बुधवार, 16 जून 2021

वैराग्य क्या होता है ?



एक समय महादेव अपनी  ज्ञान सभा मैं बैठे थे ! तब किसी ऋषि  ने महादेव से प्रश्न किया के प्रभु आप तोह सदा वैराग्य के प्रतीक माने गए है परंतु विवाह के उपरांत आप इस तरह ग्रस्तआश्रम में प्रवेश करना क्या यह आपके दर्शन शास्त्र के नियम के विपरीत नही होगा तोह क्या आप सदा के लिए वैराग्य को त्याग देंगे प्रभु ?

महादेव ने उत्तर दिया नही ऋषि कदापि नही विवाह श्रिश्टी के उधार के लिए और सांसारिक कर्म के चलते रहने के लिए अनिवार्य है और यही कारन है के मैंने विवाह स्वीकार किया और रहा प्रश्न वैराग्य का  दर्शन शास्त्र के अनुसार और मेरी विचार धरा के अन्तर्गत विवाह और वैराग्य एक दूसरे के पूरक बन सकते है ! मेरा यह विवाह इसी बात का आदर्श उद्धरण बनेगा !

ऋषि ने फिर प्रश्न किया विवाह तोह पवर्ती धर्म का प्रतीक है जिसके द्वारा परिवार की स्थपना होती है और परिवार की स्थापना से उत्पन होती है सांसारिक मोह माया और इच्छाएं उन इच्छाओ के पूर्ति हेतु हम देवी देवताओ को प्रसन करने हेतु हम यग करते है और इसी कारण कर्तव्य नियम विधि विधान यह सब अनिवार्य हो जाता है ! किन्तु वैराग तोह निवरती धर्म का प्रतीक है जिसने सभी मोह माया का त्याग की सांसारिक मोह माया का त्याग ही जीवन का मुख उद्देश्य रह जाता है ? जहा न कर्तव्य महत्व रखता है न विधि विधान और न ही कोई नियम से स्वीकार है दोनों विपरीत दिशा में जाते हुए मार्ग है दोनों का लक्ष्य उतना ही भिन है जितना यह पृथ्वी और आकाश भला दोनों का मिलान कैसे संभव है महादेव ?

महादेव ने उत्तर दिया सब के साथ रहते हुए भी किसी का मोह न करना यह भी तोह वैराग्य हो सकता है ! विवाह के नियमो का पालन करना किन्तु माया में न उलझन , अहम  भाव को दूर रख अपने धर्म की पूर्ति करना यह  वैराग्य के रूप ही तोह है ! यदि कोइए वैवाहिक जीवन की इस परिभाषा को अपना ले तोह विवाह और वैराग्य एक दूसरे के पूरक बन सकते है और यही सबसे उत्तम विवाह का सर्वेष्ट उद्धरण बन जाएगा!


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