गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग





उज्जैन नगरी सदा से ही धर्म और आस्था की नगरी रही है. उज्जैन की मान्यता किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है. यहां पर स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पूरे विश्व में एक मात्र ऎसा ज्योतिर्लिंग है. जो दक्षिण की और मुख किये हुए है. यह ज्योतिर्लिंग तांत्रिक कार्यो के लिए विशेष रुप से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस ज्योतिर्लिग की सबसे बडी विशेषता यह है कि यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है. अर्थात इसकी स्थापना अपने आप हुई है. इस धर्म स्थल में जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्वा और विश्वास के साथ आता है. उस व्यक्ति के आने का औचित्य अवश्य पूरा होता है. महाकाल की पूजा विशेष रुप से आयु वृ्द्धि और आयु पर आये हुए संकट को टालने के लिए की जाती है. स्वास्थय संबन्धी किसी भी प्रकार के अशुभ फल को कम करने के लिए भी महाकाल ज्योतिर्लिंग में पूजा-उपासना करना पुन्यकारी रहता है. महाकालेश्वर मंदिर के विषय में मान्यता है, कि महाकाल के भक्तो का मृ्त्यु और बीमारी का भय समाप्त हो जाता है. और उन्हें यहां आने से अभय दान मिलता है. महाकाल ज्योतिर्लिंग उज्जैन के राजा है. और वर्षों से उज्जैन कि रक्षा कर रहे है. महालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापना कथा
महालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबन्धित के प्राचीन कथा प्रसिद्ध है. कथा के अनुसार एक बार अवंतिका नाम के राज्य में राजा वृ्षभसेन नाम के राजा राज्य करते थे. राजा वृ्षभसेन भगवान शिव के अन्यय भक्त थे. अपनी दैनिक दिनचर्या का अधिकतर भाग वे भगवान शिव की भक्ति में लगाते थे. एक बार पडौसी राजा ने उनके राज्य पर हमला कर दिया. राजा वृ्षभसेन अपने साहस और पुरुषार्थ से इस युद्ध को जीतने में सफल रहा. इस पर पडौसी राजा ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए अन्य किसी मार्ग का उपयोग करना उचित समझा. इसके लिए उसने एक असुर की सहायता ली. उस असुर को अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था. राक्षस ने अपनी अनोखी विद्या का प्रयोग करते हुए अवंतिका राज्य पर अनेक हमले की. इन हमलों से बचने के लिए राजा वृ्षभसेन ने भगवान शिव की शरण लेनी उपयुक्त समझी. अपने भक्त की पुकार सुनकर भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होनें स्वयं ही प्रजा की रक्षा की. इस पर राजा वृ्षभसेन ने भगवान शिव से अंवतिका राज्य में ही रहने का आग्रह किया, जिससे भविष्य में अन्य किसी आक्रमण से बचा जा सके. राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान वहां ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए. और उसी समय से उज्जैन में महाकालेश्वर की पूजा की जाती है. महाकालेश्वर मंदिर मान्यता और महत्व |
उज्जैन राज्य में महाकाल मंदिर में दर्शन करने वाले भक्त ज्योतिर्लिंग के साथ साथ भगवान कि पूजा में प्रयोग होने वाली भस्म के दर्शन अवश्य करते है, अन्यथा श्रद्वालु को अधूरा पुन्य मिलता है. भस्म के दर्शनों का विशेष महत्व होने के कारण ही यहां आरती के समय विशेष रुप से श्रद्वालुओं का जमघट होता है. आरती के दौरान जलती हुई भस्म से ही यहां भगवान महाकालेश्वर का श्रंगार किया जाता है. इस कार्य को दस नागा साधुओं के द्वारा किया जाता है. भस्म आरती में केवल पुरुष भक्त ही भाग ले सकते है. और दर्शन कर सकते है. महिलाओं को इस दौरान दर्शन और पूजन करना वर्जित होता है. इसके अतिरिक्त जो भक्त इस मंदिर में सोमवती अमावस्या के दिन यहां आकर पूजा करता है, उसके सभी पापों का नाश होता है. कोटि कुण्ड उज्जैन |
दक्षिणामुखी महाकालेश्वर मंदिर के निकट ही एक कुण्ड है. इस कुण्ड को कोटि कुण्ड के नाम से जाना जाता है. इस कुण्ड में कोटि-कोटि तीर्थों का जल है. अर्थात इस कुण्ड में अनेक तीर्थ स्थलों का जल होने की मान्यता है. इसी वजह से इस कुण्ड में स्नान करने से अनेक तीर्थ स्थलों में स्नान करने के समान पुन्यफल प्राप्त होता है. इस कुण्ड की स्थापना भगवान राम के परम भक्त हनुमान के द्वारा की गई थी. महाकाल मंत्र |
ऊँ महाकाल महाकाय, महाकाल जगत्पते।
महाकाल महायोगिन्‌ महाकाल नमोऽस्तुते॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें