बुधवार, 1 अगस्त 2018

।। शिव लिंग ।। शिव - ' श ' + ' इ ' + ' व ' ।।


शिव - ' श ' + ' इ ' + ' व ' :-
- ' श ' कार अर्थात नित्य सुख एवं आनंद ।
- ' इ ' कार अर्थात पुरुष ।
- ' व ' कार अर्थात अमृतस्वरूपा भक्ति ।

शिव अर्थात ' कल्याण ' का प्रतीक , निश्चल ज्ञान , ब्रह्म तेज़ , सृजन - सृजनहार शक्ति का प्रतीक है । वहीं स्कन्दपुराणानुसार लिंग अर्थात ' लय ' , प्रलय के समय सब कुछ अग्नि मे परिवर्तित हो कर लिंग मे समा जाता है और पुन: सृष्टि के समय लिंग से ही प्रकट हो जाता है ।
मूले ब्रह्मा मध्ये विष्णु त्रिभुवनेश्वर: रुद्रोपारि सदाशिव: ।


लिंगवेदी महादेवी लिंग साक्षान्महेश्वर: ।। ( लिंग पुराण )
- शिव लिंग मे सब से नीचे ब्रह्मा जी - मध्य मे श्री विष्णु भगवान - सबसे ऊपर स्वंयमेव भोलेनाथ महादेव विराजते हैं जब कि जलाधारी ( अर्घा ) तो साक्षात माता पार्वती हैं । सनातन वैदिक मान्यतानुसार पंच देव पूजन का विधान मान्य है , शिवं लिंग के पूजन से साक्षात सभी पंच देवों का पूजन हो जाता है ।
लिंग मानव सभ्यता के प्राचीन प्रतीकों मे सर्वोपरि है । सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय यह अपनी चिकित्सा शक्ति की ऊर्जा के प्रतीक रूप मे इसे मान्यता दी गयी है । लिंग और योनि की अविभाज्य एकात्मकता प्रतीकात्मक रूप मे जीवन के स्रोत्र मे निष्क्रिय अंतिरक्ष और सक्रिय समय का दर्शन है । कुछ तथाकथित विद्वानों ने इसकी व्याख्या यौन अंगों के रूप मे की है परंतु सनातन दर्शन पुरुष एवं महिला सिद्धान्तों और रचना की समग्रता और अवियोज्यता का प्रतीकात्मक स्वरूप मानता है ।


शिवलिंग की महत्ता उसकी रचना , दुर्लभता के साथ स्थापित स्थल पर निर्भर करती है । शिवलिंग के कई रूपों का निर्माण विभिन्न कालक्रमों मे हुआ है । प्रकृतिक रूप से नदी के बहाव से अद्भुत शिव लिंगों का निर्माण होता है ( नर्मदा जी मे पाये जाने वाले ' वाणलिंग ' कंकर कंकर मे शँकर ) ।


 सिन्धु घाटी की सभ्यता से ले कर एकमुखी , चतुर्मुखी , पन्चमुखी , अष्टमुखी शिवलिंगों की निर्मित हुई । भारत एवं अन्य सनातन हिन्दु मान्यता वाले देशों मे लिंगोद्भव प्रतिमाओं की रचनायें बहुतायत से अभी भी पायी जाती हैं ।

(१) स्वयंभू लिंग - देवर्षियों की तपस्या से प्रसन्न हो कर उनके समीप प्रकट होने के लिये पृथ्वी के अन्तर्गत बीजरूप से व्याप्त भगवान शिव वृक्षों के अँकुर की भाँति भूमि को भेद कर ' नाद ' लिंग के रूप मे व्यक्त होते हैं और स्वंय प्रगट होने के कारण ' स्वयंभू ' कहलाते हैं ।
(२) बिन्दु लिंग - सोने या चाँदी के पात्र पर भूमि अर्थात वेदी पर अपने हाथ से लिखे शुद्ध प्रणवरूप लिंग मे भगवान शिव की प्रतिष्ठा और आवाहन् करने पर पूजा जाने वाला नाद लिंग - बिन्दु लिंग कहलाते हैं ( इनमें स्थावर और जंगम् दो भेद हैं )
(३) प्रतिष्ठित लिंग - देवताओं और ऋषियों द्वारा आत्मसिद्घि के लिये वैदिक मन्त्रो के उच्चारण पूर्वक अपने हाथ से शुद्ध भावनापूर्वक पौरुष लिंग ही ' प्रतिष्ठित लिंग ' कहलाते हैं ।
(४) चर लिंग - लिंग , नाभि , जिव्हा , नासाग्र भाग , शिखा के क्रम मे कटि , हृदय , और मस्तिष्क मे की गयी लिंग की भावना ही ' अध्यात्मिकता ' है और यही चर लिंग कहलाते हैं ।
(५) गुरु लिंग - गुरु मे शिव भावना करना तथा उनके निर्देश से पूजन के लिये अस्थायी रूप से मिट्टी से बनाया हुआ लिंग , जिसे पूजन पश्चात विसर्जित किया जाता है ' गुरु लिंग ' कहलाते हैं ।
॥ महादेव ॥

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