बुधवार, 27 मई 2020

किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश आराधना को जरूरी कहा गया है।


 हिन्दू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में यह स्पष्ट तौर पर यह उल्लिखित किया गया है कि सर्वप्रथम भगवान गणेश के स्मरण से पहले किसी भी देवी-देवता की पूजा करना फलित नहीं हो पाएगा। शिव और पार्वती की संतान गणेश को हम कई नामों से पुकारते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि इंसान के शरीर और गज के सिर वाले भगवान गणेश ने दरअसल यह आकृति किन हालातों में प्राप्त की।

गणेश जी का जन्म और उनके प्रादुर्भाव से जुड़ी अनेक कथाएं वर्णित हैं, वह किन परिस्थितियों में जन्मे और किन परिस्थितियों में उन्हें गज का सिर धारण करना पड़ा, इसके संबंध में बहुत सी कहानियां हैं। आज हम आपको ऐसी ही कुछ प्रसिद्ध कथाओं के विषय में बताते हैं, जो गणेश जी के प्रादुर्भाव की कहानी कहती हैं।
गणपति का अर्थ

जानकारों के अनुसार गणपति शब्द गण और पति शब्द के युग्म से बना है। महर्षि पाणिनी के अनुसार दिशाओं को गण कहा जाता है। इस आधार से गणपति का अर्थ हुआ सभी दिशाओं का स्वामी। गणपति की आज्ञा के बिना कोई भी देवता किसी भी दिशा से पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते। पहले स्वयं गणपति आकर दिशाओं से जुड़ी बाधाओं को दूर करते हैं और फिर अन्य देवी-देवता वहां उपस्थित होते हैं। इस प्रक्रिया को महाद्वारपूजन या महागणपति पूजन भी कहा जाता है। यही कारण है कि किसी भी देवी-देवता की पूजा अर्चना करने से पहले गणेश जी का आह्वान किया जाता है।


देवताओं के मुखिया

कुछ पुराणों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि एक बार देवताओं में मुखिया का निर्णय करने हेतु एक प्रतियोगिता का आरंभ हुआ। इस प्रतियोगिता में सभी गणों को समस्त ब्रह्मांड की परिेक्रमा करके शीघ्रातिशीघ्र वापस भगवान शिव तक पहुंचना था। सभी देवताओं ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और अपने-अपने वाहन पर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल गए। गणेश जी ने ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की अपेक्षा भगवान शिव और देवी पार्वती की ही परिक्रमा कर ली और यह कहा कि माता-पिता की परिक्रमा ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है।
भगवान शिव, गणपति के इस उत्तर से संतुष्ट हुए और उन्होंने गणेश को विजेता घोषित कर गणपति के पद पर नियुक्त कर दिया। साथ ही साथ उन्हें यह वरदान दिया कि किसी भी कार्य का शुभारंभ या देवी-देवताओं की आराधना गणपति के स्मरण के बिना अधूरी ही रह जाएगी।

शुक्रवार, 22 मई 2020

देवी अन्नपूर्णा


देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की देवी हैं। देवी अन्नपूर्णा को धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इन्हें “अन्न की पूर्ति“ करने वाली देवी कहा गया है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा भक्तों की भूख शांत करती हैं तथा जो इनकी आराधना करता है उसके घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती है। हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में कई बार मां अन्नपूर्णा का विवरण आया है। देवी अन्नपूर्णा से जुड़ी रोचक बातें निम्न हैं:

1. वेदों में लिखा है कि लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम जी ने अपनी वानर सेना की भूख मिटाने के लिए देवी अन्नपूर्णा की पूजा की थी, जिसके बाद देवी ने सेनाओं की भूख को शांत किया था और विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था।

2. ग्रंथों के अनुसार काशी में जब अन्न की भारी कमी आ गई थी, तब इस स्थिति से परेशान होकर शंकर भगवान ने देवी अन्नपूर्णा से भिक्षा ग्रहण किया था।

देवी अन्नपूर्णा का रूप

स्कंद पुराण के अनुसार देवी अन्नपूर्णा के तीन नेत्र हैं। इनके माथे पर अर्द्धचन्द्र बना है। मां अनेकों आभूषण धारण किये हुए हैं। देवी अन्नपूर्णा के एक हाथ में बर्तन और दूसरे में अन्न से भरा घड़ा है। जिस तरह लक्ष्मी जी को धन और वैभव की देवी माना जाता है, उसी प्रकार देवी अन्नपूर्णा भोजन की देवी मानी जाती हैं।

अन्नपूर्णा देवी मंत्र 

हिन्दू धर्मानुसार देवी अन्नपूर्णा की आराधना विभिन्न तरीकों से की जाती है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा में निम्न मंत्र का विशेष महत्त्व है:

ऊं अन्नपूर्णे सदापूरणे
शंकरः प्राणवल्लभे ज्ञान-वैराग्य-सिध्यर्द्हम
भिक्षाम देहि च पार्वती ।।

काशी में बसती हैं देवी अन्नपूर्णा 

स्कंद पुराण के काशी खंड में इस बात का वर्णन किया गया है कि भगवान शिव की भार्या देवी पार्वती ही अन्नपूर्णा देवी हैं। काशी में ही अन्नपूर्णा देवीपीठ भी है। मान्यता है कि अन्नपूर्णा देवी की कृपा से मनुष्य के जीवन में कभी भी खाने आदि की समस्या नहीं होती।

🌹🙏जय माता दी 🙏🌹

सोमवार, 18 मई 2020

कैलाश की दिव्यता


कैलाश की दिव्यता खोजियों को ऐसे आकर्षित करती रही है, जैसे खगोलविद आकाशगंगाओं की दमकती आभा को देखकर सम्मोहित हो जाते हैं। शताब्दियों से मौन खड़ा कैलाश संसार के पर्वतारोहियों और खोजियों को चुनौती दे रहा है लेकिन ‘महादेव के घर’ को देखना तो दूर, कोई उसकी तलहटी में जाकर खड़ा भी नहीं हो पाता। दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर झंडा लहरा चुका मानव कैलाश पर्वत पर आरोहण क्यों नहीं कर सका? अनुभव बताते हैं कि कैलाश की तलहटी में पहुँचते ही आयु बहुत तेज़ी से बढ़ने लगती है।

कैलाश पर्वत की सुंदरता, वहां सर्वत्र व्याप्त अदृश्य आध्यात्मिक तरंगों ने संसार में सबसे अधिक रूसियों को प्रभावित किया है। साल के बारह महीने रुसी खोजियों के कैम्प कैलाश पर्वत क्षेत्र में लगे रहते हैं। यहाँ की प्रचंड आध्यात्मिक अनुभूतियों के रहस्य का पता लगाने के लिए वे जान का जोखिम तक उठा लेते हैं।

इन लोगों के अनुभव बता रहे हैं कि कैलाश पर्वत की तलहटी में ‘एजिंग’ बहुत तेज़ी से होने लगती है। भयानक अनुभवों से गुजरकर आए उन लोगों ने बताया कि वहां बिताया एक दिन ‘एक माह ‘ के बराबर होता है। हाथ-पैर के नाख़ून और बाल अत्यधिक तेज़ी से बढ़ जाते हैं। सुबह क्लीन शेव रहे व्यक्ति की रात तक अच्छी-खासी दाढ़ी निकल आती है।

शुरूआती दौर में चीन ने दुनिया के धुरंधर क्लाइम्बर्स को कैलाश पर्वत आरोहण की अनुमति दी थी लेकिन सैकड़ों प्रयास असफल रहे। बाद में चीन ने यहाँ आरोहण की अनुमति देना बंद कर दिया। ऐसे ही एक बार चार पर्वतारोहियों ने कैलाश के ठीक नीचे स्थित ‘जलाधारी’ तक पहुँचने की योजना बनाई। इनमे एक ब्रिटिश, एक अमेरिकन और दो रुसी थे। बेस कैम्प से चारों कैलाश की ओर निकले।

बताते हैं वे कुशल पर्वतारोही थे और काफी आगे तक गए। एक सप्ताह तक उनका कुछ पता नहीं चला। जब वे लौटे तो उनका हुलिया बदल चुका था। आँखें अंदर की ओर धंस गई थी। दाढ़ी और बाल बढ़ गए थे। उनके अंदर काफी कमजोरी आ गई थी। ऐसा लग रहा था कि वे आठ दिन में ही कई साल आगे जा चुके हैं। उन्हें अस्पताल ले जाया गया।दिग्भ्रमित अवस्था में उन चारों ने कुछ दिन बाद ही दम तोड़ दिया।

उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में कई बार कैलाश पर्वत पर फतह के प्रयास किये गए। जिन लोगों ने अपने विवेक से काम लिया और आगे जाने का इरादा छोड़ दिया, वे तो बच गए लेकिन दुःसाहसी लोग या तो पागल हो गए या जान गवां बैठे। कैलाश की परिक्रमा मार्ग पर एक ऐसा ख़ास पॉइंट है, जहाँ पर आध्यात्मिक शक्तियां चेतावनी देती है।

मौसम बदलता है या ठण्ड अत्याधिक बढ़ जाती है। व्यक्ति को बैचेनी होने लगती है। अंदर से कोई कहता है, यहाँ से चले जाओ। जिन लोगों ने चेतावनी को अनसुना किया, उनके साथ बुरे अनुभव हुए। कुछ लोग रास्ता भटककर जान गंवा बैठे। सन 1928 में एक बौद्ध भिक्षु मिलारेपा कैलाश पर जाने में सफल रहे थे। मिलारेपा ही मानव इतिहास के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हे वहां जाने की आज्ञा मिली थी।

रुसी वैज्ञानिक डॉ अर्नस्ट मूलदाशेव ने कैलाश पर्वत पर काफी शोध किये हैं। वे कई बार चीन से विशेष अनुमति लेकर वहां गए हैं। कैलाश की चोटी को वे आठ सौ मीटर ऊँचा ‘हाउस ऑफ़ हैप्पी स्टोन’ कहते हैं। उन्होंने अनुभव किया कि कैलाश के 53 किमी परिक्रमा पथ पर रहने से ‘एजिंग’ की गति बढ़ने लगती है। दाढ़ी, नाख़ून और बाल तेज़ी से बढ़ते हैं। एक अनुमान के मुताबिक कैलाश पर्वत की तलहटी के संपर्क में आते ही एक दिन में ही आयु एक माह बढ़ जाती है। इस हिसाब से वहां एक माह रहने में ही जीवन के लगभग ढाई साल ख़त्म हो जाएंगे।

सन 2004 के सितंबर में इसी तथ्य का पता लगाने के लिए मॉस्को से रशियन एकेडमी ऑफ़ नेचुरल साइंसेज के यूरी जाकारोव ने अपने बेटे पॉल के साथ कैलाश पर्वत जाने की योजना बनाई। वे गैरकानूनी ढंग से तलहटी के करीब पहुंचे और कैम्प लगा लिया। उन्हें अभी एक दिन ही हुआ था कि एक रात ऐसा अनुभव हुआ कि अगली सुबह उन्होंने वापस आने का फैसला कर लिया।

रात लगभग तीन बजे बेटे पॉल ने झकझोर कर यूरी को जगाया और बाहर देखने के लिए कहा। यूरी ने बार देखा तो अवाक रह गया। कैलाश के शिखर पर रोशनियां फूट रही थीं। प्रकाश के रंगबिरंगे गोले एक एक कर आते जाते और बुलबुलों की तरह फूटते जाते। कुछ पल बाद उसी स्थान पर अनगिनत ‘स्वस्तिक’ बनते दिखाई दिए। यूरी और उसके बेटे की आँखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे। वे एक अदृश्य शक्ति को अनुभव कर रहे थे। उनके भीतर एक अनिर्वचनीय आनंद फूट रहा था। यूरी समझ गए कि वे ‘परमसत्ता’ के घर के सामने खड़े हैं और इस काबिल नहीं कि वहां कदम रख सके।

आखिर ऐसी कौनसी ऊर्जा है जो कैलाश के पास जाते ही तेज़ी से उम्र घटाने लगती है। कदाचित ये महादेव का सुरक्षा कवच है जो बाहरी लोगों को उनके घर से दूर रखने का उपाय हो। वैज्ञानिकों, खोजकर्ताओं और पर्वतारोहियों ने इसका साक्षात अनुभव किया है।

कैलाश पर्वत के पास ही ऐसा क्यों होता है, इसका ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं है। वहां मिलने वाले आनंद का अनुभव बताना भी किसी के बस में नहीं है। कुछ तो ऐसे भी हैं कि उस अबोले, विलक्षण आनंद के लिए उम्र दांव पर लगाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। ‘फॉस्ट एजिंग’ की मिस्ट्री कभी नहीं सुलझ सकेगी!

शुक्रवार, 15 मई 2020

हनुमानजी और शनि देव जी का रिश्ता


हनुमानजी और शनि देव जी का रिश्ता क्यों शनिदेव जी के ऊपर शनिवार को तेल चढ़ाया जाता है जाने इस कहानी से|

एक बार महावीर हनुमान श्री राम के किसी कार्य में व्यस्त थे | उस जगह से शनिदेव जी गुजर रहे थे की रास्ते में उन्हें हनुमानजी दिखाई पड़े | अपने स्वभाव की वजह से शनिदेव जी को शरारत सूझी और वे उस रामकार्य में विध्न डालने हनुमान जी के पास पहुच गये |

हनुमानजी शनि देव को चेतावनी दी और उन्हें ऐसा करने से रोका पर शनिदेव जी नहीं माने | हनुमानजी ने तब शनिदेव जी को अपनी पूंछ से जकड लिया और फिर से राम कार्य करने लगे | कार्य के दौरान वे इधर उधर खुद के कार्य कर रहे थे |

इस दौरान शनिदेवजी को बहूत सारी छोटे आई | शनिदेव ने बहूत प्रयास किया पर बालाजी की कैद से खुद को छुड़ा नहीं पाए | उन्होंने हनुमंते से बहूत विनती की पर हनुमानजी कार्य में खोये हुए थे | जब राम कार्य ख़त्म हुआ तब उन्हें शनिदेवजी का ख्याल आया और तब उन्होंने शनिदेव को आजाद किया |

शनिदेव जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने हनुमानजी से माफ़ी मांगी की वे कभी भी राम और हनुमान जी के कार्यो में कोई विध्न नहीं डालेंगे | और श्री राम और हनुमान जी के भक्तो को उनका विशेष आशीष प्राप्त होगा |

शनिदेव जी भगवान श्री हनुमान से कुछ सरसों का तेल माँगा जिसे वो अपने घावो पर लगा सके और जल्द ही चोटो से उभर सके | हनुमानजी ने उन्हें वो तेल उपलब्द करवाया और इस तरह शनिदेव के जख्म ठीक हुए | तब शनिदेव जी ने कहा की इस याद में जो भी भक्त शनिवार के दिन मुझपर सरसों का तेल चदायेगा उसे मेरा विशेष आशीष प्राप्त होगा |

हनुमानजी ने शनिदेव को रावण की जेल से मुक्त करवाया : एक कथा के अनुसार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव जो को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया | जब तक हनुमानजी लंका नहीं पहुचे तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे | जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आये तब माँ जानकी को खोजते खोजते उन्हें भगवान् शनि देव जेल में कैद मिले | हनुमानजी ने तब शनि भगवान को आजाद करवाया | आजादी के बाद उन्होंने हनुमंते का धन्वाद किया और उनके भक्तो पर विशेष कृपा बनाये रखने का वचन दिया |

मंगलवार, 12 मई 2020

जब भगवान शिव ने मगरमच्छ बनकर ली पार्वती की परीक्षा !


माता पार्वती शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप कर रही थीं। उनके तप को देखकर देवताओं ने शिव जी से देवी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की।शिव जी ने पार्वती जी की परीक्षा लेने सप्तर्षियों को भेजा। सप्तर्षियों ने शिव जी के सैकड़ों अवगुण गिनाए पर पार्वती जी को महादेव के अलावा किसी और से विवाह मंजूर न था।

विवाह से पहले सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं। इसलिए शिव जी ने स्वयं भी पार्वती की परीक्षा लेने की ठानी।भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को वरदान देकर अंतर्ध्यान हुए। इतने में जहां वह तप कर रही थीं, वही पास में तालाब में मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया।

लड़का जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा। पार्वती जी से उस बच्चे की चीख सुनी न गई। द्रवित हृदय होकर वह तालाब पर पहुंचीं। देखती हैं कि मगरमच्छलड़के को तालाब के अंदर खींचकर ले जा रहा है। लड़के ने देवी को देखकर कहा- मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र... माता आप मेरी रक्षा करें.. .

पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! इस लडके को छोड़ दो। मगरमच्छ बोला- दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है।ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोडूं ?

पार्वती जी ने विनती की- तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो।

मगरमच्छ बोला- एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा। पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा- मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो।

मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं। उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा।

पार्वती जी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो।

मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा। मगर बोला- हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं।

पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता ? देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया। मगरमच्छ लुप्त हो गया।

पार्वती जी ने विचार किया- मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुन: तप आरंभ करती हूं। पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया। भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले- पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो?

पार्वती जी ने कहा- प्रभु ! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है। आपको पतिरूप में पाने के संकल्प के लिए मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करुंगी।

महादेव बोले- मगरमच्छ और लड़के दोनों रूपों में मैं ही था। तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही एक हूं। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब और तप करने की जरूरत नहीं....

शनिवार, 9 मई 2020

शनि चालीसा




!! जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल,
दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल,
जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज ,
करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज !!

!! जयति जयति शनिदेव दयाला करत सदा भक्तन प्रतिपाला,
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै माथे रतन मुकुट छवि छाजै,
परम विशाल मनोहर भाला टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला,
कुण्डल श्रवन चमाचम चमके हिये माल मुक्तन मणि दमकै !!

!! कर में गदा त्रिशूल कुठारा पल बिच करैं अरिहिं संहारा,
पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन,
सौरी, मन्द शनी दश नामा भानु पुत्र पूजहिं सब कामा,
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं रंकहुं राव करैं क्षण माहीं !!

!! पर्वतहू तृण होइ निहारत तृणहू को पर्वत करि डारत,
राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो,
वनहुं में मृग कपट दिखाई मातु जानकी गई चुराई,
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा मचिगा दल में हाहाकारा !!

!! रावण की गति-मति बौराई रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई,
दियो कीट करि कंचन लंका बजि बजरंग बीर की डंका,
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा चित्र मयूर निगलि गै हारा,
हार नौलखा लाग्यो चोरी हाथ पैर डरवायो तोरी !!

!! भारी दशा निकृष्ट दिखायो तेलहिं घर कोल्हू चलवायो,
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों,
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी आपहुं भरे डोम घर पानी,
तैसे नल पर दशा सिरानी भूंजी-मीन कूद गई पानी !!

!! श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई पारवती को सती कराई,
तनिक विकलोकत ही करि रीसा नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा,
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी बची द्रोपदी होति उधारी,
कौरव के भी गति मति मारयो युद्ध महाभारत करि डारयो !!

!! रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला लेकर कूदि परयो पाताला,
शेष देव-लखि विनती लाई रवि को मुख ते दियो छुड़ाई,
वाहन प्रभु के सात सुजाना जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना,
जम्बुक सिह आदि नख धारी सो फल ज्योतिष कहत पुकारी !!

!! गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै,
गर्दभ हानि करै बहु काजा सिह सिद्ध्कर राज समाजा,
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै मृग दे कष्ट प्राण संहारै,
जब आवहिं स्वान सवारी चोरी आदि होय डर भारी !!

!! तैसहि चारि चरण यह नामा स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा,
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं,
समता ताम्र रजत शुभकारी स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी,
जो यह शनि चरित्र नित गावै कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै !!

!! अद्भुत नाथ दिखावैं लीला करैं शत्रु के नशि बलि ढीला,
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई विधिवत शनि ग्रह शांति कराई,
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत दीप दान दै बहु सुख पावत,
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा !!

॥ दोहा ॥

!! पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार,
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार !!

गुरुवार, 7 मई 2020

शिवलिंग - हल्दी और मेहँदी


शिवलिंग एक ऐसी शक्ति है, जिसकी पूजा से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। शिवलिंग यानी शिवजी का साक्षात रूप। विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा भक्त को प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवताओं के विधिवत पूजन आदि धार्मिक कर्मों मे बहुत सी सामग्रियां सम्मिलित की जाती हैं। इन सामग्रियों मे 'हल्दी' भी है। पूजन कर्म मे हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है।

कई पूजन विधियां ऐसी हैं जो हल्दी के बिना पूर्ण नहीं मानी जा सकती। हल्दी एक औषधि भी है और हम इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन मे भी करते हैं। पूजन मे हल्दी ,गंध और औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। हल्दी शिवजी के अतिरिक्त लगभग सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।


शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक है और इसी वजह से महादेव को हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।
शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए लेकिन जलाधरी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। 

एक भाग शिवलिंग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा भाग जलाधारी माता पार्वती का प्रतीक है। शिवलिंग चूंकि पुरुष तत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्रियों के सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती की प्रतीक है अत: इस पर हल्दी चढ़ाई जानी चाहिए।



  • जलाधरी पर कभी दिया नहीं जलाते 
  • शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ नारियल कभी फोड़ा नहीं जाता उसे विसर्जित कर दिया जाता है।
  • शिवलिंग भगवान् शंकर का प्रतीक होने के कारण उसे तुलसी के नीचे नहीं रखा जाता , तुलसी के नीचे शालिग्राम ( भगवान् विष्णु का निर्गुण रूप ) रखा जाता है.
  • शिवलिंग पर तुलसी की मंजरी (तुलसी के फूल) चढ़ाए जाते हैं।
  • भोलेनाथ को पूजा मे मेंहदी नहीं चढ़ाई जाती।
इससे जुड़ी एक कथा के अनुसार मेंहदी का पौधा कामधेनु के रक्त से उत्पन्न माना जाता है। इसीलिए पूजा मे शिवजी को मेंहदी नहीं चढ़ाई जाती है। उस कथा के अनुसार जमदग्नि ऋषि के पास कामधेनु गाय थी , जिसे सहस्त्रार्जुन ने आश्रम से ले जाना चाहा और उसने इसी प्रयास मे कामधेनु को कुछ तीर मारे और जब उन तीरों से घायल कामधेनु का रक्त जमीन पर गिरा तो मेंहदी का पौधा उत्पन्न हुआ।

इसीलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार शिवजी को मेंहदी नहीं चढ़ाई जाती।
!! ॐ नमः शिवाय !!