सोमवार, 24 जुलाई 2017

महादेव द्वारा बताया गया ध्यान का ज्ञान।


                 


महादेव ने बताया है कि रात के समय एक शांत व अंधकारमय स्थान पर बैठें।दोनों नेत्र बंद करे फिर दोनों हाथ की तरजनी अंगुली से दोनों कानों को बंद कर लें।कुछ ही समय के अभ्यास के बाद   एक अग्नि शब्द सुनाई देगा जिसे  ब्रह्म कहतें हैं।इस शब्द को सुनने का अभ्यास करना शब्द ब्रह्म का ध्यान करना कहलाता है।
यह ना ॐ कार है, न मंत्र है, न बीज है, न अक्षर है।यह अनाहत नाद है अर्थात बिना आघात या बिना बजाये उतपन्न होने वाला शब्द/ध्वनि।

 इसका उच्चारण किये बिना ही चिंतन होता है यह नौ प्रकार का होता है:-

1. मेघनाद : इसके चिंतन से कभी विपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ता।
2. शंख नाद : इसके ध्यान व अभ्यास से इच्छानुसार रूप धारण करने की शक्ति प्राप्त होती है।
3. वंशी नाद : इसके ध्यान से सम्पूर्ण तत्त्व प्राप्त हो जाते हैं।
4. घोष नाद यह आत्मशुद्धि करता है, सब रोगों का नाश करता है ।
5. वीणा नाद : इससे दूर दर्शन की शक्ति प्राप्त होती है।
6. श्रृंग नाद : यह अभिचार से सम्बन्ध रखने वाला है।
7. दुन्दुभी नाद : इसके ध्यान से साधक जरा व मृत्यु के कष्ट से छूट जाता है।
8. कांस्य नाद : यह प्राणियों की गति को स्तंभित कर देता है। यह विष, भूत, ग्रह आदि सबको बांधता है। इन सबको  छोड़कर जो अन्य शब्द सुनाई देता है वह तुंकार कहलाता है। तुंकार का ध्यान करने से साक्षात् शिवत्व की प्राप्ति होती है -शिव पुराण, उमा संहिता
9. घंट नाद : इसका उच्चारण साक्षात् शिव करते हैं। यह सभी देवताओं को आकर्षित कर लेता है, महासिद्धियाँ देता है और कामनाएं पूर्ण करता है।


शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

सावन शिवरात्रि का महत्व और क्यों मनाई जाती है यह सावन में शिवरात्रि

सावन शिवरात्रि को काँवर यात्रा भी कहा जाता है, जो मानसून के श्रावण (जुलाई-अगस्त) के महीने मे आता है। कंवर (काँवर), एक खोखले बांस को कहते हैं इस अनुष्ठान के अंतर्गत, भगवान शिव के भक्तों को कंवरियास या काँवाँरथी के रूप में जाने जाता है। हिंदू तीर्थ स्थानों हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, सुल्तानगंज में गंगा नदी, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ और देवघर सहित अन्य स्थानो से गंगाजल भरकर, अपने - अपने स्थानीय शिव मंदिरों में इस पवित्र जल को लाकर चढ़ाया जाता है।

हिन्दू पुराणों में कांवड़ यात्रा समुद्र के मंथन से संबंधित है। समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने जहर का सेवन किया, जिससे नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हुए। त्रेता युग में रावण ने शिव का ध्यान किया और वह कंवर का उपयोग करके, गंगा के पवित्र जल को लाया और भगवान शिव पर अर्पित किया, इस प्रकार जहर की नकारात्मक ऊर्जा भगवान शिव से दूर हुई।

सोमवार, 17 जुलाई 2017

शिवलिंग पर अर्पित किए गए सामग्री का फल

शिवलिंग ही महादेव का आदि रूप है ! हमने महादेव को देखा जरूर है किन्तु 

आज तक हम उन्हें देख नहीं पाए ! महादेव हमारे समक्ष इस रूप में इसे लिए प्रकट होते है ! 

ताकि हम उस निर्गुण निराकार को सगुन साकार देख सके परन्तु महादेव का मूल रूप अनंत ही है वो असीम है कालातीत है !


1:- शिवलिंग पर दूध अर्पित करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है।
2:- शिवलिंग पर दही अर्पित करने से हर्षोल्लास (खुशीयों) की प्राप्ति होती है।
3:- शिवलिंग पर शहद चढाने से रूप और सौंदर्य प्राप्त होता है , वाणी में मिठास एवं समाज में लोकप्रियता बढ़ती   है।
4:- शिवलिंग पर घी चढ़ाने से हमें तेज की प्राप्ति होती है।
5:- शिवलिंग पर शक्कर चढ़ाने से सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 
6:- शिवलिंग पर ईत्र चढ़ाने से धर्म की प्राप्ति होती हैं।
7:- शिवलिंग पर सुगंधित तेल चढ़ाने से धन धान्य की वृद्धि एवं सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
8:- शिवलिंग पर चंदन चढ़ाने से समाज में यश और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
9:- शिवलिंग पर केशर अर्पित करने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है। एवं अविवाहितो के विवाह में आने वाली समस्त अड़चने दूर होती है, मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होता है तथा शीघ्र विवाह के योग बनते है।   
10:- शिवलिंग पर भांग चढ़ाने से हमारे समस्त पाप एवं बुराइयां दूर होती हैं।
11:- शिवलिंग पर आँवला अथवा आँवले का ऱस चढ़ाने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
12:- शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से समस्त पारिवारिक सुखो की प्राप्ति होती है, तथा परिवार के सदस्यों में प्रेम बना रहता है।
13:- शिवलिंग पर गेहूं चढ़ाने से वंश की वृद्धि होती है, योग्य संतान की प्राप्ति होती है, तथा संतान आज्ञाकारी होता है।
14:- शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
15:- शिवलिंग पर तिल चढ़ाने से समस्त पापों एवं रोगों का नाश होता है।
16:- शिवलिंग पर जौ अर्पित करने से सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती है।        
     


शनिवार, 15 जुलाई 2017

राजस तामस और सात्विक तीनो गुण महादेव के त्रिशूल में विधमान है


इस संसार में इस प्रकृति में तीन गुणों का परिवेश है रजस तमस और  स्तव ! संसार के निमित रूप से चलने के लिए इन तीनो  का संतुलन अनिवार्य है ! भगवन का त्रिशूल गुणों का प्रतीक है ! रजस तमस और  स्तव गुण कैसे होते है  और क्या होते है !

प्रकाश ऊर्जा  क्रोध आवेश गति परिवर्तन आकांशा यह सब राजस्क गुणों के उद्धरण है जन्म भी राजस  गुण है और बालपन भी उसी प्रकार अहंकार अज्ञानता आलोचना इर्षा दुवेश मृत्यु विरद्धावस्ता यह सब तामसिक गुणों के प्रतीक है ! जैसा तुम देख सकते हो इन दोनों में संतुलन बनाए रखना संसार के कल्याण के  लिए अनिवार्य  है और उसके लिए अनिवार्य है इनके समक्ष एक तीसरा गुण होना इस लिए उत्पति हुए है सात्विक गुण की शुद्धता जगत कल्याण के लिए समर्पण पवित्रता समर्पण यौवन परिश्रम विकास निरंतरता सत्य आत्मविश्वास आध्यात्मिक ज्ञान में रूचि और संसार में समानता  ये सब सात्विक गुण के लक्षण है !

 अब प्र्शन यह की भगवान शिव पर भस्म क्यों होती है ! इसका उतर यह है मृत्यु के बाद देह जलने से सब कुछ भस्म नहीं होता केवल भस्म रह जाती है और यही बनती है प्रतीक हमारी आत्मा जो नश्वर है शाश्वत है

सोमवार, 10 जुलाई 2017

क्यों प्रिय है महादेव को सावन का महीना ? कैसे करे भगवान् शिव की सावन माघ में पूजा.



क्यों प्रिय है महादेव को सावन का महीना ? 
शिव पुराण के अनुसार जब सनत कुमार ने भगवान शिव से पूछा कि आपको श्रावण मास इतना प्रिय क्यों हैतब शिवजी ने बताया कि देवी सती ने भगवान शिव को हर जन्म में अपने पति के रूप में पाने का प्रण लिया था लेकिन अपने पिता दक्ष प्रजापति के भगवान शिव को अपमानित करने के कारण देवी सती ने योगशक्ति से शरीर त्याग दिया !


इसके पश्चात उन्होंने दूसरे जन्म में पार्वती नाम से राजा हिमालय और रानी नैना के घर जन्म लिया उन्होंने युवावस्था में श्रावण महीने में ही निराहार रहकर कठोर व्रत द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया।

कैसे करे भगवान् शिव की सावन माघ में पूजा-
शिव  को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत रखते  हैंतो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें.

सावन सोमवार व्रत की विधि:
शिव पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके भगवन शिव  को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव गौरी की पूजा करनी चाहिएशिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिएइसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिएसाधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता हैमतलब शाम तक रखा जाता हैसोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रतसौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रतइन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है.


व्रत कथाजो इस दिन साधक को पढ़ना चाहिए :-
एक समय की बात हैकिसी नगर में एक साहूकार रहता थाउसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी थापुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था. उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह कियापार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि 'हे पार्वतीइस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है.' लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई.
माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगीमाता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था

उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख.वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा. कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआजब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गयासाहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ करानाजहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना. दोनों मामा भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़ेरात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह थालेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एकआंख से काना था

राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोचीसाहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आयाउसने सोचा क्यों  इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूंविवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगालड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गयालेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार थाउसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगीउसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना हैमैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूंजब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता पिता को यह बात बताईराजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गईदूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया

जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गयालड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं हैमामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गएमृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू कियासंयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थेपार्वती ने भगवान से कहास्वामीमुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहाआप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें.

जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र हैजिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दियाअब इसकी आयु पूरी हो चुकी हैलेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेवआप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे.

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दियाशिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गयाशिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दियादोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचेजहां उसका विवाह हुआ थाउस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन कियाउस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया.

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थेउन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुएउसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहाहे श्रेष्ठीमैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की हैइसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.