शुक्रवार, 5 जून 2020

ॐ ही गणेश


कुछ विद्वान तो यह भी कहते हैं कि “ॐ” का अर्थ ही गणेश है। इसी वजह से किसी भी मंत्र से पहले ॐ यानि गणपति का नाम आता है।

गणपति को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिनमें विघ्नहर्ता, गणेश, विनायक आदि प्रमुख हैं। शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणपति के नामों में गणेश, गणपति, विघ्नहर्ता और विनायक सर्वप्रमुख हैं।

भगवान गणेश को एकदंत भी कहा जाता है, जिससे संबंधित भी एक अद्भुत कथा वर्णित है। कहा जाता है महर्षि वेद व्यास ने स्वयं गणेश जी से कहा कि वह महाभारत को लिखने की कृपा करें। गणेश जी ने उनकी बात सशर्त स्वीकार कर ली, गणेश जी की शर्त थी कि वेद व्यास बिना रुके महाभारत की कहानी कहेंगे।

गणेश जी की इस शर्त को स्वीकार करते हुए व्यास लगातार बोलते रहे और गणेश जी लिखते रहे। लिखते-लिखते अचानक उनकी कलम टूट गई तो उन्होंने शीघ्रता से अपना एक दांत तोड़कर उसे कलम के रूप में प्रयोग करके लिखना आरंभ किया। इसी वजह से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार विष्णु के अवतार भगवान परशुराम, शिव से मिलने के लिए जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें गणेश जी ने रोक लिया। इस पर क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने महादेव द्वारा दिए गए फरसे से गणेश पर प्रहार किया। भगवान शिव द्वारा प्रदत्त फरसे का सम्मान करते हुए गणेश उसके आगे से नहीं हटे और अपना एक दांत गंवा दिया।

स्कंद पुराण में स्कंद अर्बुद खण्ड में भगवान गणेश के प्रादुर्भाव से जुड़ी कथा मौजूद है जिसके अनुसार भगवान शंकर द्वारा मां पार्वती को दिए गए पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद ही गणेश जी ने अर्बुद पर्वत (माउंट आबू), जिसे अर्बुदारण्य भी कहा जाता है, पर जन्म लिया था। इसी वजह से माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है।

गणेश जी के जन्म के बाद समस्त देवी-देवताओं के साथ स्वयं भगवान शंकर ने अर्बुद पर्वत की परिक्रमा की, इसके अलावा ऋषि-मुनियों ने वहां गोबर द्वारा निर्मित गणेश की प्रतिमा को भी स्थापित किया। आज इस मंदिर को सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर ने सपरिवार इस पर्वत पर वास किया था इसलिए इस स्थान को वास्थान जी तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
ॐ श्री गनेशया नमः

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