मंगलवार, 21 सितंबर 2021

श्राद्ध में कौन सी वस्तु दान करने से क्या फल मिलता है?

 पितृ पक्ष के सोलह दिनों में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म कर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में दान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि दान से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और पितृ दोष भी खत्म हो जाते हैं। श्राद्ध में गाय, तिल, भूमि, नमक, घी आदि दान करने की परंपरा है।


इन सभी वस्तुओं को दान करने से अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं। धर्म ग्रंथों में श्राद्ध में दान की गई वस्तु से मिलने वाले फलों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है, लेकिन बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं श्राद्ध में क्या वस्तु दान करने से उसका क्या फल प्राप्त होता है-

1. गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है।

2. तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।

3. घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

4. अनाज का दान- अन्नदान में गेहूं, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।

5. भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतान लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।

6. वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।

7. सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।

8. चांदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चांदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।

9. गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

10. नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।

ब्राह्मणों को दान देते समय यह मंत्र बोलना चाहिए-
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।।

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

मंदिर शब्द का क्या अर्थ है?



मंदिर
 शब्द में 'मनऔर 'दरकी संधि है
 मन + दर मन अर्थात मन दर अर्थात द्वार मन का द्वार

तात्पर्य यह कि जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैंवह स्थान मंदिर है।  +   अर्थात मम = मैं  अर्थात नहीं जहाँ मैं नहीं !!
अर्थात जिस स्थान पर जाकर हमारा 'मैंयानि अंहकार 'रहे वह स्थान मंदिर है। ईश्वर हमारे मन में ही हैअतजहाँ 'मैं' ''रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।

 अध्यात्म के मार्ग में क्या भौतिकता अनिवार्य है ! मंदिर की आवश्यकता नही है ! रत्नों से सज्जित शिवलिंग भी आवशकता नही है किसी व्यक्ति की स्वकृति आवशकता नही है मेरे भक्तो से मेरा सम्बन्ध तोह वयक्तित्व है उसमे किसी भी प्रकार माध्यम अनिवार्य नही है रूप देह स्वस संस्कृति समाज नियम विधि या विधान किसी भी प्रकार का बंधन अनिवाय नही है !

मैं अपने भक्तो की कृपा उनकी भावनाओ के अनुपात करता हूँ ! किसी माध्यम पर उनकी उपलब्धियों के आधार पर नही या इसके अनुसार भी नही के मेरे भक्त ने भक्ति किन बहुमूलयो रत्नों से या कितने भव्य मंदिर में की है ! मैं किसी स्थान तक सिमित नही रह सकता मैं तोह सर्वयापी हूँ तुम मुझे अपने भीतर ढूंढ कर बहार ढूंढने की आवशकता ही क्या है!