शुक्रवार, 17 मार्च 2017

गंगा अवतरण की कथा





सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हिमालय पर तपस्या कर रहे थे क्योंकि वो धरती का कल्याण और अपने पूर्वजो की मुक्ति हेतु महादेव की शरण में आते है ! जब उनकी तपस्या पूर्ण हो जाती है तब महादेव उनको बताते है के केवल एक गंगा का ही जल है ! जो इस धरती को पापो से मुक्ति दिलवा सकता है ! इस पृथ्वी को पूण भूमि बना सकता है और महादेव उनको बोलते है के ब्रह्मलोक को प्रस्थान करो गंगा वही है और ब्रह्म इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु तुम्हारी सहायता अवश्य करेगे ! किन्तु जब भागीरथ गंगा से धरती पर चलने न अनुग्रह कर रहे थे तब गंगा ने कहा मैं आपकी किसी भी प्रकार की सहायता नही कर सकती ! तब ब्रह्म गंगा को समझते है के तुम्हारा जीवन धरती के कल्याण हेतु हुआ है अन्यथा वो उद्देश्य हिन् है ! तब भागीरथ गंगा को बोलते है के  स्याम महादेव की भी यही इच्छा है पुनः धरती में जीवन लाने हेतु मुझसे आपसे आगमन का आग्रह करवाया है ! तब गंगा ने महादेव की इच्छा जान कर धरती पर जाने को तयार हुए  किन्तु मेरे परचंड परवाह को संतुलित  कर के उसे धरती के  योग्य बनाने की क्षमता केवल महादेव में है अन्यथा मेरे आवेग से धरती का विनाश निश्चित है ! धरती पर मेरा पुनः आगमन तभी संभव होगा जब महादेव  स॑यम उनके वेग को धरण करेगे ! इसके बाद भागीरथ महादेव के पास जाकर उनसे सारी बात बताई ! तब महादेव ने भागीरथ से कहा जाइये भागीरथ गंगा से बोलिये की धरती पर उनके  पुनः अवतरण हेतु उनके वेग को नियंत्रण हेतु  मैं उन्हें  अपनी जटाओ में धरण करुगा इसके बाद गंगा का धरती पर आगमन हुआ ! तब भागीरथ ने महादेव  से  कहा के हे महादेव आज आपके वरदान से समस्त संसार को और मेरे कठिन परिश्रम का फल मिलने वाला है इस लिए मैं आपको धरती और धरती वासियो की तरफ से नमन करता हूँ ! तब महादेव ने भागीरथ से कहा के आपके कठिन परिश्रम ने ही मुझे गंगा के धरती पर आवतरण की आवशकता का आभास दिलवाया आनेवाले समय में गंगा का नाम भागीरथी भी होगा गंगा में महत्वता उलेखनीय है इस जल की क्षमता धरती की उन्ह सभी विपदाओ को निषपर्वाह करने की है जो संसार की निष्ताओँ में बाधा डालते है ! आनेवाले समय में गंगा के वर्चस्प हेतु महासंग्राम अनुमानित है ! मनुष्य अपने भौतिक जीवन के विलासता में अत्यधिक रूप से लिप्त होता जाएगा परिणाम सिमित जल के साधन सुख जाएगे ! जल एक अतियंत दुर्लभ वास्तु हो जाएगा इन सभी कार्य कल्पो में केवल गंगा का जल ही अपने अतृष्य के प्रति ध्यान आकर्षित करवाती रहेगी ! मैं आपसे वचन लेना चाहता हूँ भगीरथ  गंगा की स्वछता और अविरोधता आपका प्रथम कर्तव्य होगा ! तब भगीरथ ने महादेव को वचन दिया के मैं गंगा के पवित्र जल की अवेलहन कभी नही होने दूंगा और मनुष्यो को गंगा की महानता के बारे में सदा जागरूक रखूंगा! तब जा कर गंगा भ्रमलोक के महादेव की जटाओं से होती हुए धरती पर अवतरण हुआ  को प्रस्थान करो गंगा वही है और भ्रमदेव इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु तुम्हारी सहायता अवश्य करेगे ! किन्तु जब भागीरथ गंगा से धरती पर चलने न अनुग्रह कर रहे थे तब गंगा ने कहा मैं आपकी किसी भी प्रकार की सहायता नही कर सकती ! तब भ्रमदेव  गंगा को समझते है के तुम्हारा जीवन धरती के कल्याण हेतु हुआ है अन्यथा वो उद्देश्य हिन् है ! तब भागीरथ गंगा को बोलते है के  स्याम महादेव की भी यही इच्छा है पुनः धरती में जीवन लाने हेतु मुझसे आपसे आगमन का आग्रह करवाया है ! तब गंगा ने महादेव की इच्छा जान कर धरती पर जाने को तयार हुए  किन्तु मेरे परचंड परवाह को संतुलित  कर के उसे धरती के  योग्य बनाने की क्षमता केवल महादेव में है अन्यथा मेरे आवेग से धरती का विनाश निश्चित है ! धरती पर मेरा पुनः आगमन तभी संभव होगा जब महादेव  स्यम उनके वेग को धरण करेगे ! इसके बाद भागीरथ महादेव के पास जाकर उनसे सारी बात बताई ! तब महादेव ने भागीरथ से कहा जाइये भागीरथ गंगा से बोलिये की धरती पर उनके  पुनः अवतरण हेतु उनके वेग को नियंत्रण हेतु  मैं उन्हें  अपनी जटाओ में धरण करुगा इसके बाद गंगा का धरती पर आगमन हुआ ! तब भागीरथ ने महादेव  से  कहा के हे महादेव आज आपके वरदान से समस्त संसार को और मेरे कठिन परिश्रम का फल मिलने वाला है इस लिए मैं आपको धरती और धरती वासियो की तरफ से नमन करता हूँ ! तब महादेव ने भागीरथ से कहा के आपके कठिन परिश्रम ने ही मुझे गंगा के धरती पर आवतरण की आवशकता का आभास दिलवाया आनेवाले समय में गंगा का नाम भागीरथी भी होगा गंगा में महत्वता उलेखनीय है इस जल की क्षमता धरती की उन्ह सभी विपदाओ को निषपर्वाह करने की है जो संसार की निष्ताओँ में बाधा डालते है ! आनेवाले समय में गंगा के वर्चस्प हेतु महासंग्राम अनुमानित है ! मनुष्य अपने भौतिक जीवन के विलासता में अत्यधिक रूप से लिप्त होता जाएगा परिणाम सिमित जल के साधन सुख जाएगे ! जल एक अतियंत दुर्लभ वास्तु हो जाएगा इन सभी कार्य कल्पो में केवल गंगा का जल ही अपने अतृष्य के प्रति ध्यान आकर्षित करवाती रहेगी ! मैं आपसे वचन लेना चाहता हूँ भगीरथ  गंगा की स्वछता और अविरोधता आपका प्रथम कर्तव्य होगा ! तब भगीरथ ने महादेव को वचन दिया के मैं गंगा के पवित्र जल की अवेलहन कभी नही होने दूंगा और मनुष्यो को गंगा की महानता के बारे में सदा जागरूक रखूंगा! तब जा कर गंगा भ्रमलोक के महादेव की जटाओं से होती हुए धरती पर अवतरण हुआ

गुरुवार, 16 मार्च 2017

आध्यात्मिक ज्ञान


                                         



इंसान कभी भी अपनी समस्या से मुक्ति नहीं पाता कभी परिवार वयापार कभी सवास्थय कभी निजीसमस्यां और इससे निजाद पाने के लिए वो कभी किसी न किसी के  दर पर जाता है ताकि उसके मन को शांति मिले उसकी समस्याओ का  समाधान मिले ! वो इसे लिए सिद्ध परुष को ढूंढने लग जाते है ! ताकि उनके आश्रीवाद से उनको उनकी समस्याओ से निजाद मिले और वो सुख और चैन का जीवन जी सके ! किन्तु वो भूल जाते है के एक सिधपरुष के आश्रीवाद से कल्याण कैसे होगा ! वो यह यह सोचते  उसके दिए हुए आश्रीवाद से  उनका कल्याण होगा वो उनके जैसे बन सकेंगे किसी भी प्रस्थिति का सामना करने में सक्षम हो सकेंगे भय नही होगा कष्ट नही होगा किन्तु ऐसा होता नही ! जब ऐसा नही होता तोह वो कहते है कोइ सरल उपाय बताइये जैसे कोइ जंत्रिवन्तरी कुछ ऐसा बांध दीजिये जैसे कोई  सीधी यंत्र दे दीजिये ज्ञान का धागा दे दीजिये ! यह सब पा कर भी वो अपने दुखो से समस्याओ से मुक्त नही हो पाते
क्योंकि वो आध्यात्मिक ज्ञान से दूर है मन की शांति सुख सिद्धियां यह कोई वस्तुएं नही होती और न ही इनका क्रय विक्रय किया जा सकता है और न कभी इनका आदान प्रदान किया जाता है ! पिता की सिध्यां पुत्र के उपयोग में नही आती ! पति की सीधी पत्नी के उपयोग में नहीं आती और गुरु की सिद्धियां शिष्य नहीं प्राप्त कर सकते जिस प्रकार वो  प्राप्त करना चाहते है ! उन्हें प्राप्त करने के लिए तप करना पड़ता है कठोर तप यह कोई आभूषण नहीं कोई अलंकार नहीं जो ऐसे प्राप्त किया जा सके वो चाहे तोह भी किसी को दे नहीं सकते क्योंकि इनका आदान प्रदान नही
किया   जा सकता इनको तोह केवल प्राप्त किया जा सकता है तपस्या से त्याग से ! सिद्ध पुरुष तोह केवल मार्ग दिखा सकता है मार्ग पर चलना या न चलना यह हम पर निर्भर करता है

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो, एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।




जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो, एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो, किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो, एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना। जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो, अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।

जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है. दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं... क्योकि वो कठोर होते है। छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर बड़ी रहमत... बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार देती है.. किस्मत और पत्नी भले ही परेशान करती है लेकिन जब साथ देती हैं तो ज़िन्दगी बदल देती हैं.।।

"प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा। विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी। साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा। किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं । मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती । एक साँस भी तब आती है, जब एक साँस छोड़ी जाती है!


नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है कि “चप्पल होते तो  अच्छा होता” बाद मेँ  “साइकिल होती तो कितना अच्छा होता” 

उसके बाद में “मोपेड होता तो थकान नही लगती”
बाद मे “मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ रास्ता कट जाता”
फिर ऐसा लगा की“कार होती तो धूप नही लगती”
फिर लगा कि, “हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट नही होता” \
जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान देखता है तो सोचता है, कि

“नंगे पाव घास में चलता तो दिल को कितनी “तसल्ली” मिलती”
जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश के मुताबिक नहीं
क्योंकि ‘जरुरत’ तो ‘फकीरों’ की भी ‘पूरी’ हो जाती है, और ‘ख्वाहिशें’  ‘बादशाहों ‘ की भी “अधूरी” रह जाती है!

 “जीत” किसके लिए, ‘हार’ किसके लिए ‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए

बुरे वक़्त ! ज़रा “अदब” से पेश आ !! “वक़्त” ही कितना लगता है “वक़्त” बदलने में
 मिली थी ‘जिन्दगी’ , किसी के ‘काम’ आने के लिए पर ‘वक्त’ बीत रहा है , “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए!

गुरुवार, 2 मार्च 2017

क्या आज तक किसी युद्ध से समस्या का समाधान हुआ है




क्या आज तक किसी युद्ध से समस्या का समाधान हुआ है ! अनेकोबार देवताओ  और  असुरो में घमासान युद्ध हुआ है ! किन्तु कभी उसका सार्थक परिणाम निकला है ! युद्ध करना पूर्णता निष्फल है ! सभी बोलते है है के हम युद्ध करने के पक्ष में नहीं है हम तोह केवल अपनी सुरक्षा के लिए युद्ध करने को ततपर है ! शक्ति का दुरूपयोग करना अनुचित हैं क्योंकि आपार शक्ति के साथ बड़ा उतार्देतव भी आता है शक्ति और दाइत्व के सही संतुलन के साथ जीवन चलता है ! 

इस लिए शांति का मार्ग अपनाओ  शांति भंग  करने का नही ! किसी भी देश पर अधिकार उनके अपने देश के लोगो का होता है  और हम उनपर अतिक्रम और  उनके अधिकार का हनन करने  की  चेष्ठा कर रहे है ! जब की तुम्हारा अधिकार अपने देश में सुरक्षित है !इस लिए शांति का मार्ग अपनाओ शांति भंग  करने का नहीं  मत भूलो के युद्ध से शांति कई महत्वपूर्ण होती है ,युद्ध से सर्वनाश ,पश्चाताप ग्लानि और दुःख के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नही होता इसे लिए अपनी सीमा रेखा का उलंघन मत करो ! 

और हमे यह भी बोलना नहीं चाहिए के युद्ध तोह केवल राजाओ के मत्वकांशाओ को पूरा करने के लिए होता है किन्तु उसमे बलि केवल साधारण व्यक्तियों की ही होती है क्या एक राजा की महत्वकान्शयो के लिए बलि देनी चाहिए

बुधवार, 1 मार्च 2017

मन मंथन



मन मंथन अनिवार्य है और इसकी सबसे बड़ी उद्धरण है समंदर मंथन ! जब समंदर मंथन हुआ था तब सब  ने सोचा था की संसार में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा किन्तु ऐसा कुछ नही हुआ ! मंथन के पश्चात संसार में माता लक्ष्मी अर्थात श्री की वापसी हुई थी किन्तु ऐसा कुछ नही हुआ क्योंकि यह कैसा श्री है जो इस संसार को और कलुषित करता जा रहा है ! 

जिसके तेज़ से जीवन पथ उजागर होने जा रहा था उसके तेज़ में संसार का खोखलापन  सामने आ रहा है ! समस्त संसार ने समंदर मंथन किया श्री को प्राप्त करने के लिए ! समंदर मंथन से जो विष निकला था उसके बाद तोह महादेव नीलकंठ बन गए किन्तु  श्री निकलने के बाद यह संसार श्री कण्ठ क्यों नही बन पाया !

 

क्योंकि मन मंथन अभी शेष है मन से विष  नही निकल है और  जब तक मन से विष नही निकलेगा श्री का दुरूपयोग सदैव होता रहेगा! श्री अमीरो को और  अमिर  बनाना  नही था उनके अहंकार को पोषित करना नही था श्री का दाइत्व था संसार का कल्याण  !अमीरो को श्री के गुणों से सशक्त कर इस संसार के उथान के लिए प्रोसाहित करना ताकि वो निरभीक हो संसार का कल्याण कर सके !

यह उद्देश्य था श्री का किन्तु ऐसा कुछ नही हुआ ! जब तक यह संसार भय मुक्त नही होगा संसार में न्याय और श्री का अनुसरण करना संभव ही नही है क्योंकि जब तक भय होगा तब तक कोई प्रश्न नही उठाएगा कोई तर्क वितर्क नही करेगा ! कहने को तोह संसार से सब कुछ पा लिया है किन्तु स्तय तोह यह है इस संसार ने भय के अतिरिक्त कुछ नही पाया है और यही भय इस सुन्दर संसार को विरिक्त  बना रहा है ! और यह विरिक्ति शुभता के पश्चात  दूर होगी इसके लिए हम सब को मिलकर प्रयास करना होगा आवशकता है तोह पुनः स्याम को ढूंढने  की क्योंकि यह समय है मन मंथन करने का और इस समस्या का समाधान!