सोमवार, 28 जून 2021

किन पेड़ों की लकड़ी से नहीं बनानी चाहिए भगवान की मूर्ति

1. दूध वाले वृक्ष – जिन पेड़ों से दूध निकलता हो, उनका उपयोग देवताओं की मूर्ति बनाने में नहीं करना चाहिए।

2. कमजोर वृक्ष – जिन पेड़ों को दीमक आदि जंतुओं ने खोखला कर दिया हो, उससे भी देवताओं की मूर्ति न बनवाएं।

3. वल्मीक वाले वृक्ष – जिन पेड़ों के नीचे बांबी (सांप व चींटियों के रहने का स्थान) हो। उससे भी देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए।


4. शमशान के वृक्ष – यदि कोई पेड़ शमशान में उगा हो तो उससे भी देवी-देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए। ये अशुभ होता है।


5. पुत्रक वृक्ष – बिना संतान वाले किसी व्यक्ति ने यदि कोई पेड़ अपने पुत्र के रूप में लगाया हो, उससे भी देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए।

6. सूखा वृक्ष – ऐसे पेड़ जिनके आगे का भाग सुख गया हो या जिनकी एक-दो ही शाखा हो, उससे भी देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए।

7. जिस पेड़ पर पक्षी रहते हों तथा हवा, पानी, बिजली या जानवरों से दूषित पेड़ों का उपयोग भी देव प्रतिमा बनवाने में न करें। 

बुधवार, 16 जून 2021

वैराग्य क्या होता है ?



एक समय महादेव अपनी  ज्ञान सभा मैं बैठे थे ! तब किसी ऋषि  ने महादेव से प्रश्न किया के प्रभु आप तोह सदा वैराग्य के प्रतीक माने गए है परंतु विवाह के उपरांत आप इस तरह ग्रस्तआश्रम में प्रवेश करना क्या यह आपके दर्शन शास्त्र के नियम के विपरीत नही होगा तोह क्या आप सदा के लिए वैराग्य को त्याग देंगे प्रभु ?

महादेव ने उत्तर दिया नही ऋषि कदापि नही विवाह श्रिश्टी के उधार के लिए और सांसारिक कर्म के चलते रहने के लिए अनिवार्य है और यही कारन है के मैंने विवाह स्वीकार किया और रहा प्रश्न वैराग्य का  दर्शन शास्त्र के अनुसार और मेरी विचार धरा के अन्तर्गत विवाह और वैराग्य एक दूसरे के पूरक बन सकते है ! मेरा यह विवाह इसी बात का आदर्श उद्धरण बनेगा !

ऋषि ने फिर प्रश्न किया विवाह तोह पवर्ती धर्म का प्रतीक है जिसके द्वारा परिवार की स्थपना होती है और परिवार की स्थापना से उत्पन होती है सांसारिक मोह माया और इच्छाएं उन इच्छाओ के पूर्ति हेतु हम देवी देवताओ को प्रसन करने हेतु हम यग करते है और इसी कारण कर्तव्य नियम विधि विधान यह सब अनिवार्य हो जाता है ! किन्तु वैराग तोह निवरती धर्म का प्रतीक है जिसने सभी मोह माया का त्याग की सांसारिक मोह माया का त्याग ही जीवन का मुख उद्देश्य रह जाता है ? जहा न कर्तव्य महत्व रखता है न विधि विधान और न ही कोई नियम से स्वीकार है दोनों विपरीत दिशा में जाते हुए मार्ग है दोनों का लक्ष्य उतना ही भिन है जितना यह पृथ्वी और आकाश भला दोनों का मिलान कैसे संभव है महादेव ?

महादेव ने उत्तर दिया सब के साथ रहते हुए भी किसी का मोह न करना यह भी तोह वैराग्य हो सकता है ! विवाह के नियमो का पालन करना किन्तु माया में न उलझन , अहम  भाव को दूर रख अपने धर्म की पूर्ति करना यह  वैराग्य के रूप ही तोह है ! यदि कोइए वैवाहिक जीवन की इस परिभाषा को अपना ले तोह विवाह और वैराग्य एक दूसरे के पूरक बन सकते है और यही सबसे उत्तम विवाह का सर्वेष्ट उद्धरण बन जाएगा!


सोमवार, 7 जून 2021

क्यों धरा बजरंगबली हनुमान ने पंचमुखी रूप



यह बात उस समय की है भगवान राम को रावण का युद्ध अन्तिमचरण में था ! तब रावण ने अपने आप को हार से  बचने की लिए एक अंतिम योजना बनाइ !
उसने अपने मायावी भाई अहिरावन को याद किया जो मां भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र मंत्र का का बड़ा ज्ञाता था। 

उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सारी सेना को निद्रा में डाल दिया तथा राम एव लक्ष्मण का अपरहण कर उनकी देने उन्हें पाताल लोक ले गया। कुछ समय बाद जब माया का प्रभाव कम हुआ तब विभिषण समझ गए की ये  कि यह कार्य अहिरावन ने किया है और तब यह सारी  वार्ता विभीषण ने हनुमान जी को समझी और कहा की श्री राम और लक्ष्मण सहायता करने के लिए उन्हें पाताल लोक जाना होगा क्योंकि राम जी और लक्ष्मण जी का हरण किया गया है  तब हनुमान जी ने पाताल  प्रस्थान  किया जहाँ उन्हें पाताल लोक के द्वार पर उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज मिला और युद्ध में उसे हराने के बाद हनुमान जी ने अहिरावण का वध किया और बंधक श्री राम और लक्ष्मण से मिले

वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा।

 उत्तर में वराह मुखदक्षिण दिशा में नरसिंह मुखपश्चिम में गरुड़ मुखआकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।

 इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया।  

गुरुवार, 3 जून 2021

सुबह-सुबह के समय ही क्यों करना चाहिए पूजा ?

 भगवान की पूजा के लिए सुबह-सुबह का समय सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। वैसे तो दिन में कभी भी सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जा सकती है लेकिन ब्रह्म मुहूर्त में पूजा-आराधना करने का विधान है।


शास्त्रों के अनुसार प्रभु भक्ति के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि सुबह के समय हमारा मन शांत रहता है। नींद से जागने के बाद मन एकदम शांत और स्थाई रहता है। दिमाग में इधर-उधर की बातों या व्यर्थ विचार नहीं होते। भगवान की भक्ति के लिए जरूरी है कि मन एकाग्र रहे ताकि प्रभु में पूरा ध्यान लगाया जा सके।
सुबह के बाद दिन में किसी और समय में हम कई कार्य करते हैं जो कि हमारे मन-मस्तिष्क को पूरी एकाग्र नहीं होने देते। जिससे मन अशांत रहता है, कई बुरी और अधार्मिक बातों में भी मन उलझ जाता है। जिससे भक्ति में ध्यान लगाना असंभव जैसा ही होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त को पूजादि कर्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

भगवान उसी भक्ति से प्रसन्न होते हैं जहां मन शांत हो और किसी भी प्रकार की अधार्मिक बातें ना हो। सुबह की गई पूजा के प्रभाव से मन को इतना बल मिलता है कि दिनभर के सारे तनाव आसानी से सहन कर सके। दिमाग तेजी से चलता है, हम एक साथ कई योजनाओं पर कार्य कर पाते हैं। इसी वजह से सुबह-सुबह पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।

मंगलवार, 1 जून 2021

भगवान शिव ने पार्वती को बताए थे जीवन के ये 5 रहस्य

 

भगवान शिव ने देवी पार्वती को समय-समय पर कई ज्ञान की बातें बताई हैं। जिनमें मनुष्य के सामाजिक जीवन से लेकर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की बातें शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती को 5 ऐसी बातें बताई थीं जो हर मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, जिन्हें जानकर उनका पालन हर किसी को करना ही चाहिए-


1. क्या है सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पाप

देवी पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा धर्म और अधर्म मानी जाने वाली बात के बारे में बताया है। भगवान शंकर कहते है-
नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्।।

अर्थात- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या उसका साथ देना। इसलिए हर किसी को अपने मन, अपनी बातें और अपने कामों से हमेशा उन्हीं को शामिल करना चाहिए, जिनमें सच्चाई हो, क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म है ही नहीं। असत्य कहना या किसी भी तरह से झूठ का साथ देना मनुष्य की बर्बादी का कारण बन सकता है।


2. काम करने के साथ इस एक और बात का रखें
आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।

अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।

कई लोगों के मन में गलत काम करते समय यही भाव मन में होता है कि उन्हें कोई नहीं देख रहा और इसी वजह से वे बिना किसी भी डर के पाप कर्म करते जाते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है। मनुष्य अपने सभी कर्मों का साक्षी खुद ही होता है। अगर मनुष्य हमेशा यह एक भाव मन में रखेगा तो वह कोई भी पाप कर्म करने से खुद ही खुद को रोक लेगा।


3. कभी न करें ये तीन काम करने की इच्छा
मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्।

अर्थात- आगे भगवान शिव कहते है कि- किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जैसा काम करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है।

यानि मनुष्य को अपने मन में ऐसी कोई बात नहीं आने देना चाहिए, जो धर्म-ग्रंथों के अनुसार पाप मानी जाए। न अपने मुंह से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए और न ही ऐसा कोई काम करना चाहिए, जिससे दूसरों को कोई परेशानी या दुख पहुंचे। पाप कर्म करने से मनुष्य को न सिर्फ जीवित होते हुए इसके परिणाम भोगना पड़ते हैं बल्कि मरने के बाद नरक में भी यातनाएं झेलना पड़ती हैं।


4. सफल होने के लिए ध्यान रखें ये एक बात

संसार में हर मनुष्य को किसी न किसी मनुष्य, वस्तु या परिस्थित से आसक्ति यानि लगाव होता ही है। लगाव और मोह का ऐसा जाल होता है, जिससे छूट पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इससे छुटकारा पाए बिना मनुष्य की सफलता मुमकिन नहीं होती, इसलिए भगवान शिव ने इससे बचने का एक उपाय बताया है।
-दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते।

अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते।।

अर्थात- भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य को जिस भी व्यक्ति या परिस्थित से लगाव हो रहा हो, जो कि उसकी सफलता में रुकावट बन रही हो, मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना शुरू कर देना चाहिए। सोचना चाहिए कि यह कुछ पल का लगाव हमारी सफलता का बाधक बन रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे मनुष्य लगाव और मोह के जाल से छूट जाएगा और अपने सभी कामों में सफलता पाने लगेगा।


5. यह एक बात समझ लेंगे तो नहीं करना पड़ेगा दुखों का सामना
नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।
सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

अर्थात
- आगे भगवान शिव मनुष्यो को एक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि- मनुष्य की तृष्णा यानि इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं होता और इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है। मनुष्य का अपने मन पर वश नहीं होता। हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। जरुरी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करके शांत मन से जीवन बिताएं।