रविवार, 21 फ़रवरी 2021

मृत्यु से पार ले जाते हैं महाकाल

 


शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में उज्जैन के महाकाल प्रथम पूज्य हैं। त्रिलोक में (भू, भुव: और स्व:) धरती, आकाश और पाताल में तीन शिवलिंग हैं, जो प्रथम पूज्य हैं। आकाश में तारे लिंग स्वरूप हैं, पाताल में हाटकेश्वर और धरती पर महाकाल। सौर पुराण में महाकाल को दिव्यलिंग कहा गया है। कालचक्र की शुरुआत महाकाल से होती है। प्रलय काल में सारा संसार अंधेरे में डूबा था और महाकाल ने ब्रह्माजी को सृष्टि का निर्माण करने को कहा।

पुन: ब्रह्माजी ने महाकाल से प्रार्थना की कि वे महाकाल वन में निवास करें। यह घटना पुरातन काल में उज्जयिनी में हुई और तब से महाकाल उज्जैन में निवास कर रहे हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकालेश्वर ही दक्षिणमुखी हैं।

दक्षिण दिशा यमराज की मानी जाती है और यम पर महाकाल की दृष्टि उन्हें नियंत्रित करने के लिए है। महाकाल का समय पर नियंत्रण है। काल या समय के समक्ष मनुष्य और देवता दोनों ही नतमस्तक हैं। इस काल पर अगर किसी का शासन स्थापित है, तो वह हैं महाकाल के रूप में शिव। इसलिए शिव की स्तुति में, शिव का अभिषेक कर भक्त अपने जीवन को आरोग्य, रस, रूप, गंध से सिंचित करने की कामना करते हैं और पूर्ण आयु को प्राप्त कर उन्हीं में विलीन होने की इच्छा प्रकट करते हैं। महाकाल की अर्चना जीवन के श्रेष्ठतम समय के आरम्भ का सूत्रपात है।

अकसर हम भविष्य की दुविधा को लेकर चिंतित रहते हैं, पर उत्तर तो हमेशा समय के गर्भ में है। महाकाल रूप में शिव एक परिपूर्ण स्वस्थ जीवन का आशीष देते हैं और अंतकाल में शिव में विलीन होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने का आश्वासन भी देते हैं।इसी में जीवन की श्रेष्ठता है, क्योंकि भौतिक प्रगति व आध्यात्मिक उन्नति के बीच समन्वय स्थापित हो जाता है।

मृत्यु को अंत और जीवन को आरंभ मान लिया गया है। पर, अंत और आरंभ संयुक्त हैं और इसकी पुनरावृत्ति आदिकाल से सृष्टि के केंद्र में स्थापित महाकाल कर रहे हैं। महाकाल रोगी, जर्जर काया को अपनी करुणा के विस्तार में ले लेते हैं और पूर्ण आरोग्य तथा अकाल मृत्यु से अभय देते हैं। मृत्यु अंत नहीं है, वरन एक शुरुआत है, क्योंकि समय की गति चक्रीय है। इसी सत्य को रेखांकित करने हेतु महाकाल ने चिता की राख का भस्म लेपन किया है।


मृत्यु से पार ले जाते हैं महाकाल-

मृत्यु एक बार आती है, पर उसके पूर्व विघ्न बाधाओं से हार कर हम हजार बार निराश होते हैं, मरते हैं। महाकाल ने समय को जीता है और समय उसी के अधीन होता है, जिसमें शौर्य है। महाकाल रूप में शिव शौर्य और उत्साह का पोषण करते हैं। लेकिन जहां शिव हैं, वहां कुछ वैराग्य भाव अवश्य होगा। स्पष्ट शब्दों में कहें तो महाकाल का मार्ग कर्मयोग का मार्ग है। समय ऐसे लोगों के अधीन होता है।
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!! जय श्री महाकाल !!

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