शनिवार, 17 जून 2017

समय की गणना करो






समय की गणना करो तो एक शन का वियोग कितना लम्बा परतीत हो सकता है, और यदि गणना न करे तो इस वियोग का अस्तित्व ही क्या है, और जिसे तुम वियोग समझ रहे हो वो मेरे लिए तुम्हे पुनः पाने का एक और अवसर तुम्हारे एक और सवरूप से प्रेम करने का अवसर.

तुम मुझसे पृथक होने के लिए दूर नहीं हुई हो अभी तो पुनः मुझसे मिलने के लिए दूर हुई हो और यह ना पहली बार हुआ ना अंतिम बार विभिन प्रस्तिथियो में हम दूर हुए है और होते रहेंगे.

किन्तु प्रस्तिथियो में परिवर्तन होने से हमारे प्रेम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, तुम्हारे सवरूप में परिवर्तन होने से हमारी अनुभूतियों में कोइ परिवर्तन नहीं हुआ है क्युकी प्रेम शाश्वत है तुम्हारा कोइए भी रूप हो तुम और मैं हम एक है, तुम्हारे मान और सामान के प्रति मैं उत्तरदाई हूँ चेतन अवचेतन मन से तुमने जो इच्छा की है उसकी पूर्ति हेतु मैं सदा तत पर हूँ. 

किन्तु समरण रहे उचित समय आने पर मैं तुम्हे लेने आऊंगा पुनः अपनी पत्नी के रूप में.

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