशान में बैठो , बड़ी बड़ी मालाएं धारण करो ये सब संसारिकता में रहकर कर रहे हो तो पूर्णतया दिखावा है। ये सब विधि विधान उनके लिए होता है जो संसार से रिश्ता तोड़ चुका हो। सांसारिक गृहस्थ लोग जो अघोर मार्ग से दीक्षा प्राप्त हुए होते है उनको आप पहचान भी नही पाते कि अघोरी है क्योकि सामान्य लोगो की तरह रहते है सिर्फ अपने पूजन के समय वस्त्र धारण करते है।
अघोर में गृहस्थ लोग भी आ सकते है ऐसा नही है इसके लिए कुछ त्याग करने या घरबार छोड़ने की आवश्कयता है। दीक्षा प्राप्त करके अपने घर में सात्विक साधना कर सकते है जिससे आपकी आत्मा की यात्रा आगे बढे सके।
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