तुमने सदैव अपना जीवन भयभीत होकर जिया है और भय में जिया हुआ अंधकारमय जीवन मृत्यु ही है और निर्भय होकर हुए मृत्यु ही जीवन है.
मृत्यु चाहते हो मुक्ति चाहते हो किन्तु मृत्यु से मुक्ति प्राप्त नहीं होती.
न ही मृत्यु जीवन का अंत होती है.
श्रिष्टी ही जीवन है प्रकाश ही जीवन है ! लकिन जब हमारे नेत्र खुले और प्रकाश की अनुभूति न हो तो इसका यह अर्थ नहीं के प्रकाश कही नहीं है प्रकाश है आवशकता है तो अपने नेत्र खोल कर अंधकार के परे देखने की.
खुद का निर्माण - 'मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है. जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥
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