सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

भगवान शिव के विचित्र शिंगार का महत्व!


जानिए शिवजी क्यों करते हैं इतने विचित्र शृंगार, क्या हैं इसका कारण शिव के स्वरूप का विशिष्ट प्रभाव अपनी अलग-अलग प्रकृति को दर्शाता है, हम पौराणिक मान्यता से देखें तो हर आभूषण का विशेष प्रभाव तथा महत्व शास्त्रों में बताया है। जानिए शिवजी के हर शृंगार का अर्थ।

पैरों में कड़ा
यह अपने स्थिर तथा एकाग्रता सहित सुनियोजित चरणबद्ध स्थिति को दर्शाता है। योगीजन भी शिव के समान ही एक पैर में कड़ा धारण करते हैं। अघोरी स्वरूप में भी यह देखने को मिलता है।

मृगछाला 
इस पर बैठकर साधना का प्रभाव बढ़ता है। मन की अस्थिरता दूर होती है। तपस्वी और साधना करने वाले साधक आज भी मृगासन या मृगछाला के आसन को ही अपनी साधना के लिए श्रेष्ठ मानते हैं।

रुद्राक्ष
यह एक फल की गुठली है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आंखों के जलबिंदु (आंसू) से हुई है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

नाग
भगवान शिव परम योगी, परम ध्यानी परम तपस्वी हैं। जब अमृत मंथन हुआ था, तब अमृत कलश के पूर्व गरल (विष) को उन्होंने कंठ में रखा था। जो भी विकार की अग्नि होती है, उन्हें दूर करने के लिए शिव ने विषैले नागों की माला पहनी।

खप्पर 
माता अन्नपूर्णा से शिव ने प्राणियों की क्षुधा शांति के निमित्त भिक्षा मांगी थी, इसका यह आशय है यदि हमारे द्वारा किसी अन्य प्राणी का कल्याण होता है, तो उसको प्रदान करना चाहिए।

डमरू
संसार का पहला वाद्य। इसके स्वर से वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई। इसलिए नाद ब्रह्म या स्वर ब्रह्म कहा गया है।

त्रिशूल
देवी जगदंबा की परम शक्ति त्रिशूल में समाहित है, यह संसार का समस्त परम तेजस्वी अस्त्र है, जिसके माध्यम से युग युगांतर में सृष्टि के विरुद्ध सोचने वाले राक्षसों का संहार किया है। राजसी, सात्विक और तामसी तीनों ही गुण समाहित है, जो समय-समय पर साधक को उपासना के माध्यम से प्राप्त होता रहता है।

शीश पर गंगा
संसार की पवित्र नदियों में से एक गंगा को जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए आह्वान किया गया, तो पृथ्वी की क्षमता गंगा के आवेग को सहने में असमर्थ थी, ऐसे में शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को स्थान देकर सिद्ध किया कि आवेग की अवस्था को दृढ़ संकल्प के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है।

चंद्रमा
चूंकि चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है, चंद्र आभा, प्रज्जवल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है। जो मन के शुभ विचारों के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, ऐसी अवस्था को प्राणी अपने यथायोग्य श्रेष्ठ विचारों को पल्लवित करते हुए सृष्टि के कल्याण में आगे बढ़ें।

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