सोमवार, 29 जनवरी 2018

भक्तो को इसका बात का बोध कहा है के उन्होंने क्या खोया है और क्या पाया है


सब ज्ञात होना एक समस्या बन जाता है  और वो इस लिए हम किसी की भी स्वत्रंत इच्छा में हस्तक्षेप नहीं करते और यही नियम है ! भक्त वरदान पा कर अपने आराधय के दर्शन कितनी शक्ति है इस तप में यदि भक्त चाहे तो उसी शन अपनी पुरनता को प्राप्त कर सकता है मोक्ष प्राप्त कर सकता है किन्तु भक्त इस बारे में कभी सोचता ही नहीं !

 यदि उसे बोध हो जाए के उसे अपना मनवांछित फल पा कर वो क्या खो रहा है तब उसे अपने वरदान की निरकता का बोध होगा उसकी अनावश्यकता का बोध होगा तो ही वो समझगा उसका मनवांछित वरदान कितना महत्वहीन है ! किन्तु वो अपनी  महत्वकांशा के पूर्ति हेतु माँगा गया वरदान अपने स्वार्थ अपने व्रचपस के लिए अपनी महानता के लिए स्थापित किया गया वरदान ,महत्वता केवल उसी वरदान के लिए है जो शृष्टी कल्याण के लिए मांगी जाए अन्यथा वरदान वरदान नहीं अभिशाप बन जाता है !

किन्तु शृष्टी कल्याण के लिए वरदान मांगता ही कौन है ! और कितने भक्तो को इसका बोध होता है के उन्होंने क्या खोया है और क्या पाया है

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