मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति




रुद्राक्ष एक खास तरह के पेड़ का बीज है। ये पेड़ आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में एक खास ऊंचाई पर, खासकर हिमालय और पश्चिमी घाट सहित कुछ और जगहों पर भी पाए जाते हैं।

रुद्राक्ष का पेड़ कोई सामान्य वृक्ष नही है | इसकी उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा है जो पुराणों में आती है | इसके सम्बन्ध भगवान शिव से है | रुद्राक्ष शब्द रूद्र और अक्ष से मिलकर बना है |

इसका अर्थ है रूद्र के आँसू | भगवान शिव का ही दूसरा नाम है रूद्र और उनके आँखों के आंसू से बना है रुद्राक्ष| रुद्राक्ष का शिव पूजा में महत्त्व अत्यधिक है |

रुद्राक्ष एक प्रकार का जंगली फल माना जाता है, जो बेर के आकार का दिखाई देता है और यह हिमालय में उत्पन्न होता है। रुद्राक्ष जो है वह नेपाल में बहुतायत में पाया जाता है। जहां रुद्राक्ष दिखने में जामुन के समान होता है वहीं स्वाद में वह बेर के समान होता है। रुद्राक्ष अलग-अलग आकार और अलग-अलग रंगों में भी मिलता है। साथ ही रुद्राक्ष के फल के पक जाने के बाद इसका ऊपरी छिल्का उतार लिया जाता है और फिर इसके अंदर से प्राप्त होने वाली गुठली ही असल में रुद्राक्ष कहलाती है। इसी गुठली के ऊपर 1 से 14 तक धारियां बनी रहती हैं और इन्हें ही मुख कहा जाता है।

जान लें कि रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है, जो इस प्रकार है –
उत्तम श्रेणी: जिस रुद्राक्ष का आकार आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना जाता है।
मध्यम श्रेणी: वहीं, जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान होता है वह मध्यम श्रेणी में आता है।
निम्न श्रेणी: और चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष की गिनती निम्न श्रेणी में की जाती है।


रुद्राक्ष से जुडी कथा

एक बार की बात है जब भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर दुनिया के कल्याण के लिए कई सालों तक तप किया था लेकिन एक दिन अचानक ही उनका मन बहुत दु:खी हो गया और जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो उनमें से कुछ आंसूओं के बूंद जमीन पर आ गिरे। कहते हैं कि इन्हीं आंसूओं की बूदों से एक विशाल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। यही नहीं, इस खास वृक्ष पर जो फल लगे वह ही रुद्राक्ष थे और शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए यह पूरे देश में फैल गए।

शिव और रुद्राक्ष का है गहरा रिश्ता

भगवान शिव के रूप को देखने पर आप ये पाएंगे की उनके शरीर पर दो चीजो के ही आभूषण होते है | भोलेनाथ के एक आभूषण है नाग और दूसरा है रुद्राक्ष की माला | शिव ने इसे अपने दोनों हाथो में , गले में और सिर पर बांध रखा है |

शिव मंत्रो के जप में सबसे मुख्य रुद्राक्ष

यदि आप भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय जानते है , तो उसमे एक है मंत्र जप सही विधि से | भोलेनाथ को खुश करते है एकाग्रचित होकर किये गये मंत्रो के जप | आप शिव के मंत्र का रुद्राक्ष की माला के साथ जप करे और आशुतोष भगवान आप पर कृपा करेंगे |

रुद्राक्ष का महत्त्व

रुद्राक्ष की खासियत यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो आपके लिए आप की ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। इसीलिए रुद्राक्ष ऐसे लोगों के लिए बेहद अच्छा है जिन्हें लगातार यात्रा में होने की वजह से अलग-अलग जगहों पर रहना पड़ता है। आपने गौर किया होगा कि जब आप कहीं बाहर जाते हैं, तो कुछ जगहों पर तो आपको फौरन नींद आ जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर बेहद थके होने के बावजूद आप सो नहीं पाते। इसकी वजह यह है कि अगर आपके आसपास का माहौल आपकी ऊर्जा के अनुकूल नहीं हुआ तो आपका उस जगह ठहरना मुश्किल हो जाएगा। चूंकि साधु-संन्यासी लगातार अपनी जगह बदलते रहते हैं, इसलिए बदली हुई जगह और स्थितियों में उनको तकलीफ हो सकती है। उनका मानना था कि एक ही स्थान पर कभी दोबारा नहीं ठहरना चाहिए। इसीलिए वे हमेशा रुद्राक्ष पहने रहते थे। आज के दौर में भी लोग अपने काम के सिलसिले में यात्रा करते और कई अलग-अलग जगहों पर खाते और सोते हैं। जब कोई इंसान लगातार यात्रा में रहता है या अपनी जगह बदलता रहता है, तो उसके लिए रुद्राक्ष बहुत सहायक होता है।

रुद्राक्ष के फायदे

रुद्राक्ष के संबंध में एक और बात महत्वपूर्ण है। खुले में या जंगलों में रहने वाले साधु-संन्यासी अनजाने सोत्र का पानी नहीं पीते, क्योंकि अक्सर किसी जहरीली गैस या और किसी वजह से वह पानी जहरीला भी हो सकता है। रुद्राक्ष की मदद से यह जाना जा सकता है कि वह पानी पीने लायक है या नहीं। रुद्राक्ष को पानी के ऊपर पकड़ कर रखने से अगर वह खुद-ब-खुद घड़ी की दिशा में घूमने लगे, तो इसका मतलब है कि वह पानी पीने लायक है। अगर पानी जहरीला या हानि पहुंचाने वाला होगा तो रुद्राक्ष घड़ी की दिशा से उलटा घूमेगा। इतिहास के एक खास दौर में, देश के उत्तरी क्षेत्र में, एक बेहद बचकानी होड़ चली। वैदिककाल में सिर्फ एक ही भगवान को पूजा जाता था – रुद्र यानी शिव को। समय के साथ-साथ वैष्णव भी आए। अब इन दोनों में द्वेष भाव इतना बढ़ा कि वैष्णव लोग शिव को पूजने वालों, खासकर संन्यासियों को अपने घर बुलाते और उन्हें जहरीला भोजन परोस देते थे। ऐसे में संन्यासियों ने खुद को बचाने का एक अनोखा तरीका अपनाया। काफी शिव भक्त आज भी इसी परंपरा का पालन करते हैं। अगर आप उन्हें भोजन देंगे, तो वे उस भोजन को आपके घर पर नहीं खाएंगे, बल्कि वे उसे किसी और जगह ले जाकर, पहले उसके ऊपर रुद्राक्ष रखकर यह जांचेंगे कि भोजन खाने लायक है या नहीं।
रुद्राक्ष नकारात्मक ऊर्जा के बचने के एक असरदार कवच की तरह काम करता है। कुछ लोग नकारात्मक शक्ति का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह अपने आप में एक अलग विज्ञान है। अथर्व वेद में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है कि कैसे ऊर्जा को अपने फायदे और दूसरों के अहित के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। अगर कोई इंसान इस विद्या में महारत हासिल कर ले, तो वह अपनी शक्ति के प्रयोग से दूसरों को किसी भी हद तक नुकसान पहुंचा सकता है, यहां तक कि दूसरे की मृत्यु भी हो सकती है। इन सभी स्थितियों में रुद्राक्ष कवच की तरह कारगर हो सकता है।

रुद्राक्ष के प्रकार

रुद्राक्ष कितने तरह के है , इसके बारे में शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में रुद्राक्ष के 14 प्रकार बताए गए हैं जिन्हें अलग-अलग प्रयोजन के लिए पहना जाता है। इसलिए बस किसी भी दुकान से कोई भी रुद्राक्ष खरीदकर पहन लेना उचित नहीं होता। हालांकि पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुरक्षित विकल्प है जो हर किसी – स्त्री, पुरुष, बच्चे, हर किसी के लिए अच्छा माना जाता है। यह सेहत और सुख की दृष्टि से भी फायदेमंद हैं, जिससे रक्तचाप नीचे आता है और स्नायु तंत्र तनाव मुक्त और शांत होता है।  इनके मुख के आधार पर किया जाता है | यह एकमुखी , दो मुखी से लेकर चौदह मुखी तक होते है |
इन सभी का फल और महत्व भी अलग अलग है | सबसे ज्यादा एक मुखी रुद्राक्ष की मान्यता होती है | असली एकमुखी रुद्राक्ष मिलना दुर्लभ है


ऐसे रुद्राक्ष से बचें 


ध्यान रखें कि जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या फिर टूटा-फूटा हो… या यूं कहे कि पूरी तरह से गोल न हो… जिसमें उभरे हुए दाने न हों, ऐसा रुद्राक्ष पहनना शुभ नहीं माना जाता। वहीं, जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह शुभ व उत्तम माना जाता है।

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