गुरुवार, 7 जनवरी 2021

शिव के पाँच मुख्य स्वरूप

                                     

निराकार ब्रह्म शिव शिवा जो दिव्य प्रकाश पुंज स्वरूप है . सृष्टि रचना हेतु शिवजी ने प्रथम इस पाँच स्वरूप में सगुन साकार स्वरूप धारण किया.

1 भूमि तत्व = सद्योजात (ब्रह्मा) महा गणपति
2 जल तत्व = अघोरेश्वर (महामाया )
3 वायु तत्व = वामदेव (नारायण)
4 अग्नि तत्व = तत्पुरुष (सूर्य)
5 आकाश तत्व = इशानरूप ( शंकर महादेव)

विश्व के किसीभी शिवमन्दिरमे शिवलिंग का पूर्व दिशा का मुख सूर्य ,पश्चिम दिशाका मुख गणपति, उत्तर दिशाका मुख नारायण, दक्षिण दिशा मुख भगवती ओर ऊर्ध्व मुख महादेव है , शिवलिंग के वर्तुल में 16 मातृका ओर भैरव ,दूसरे वर्तुल में 24 शक्ति और वीर , तीसरे वर्तुल में 64 योगिनी ओर क्षेत्रपाल है,दस दिशाओं के देव और मंदिर की निम्ब में नवग्रह स्थापन होता है , मंदिर परिक्रमा में सभी भैरव,वीर,गण देवता का स्थापन किया जाता है इस तरह शिव मंदिरमे दर्शन पूजा से एक साथ सर्व देव देवी का पूजन स्वयं हो जाता है!

शिवजी के पूजन स्मरण केलिए ऐसे तो स्नेक मंत्र और स्तोत्र की विविद्ध ऋषि मूनियोने रचना की है ,पर आदि शंकराचार्य ने शिवजी के सभी स्वरूप स्थिति का अद्भुत वर्णन के साथ जो स्तोत्र की रचना की है वो श्रेष्ठ है

भगवान शिव की सबसे शक्तिशाली पवित्र स्तुति
आज के समय में हर मनुष्य तमाम परेशानियों से घिरा हुआ है। ऐसे समय में विचलित हो जाता है और सोचता है कि काश! कोई ऐसा मंत्र या पाठ मिल जाए जिससे उसके जीवन की सभी परेशानियां दूर होकर वो शांतिपूर्ण तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सकें।

यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है एक स्तुति, जो भगवान शंकर के अवतार माने गए भगवान शंकराचार्य द्वारा रची गई है इसलिए इसे साक्षात शंकर द्वारा दिया गया सुख का मंत्र भी माना जाता है, जो 'वेदसार स्तव' के नाम से प्रसिद्ध है। कोई भी मनुष्य प्रतिदिन या सिर्फ प्रति सोमवार सुबह-शाम भगवान शिव की पूजा कर इसका पाठ और स्मरण करता है, वह मनुष्य जीवन के समस्त सुखों को प्राप्त करता है।

शिव पूजन की सरल विधि :
प्रतिदिन सुबह शिवलिंग पर जल, दूध या पंचामृत स्नान के बाद फूल और श्रीफल अर्पित करें। तत्पश्चात शाम के समय भगवान भोलेनाथ की पंचोपचार पूजा में बिल्वपत्र, धतूरा, आंकड़ा, अक्षत, सफेद एवं केसर चंदन तथा मिठाई का भोग लगाएं और मंत्र स्तुति का पाठ कर प्रसाद ग्रहण करें।

शिव स्तुति मंत्र :
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।

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