उपासना में अगर मेरे जैसे हो जाने का भाव है तोह मेरी सच्ची उपासना है यदि
उपासना का भाव मेरे लोक और मेरे समीप आने की कामना है तोह सच्ची पूजा और
भावना है ! तुम मन में समरण करो मैं सुनता हूँ तुम मन में मुझे पुकारो मैं
आता हूँ ! मुझे कुछ नहीं चाहिए यदि तुम मन को शिवमय बनते हो तोह वही मेरा
शांति से परिपूर्ण कैलाश है और वही मेरी सुन्दर कशी है ! कौनसी
विधि कैसी विधि अपने आप से पूछो की पूजा का अर्थ क्या है ! पूजा तोह केवल
एक माध्यम है मुझ तक पहोचने का मुझसे जुड़ने का मुझसे एक होने का किन्तु जो
मुझे ही विभाजित कर दे वो मुझसे एक कसिए हो सकता है कैसे जुड़ सकता है मुझसे
! जो अपनी भक्ति के मार्ग को औरो में मार्ग से सर्वेष्ट समझे उसकी पूजा
में सदैव अहंकार विधमान होगा !पूजा करने के लिए श्रेष्ट का नहीं समानता का
भाव आवश्यक है ! समानता केवल उनमेaa सकती है जिनका मन अपने आराधय के प्रति
समर्पित हो !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें