मंगलवार, 19 जनवरी 2021

काल और महाकाल

                      


काल को जब तक नही समझते तब तक महाकाल की परिभाषा का ज्ञान ही नही होगा ।
काल का अर्थ है चिरंतन सत्य जिसको कोई ठुकरा नही सकता । मृत्यु से अलग है काल ।
काल का अर्थ है अंत । काल का अर्थ है समय । हर एक का सृजन और अंत निश्चित समय पर होता है जो पहले से तय है । जीवित हो या निर्जिब हर एक का सृजन हुआ है तो समय के साथ अंत भी होगा ।
और महाकाल का अर्थ है जो उसके परे हों । जिनका न तो सृजन होता है और न ही ध्वंस । *काल-जीत महाकाल कहलाते हैं वो!

मृत्यु को जीतना मृत्युंजय कहलाता है । लेकिन काल को जितना महाकाल कहलाता है ।


जो मृत्यु को जीत लेता है वो अमर हो जाता है । हर वो व्यक्ति अपने आप मे मृत्युंजय है जिसने अपने मृत्यु को जीत लिया जैसे कि रावण कर्ण अर्जुन युधिष्ठिर दुर्योधन आदि । जिन्होंने अपने मरने के बाद भी अमर रहे हैं । आज हम उन सभी को याद करते हैं । इस लिस्ट में गुरु गोरखनाथ आदि गुरु संकराचार्य राम कृष्ण परमहसँ वामाखेपा दैत्य गुरु शुक्राचार्य आदि सब हैं ।


इन सब को मृत्युंजय महादेव की कृपा प्राप्त हुई तब जाकर ये सब मृत्युंजय बन पाए । मरने के बाद भी अपने अच्छे या बुरे कर्मों के चलते अमर रहे ।


विष्णु तो उनको अपनाते हैं जो धर्म की मार्ग पर चलते हैं नियम का पालन करते हैं लेकिन महादेव ने तो सबको अपनाया । देव और असुर सब ने उन्ही को आराधा ।


जिनका कोई अंत नही । जो अपने आप मे अंत हीन है । काल चक्र की सीमा में वो बंधे हुए नही हैं ।
हनुमान जी विभीषण अश्वस्थमा आदि जिनको भी अमर मानते हैं आज के युग मे कल्प के अंत मे उन सब को भी विलीन होना पड़ता है और नए कल्प के साथ फिर से उनका सृजन या अवतार होता है जो कि इन्ही महाकाल के अधीन है ।


जब सृष्टि विलीन हो जाती है तब एक मात्र शिव ही बचते हैं अपने निराकार रूप में बम्ह स्वरूप । और फिर जब नया सृष्टि का निर्माण होता है तब इन्ही की इच्छा से होता है । पराशक्ति महामाया जगदम्बा भी इन्ही के अंदर समाहित हो जाती है और बाद में इन्ही से उत्तपन्न होती है ।


सब को इनका नियम मानकर चलना पड़ता है *(काल चक्र भी इन्ही की इच्छा से चलता है और काल भैरव के रूप में महादेव खुद उसको चलाते हैं)*


जन्म मरण के बंधन से मुक्त हैं वो । अघोरियों में सर्वश्रेष्ठ अघोरी हैं वो अघोरेश्वर । जिनका निवास ही समशान है । तंत्र के जनक रचयिता है वो लेकिन हर तंत्र मंत्र से परे हैं वो ।
हर आशा निराशा से परे है उस शिव की परिभाषा ।


शिव को न तो किसीने साध पाया है और न ही कोई साध पायेगा । बस इनकी कृपा प्राप्त हो जाए तो सब कुछ मिल जाता है । कोई साधना या फिर कोई मन्त्र तंत्र में बंधे नही हैं । सभी से परे हैं । करोड़ों जन्म लग जाते हैं इनकी कृपा  का पात्र बनने में ।उन्ही की कृपा मांगो पूरा जीवन भी कम पड़ जायेगा उसको पाने में ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें