मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा

 



भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है. शिवपुराण में कहा गया है, कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था. वह राक्षस कुंभकर्ण और कर्कटी नाम की एक राक्षसी का पुत्र था. परन्तु उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था. अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी. समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया.

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया. वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया. उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवताओ भी भयभीत रहने लगे.

धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी. युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया. जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता. उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए.


उसके बाद भीम ने प्रसन्नतापूर्वक सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने का अभियान चलाया.वह सर्वप्रथम कामरूप देश के राजा सुदक्षिण को जीतने के लिए पहुँचा.उस पराक्रमी राक्षस भीम ने युद्ध में परास्त कर धर्म प्रेमी और शिव के अनन्य भक्त राजा सुदक्षिण को कैद कर लिया.सुदक्षिण के पैरों में बेड़ी डालकर उन्हें एकान्त स्थान में निरुद्ध (बन्द) कर दिया.उस एकान्त स्थान का लाभ उठाते हुए शिव भक्त राजा सुदक्षिण ने भगवान शिव की उत्तम पार्थिव मूर्ति बनाकर पंचाक्षर मन्त्र अर्थात 'ॐ नम: शिवाय' का जप और उनका भजन-पूजन प्रारम्भ कर दिया.

जब ये बात भीम राक्षस को पता चली तो वह राक्षस क्रोध से आग – बबूला हो उठा.वह राजा का वध करने हेतु हाथ में तलवार लेकर चल पड़ा.ध्यान में मग्न राजा को देखकर उसका चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था.उसने पूजन सामग्री, पार्थिव शिवलिंग, वातावरण को देखकर तथा उसके प्रयोजन और स्वरूप को समझकर मान लिया कि राजा उसके अनिष्ट के लिए ही कुछ कर रहा है.उस महाक्रोधी राक्षस ने ऐसा विचार किया कि इन सब पूजन सामग्रियों सहित इस नरेश को भी मैं शीघ्र ही नष्ट कर देता हूँ.


उसने राजा को डाँट-फटकार लगाते हुए पूछा कि ‘तुम यह क्या कर रहे हो?’ राजा भगवान शंकर के समर्पित भक्त थे.इसलिए उन्होंने निर्भयतापूर्वक कहा कि ‘मैं चराचर जगत के स्वामी भगवान शिव की पूजा कर रहा हूँ.’
यह सुनकर मद में मतवाले उस राक्षस ने भगवान शिव के प्रति बहुत से दुर्वचन बोले और उनका अपमान किया तथा पार्थिव लिंग पर तलवार का प्रहार किया.उसकी तलवार लिंग को छू नहीं पायी, तभी भगवान रुद्र (शिव) तत्काल प्रकट हो गये।भागवान शिव ने अपने पिनाक से उसकी तलवार के टुकड़े-टुकड़े कर दिया.उसे भस्म कर दिया.देवताओ के प्रार्थना पर भगवान शिव वही ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें