गुरुवार, 22 जुलाई 2021

पूजन साधना में भोग का महत्व



 जिस प्रकार इंसान को अपनी स्वास प्रिय होती है उसी तरह देवो को भी अपना भोग प्रिय है। यदि आपने कुछ मांगा है और उसके एवज में भोग नही दिया तो देव शक्ति रुष्ट हो जाती है। आपको भोग सामान्य सी चीज लगती है लेकिन देव देवी के लिए बहुत महत्व रखती है। जब कोई देव या देवी आपके लिए कार्य करती है तो उसमे काफी ऊर्जा का व्यय होता है और ऊर्जा की पूर्ति वो शक्ति आपके दिए भोग से करती है।


हम नित्य पूजन तो करते है लेकिन भोग नही लगाते तो आपके कुलदेव आपके इष्टदेव पूजन तक में भी नही आएंगे क्योकि आने जाने भी में ऊर्जा का व्यय होता है। आप हवन करते है तो सबसे पहले देवो को भोग लगता है तब उनका आवाहन होता है। बहुत से लोग कहते है हम 2-2 घण्टे पूजन करते है लेकिन शांति नही मिलती। सिर्फ दीप जला देने और चालीसा स्तोत्र पाठ कर देने से पूजन पूर्ण नही होता है बिना भोग के पूजन कभी पूर्ण नही हो सकता। जितने भी बड़े मन्दिर है उनमें नियम से भोग लगता है और भोग लगने के बाद मन्दिर में आरती पूजन होता है।

ऐसे ही साधक कोई साधना करता है तो उस देव या देवी का भोग लगता है फिर उसका आवाहन करके अपनी साधना आरम्भ करता है। अगर आप कुछ शक्तियों से इच्छा रखते है तो आपको भी उसके एवज में कुछ देना ही पड़ता है तब ही कुछ प्राप्त होता है।

आप देव देवी को भोग लगाते है इससे भी उनको मिलती है जिससे उनकी तृप्ति हो जाती है। आपको भोजन खाने के बाद ऊर्जा मिलती है लेकिन देव देवी इस भोजन में से जो हम भोग स्वरूप रखते है उसमे से ऊर्जा ग्रहण कर लेते है। क्योकि उनकी कोई देह नही होती। यही कारण है हम पूजन साधना में भोग सबसे पहले लगाते है। किसी शक्तियों से कार्य करवाते है तो भोग लगाते है क्योकि उनको भी कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। 

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