बुधवार, 27 मई 2020

किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश आराधना को जरूरी कहा गया है।


 हिन्दू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में यह स्पष्ट तौर पर यह उल्लिखित किया गया है कि सर्वप्रथम भगवान गणेश के स्मरण से पहले किसी भी देवी-देवता की पूजा करना फलित नहीं हो पाएगा। शिव और पार्वती की संतान गणेश को हम कई नामों से पुकारते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि इंसान के शरीर और गज के सिर वाले भगवान गणेश ने दरअसल यह आकृति किन हालातों में प्राप्त की।

गणेश जी का जन्म और उनके प्रादुर्भाव से जुड़ी अनेक कथाएं वर्णित हैं, वह किन परिस्थितियों में जन्मे और किन परिस्थितियों में उन्हें गज का सिर धारण करना पड़ा, इसके संबंध में बहुत सी कहानियां हैं। आज हम आपको ऐसी ही कुछ प्रसिद्ध कथाओं के विषय में बताते हैं, जो गणेश जी के प्रादुर्भाव की कहानी कहती हैं।
गणपति का अर्थ

जानकारों के अनुसार गणपति शब्द गण और पति शब्द के युग्म से बना है। महर्षि पाणिनी के अनुसार दिशाओं को गण कहा जाता है। इस आधार से गणपति का अर्थ हुआ सभी दिशाओं का स्वामी। गणपति की आज्ञा के बिना कोई भी देवता किसी भी दिशा से पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते। पहले स्वयं गणपति आकर दिशाओं से जुड़ी बाधाओं को दूर करते हैं और फिर अन्य देवी-देवता वहां उपस्थित होते हैं। इस प्रक्रिया को महाद्वारपूजन या महागणपति पूजन भी कहा जाता है। यही कारण है कि किसी भी देवी-देवता की पूजा अर्चना करने से पहले गणेश जी का आह्वान किया जाता है।


देवताओं के मुखिया

कुछ पुराणों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि एक बार देवताओं में मुखिया का निर्णय करने हेतु एक प्रतियोगिता का आरंभ हुआ। इस प्रतियोगिता में सभी गणों को समस्त ब्रह्मांड की परिेक्रमा करके शीघ्रातिशीघ्र वापस भगवान शिव तक पहुंचना था। सभी देवताओं ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और अपने-अपने वाहन पर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल गए। गणेश जी ने ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की अपेक्षा भगवान शिव और देवी पार्वती की ही परिक्रमा कर ली और यह कहा कि माता-पिता की परिक्रमा ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है।
भगवान शिव, गणपति के इस उत्तर से संतुष्ट हुए और उन्होंने गणेश को विजेता घोषित कर गणपति के पद पर नियुक्त कर दिया। साथ ही साथ उन्हें यह वरदान दिया कि किसी भी कार्य का शुभारंभ या देवी-देवताओं की आराधना गणपति के स्मरण के बिना अधूरी ही रह जाएगी।

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