शनिवार, 26 अगस्त 2017

स्मरण रहे मुझे पाने के लिए किसी व्यक्ति को माध्यम बनाने की आवशकता नहीं क्युकी भगत केवल अपने मन की पवित्रा से प्राप्त कर सकता है

उपासना में अगर मेरे जैसे हो जाने का भाव है तोह मेरी सच्ची उपासना है यदि उपासना का भाव मेरे लोक और मेरे समीप आने की कामना है तोह सच्ची पूजा और भावना है ! तुम मन में समरण करो मैं सुनता हूँ तुम मन में मुझे पुकारो मैं आता हूँ ! मुझे कुछ नहीं चाहिए यदि तुम मन को शिवमय बनते हो तोह वही मेरा शांति से परिपूर्ण कैलाश है और वही मेरी सुन्दर कशी है ! कौनसी विधि कैसी विधि अपने आप से पूछो की पूजा का अर्थ क्या है ! पूजा तोह केवल एक माध्यम है मुझ तक पहोचने का मुझसे जुड़ने का मुझसे एक होने का किन्तु जो मुझे ही विभाजित कर दे वो मुझसे एक कसिए हो सकता है कैसे जुड़ सकता है मुझसे ! जो अपनी भक्ति के मार्ग को औरो में मार्ग से सर्वेष्ट समझे उसकी पूजा में सदैव अहंकार विधमान होगा !पूजा करने के लिए श्रेष्ट का नहीं समानता का भाव आवश्यक है ! समानता केवल उनमेaa सकती है जिनका मन अपने आराधय के प्रति समर्पित हो !

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