मंगलवार, 21 सितंबर 2021

श्राद्ध में कौन सी वस्तु दान करने से क्या फल मिलता है?

 पितृ पक्ष के सोलह दिनों में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म कर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में दान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि दान से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और पितृ दोष भी खत्म हो जाते हैं। श्राद्ध में गाय, तिल, भूमि, नमक, घी आदि दान करने की परंपरा है।


इन सभी वस्तुओं को दान करने से अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं। धर्म ग्रंथों में श्राद्ध में दान की गई वस्तु से मिलने वाले फलों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है, लेकिन बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं श्राद्ध में क्या वस्तु दान करने से उसका क्या फल प्राप्त होता है-

1. गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है।

2. तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।

3. घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

4. अनाज का दान- अन्नदान में गेहूं, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।

5. भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतान लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।

6. वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।

7. सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।

8. चांदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चांदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।

9. गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

10. नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।

ब्राह्मणों को दान देते समय यह मंत्र बोलना चाहिए-
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।।

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

मंदिर शब्द का क्या अर्थ है?



मंदिर
 शब्द में 'मनऔर 'दरकी संधि है
 मन + दर मन अर्थात मन दर अर्थात द्वार मन का द्वार

तात्पर्य यह कि जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैंवह स्थान मंदिर है।  +   अर्थात मम = मैं  अर्थात नहीं जहाँ मैं नहीं !!
अर्थात जिस स्थान पर जाकर हमारा 'मैंयानि अंहकार 'रहे वह स्थान मंदिर है। ईश्वर हमारे मन में ही हैअतजहाँ 'मैं' ''रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।

 अध्यात्म के मार्ग में क्या भौतिकता अनिवार्य है ! मंदिर की आवश्यकता नही है ! रत्नों से सज्जित शिवलिंग भी आवशकता नही है किसी व्यक्ति की स्वकृति आवशकता नही है मेरे भक्तो से मेरा सम्बन्ध तोह वयक्तित्व है उसमे किसी भी प्रकार माध्यम अनिवार्य नही है रूप देह स्वस संस्कृति समाज नियम विधि या विधान किसी भी प्रकार का बंधन अनिवाय नही है !

मैं अपने भक्तो की कृपा उनकी भावनाओ के अनुपात करता हूँ ! किसी माध्यम पर उनकी उपलब्धियों के आधार पर नही या इसके अनुसार भी नही के मेरे भक्त ने भक्ति किन बहुमूलयो रत्नों से या कितने भव्य मंदिर में की है ! मैं किसी स्थान तक सिमित नही रह सकता मैं तोह सर्वयापी हूँ तुम मुझे अपने भीतर ढूंढ कर बहार ढूंढने की आवशकता ही क्या है!

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

नमः शिवाय मंत्र की शक्ति

 शिव के पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय में यदि ॐ को आगे जोड़ दिया जाये तो यह भगवान शिव का षडक्षर मंत्र हो जाता है | जो इस तरह बनता है , ॐ नमः शिवाय | शिव के मन्त्र सरिता में इस मंत्र का विशेष स्थान है | यह जितना सरल मंत्र है उतना ही शक्तिशाली और चमत्कारी भी है | इस पंचाक्षर और षडक्षर मन्त्र का यदि आप रुद्राक्ष की माला से सही जाप करेंगे तो अपने सभी मनोरथ को पूर्ण कर सकेंगे |


नमः शिवाय मंत्र जप का स्थान

किसी शिवालय में या अपने घर के शिवलिंग के पास भी मंत्र जप करना उत्तम बताया गया है | महामृत्युञ्जय मंत्र की शक्ति से आप पहले ही परिचित होंगे |
यदि आप किसी पवित्र नदी के किनारे शिवलिंग स्थापना और पूजन के बाद जप करेंगे तो उसका फल भी उत्तम प्राप्त होगा |
आप किसी पर्वत और शांत वन में भी यह शिव पंचाक्षर और षडक्षर मन्त्र का जाप कर सकते है |

कितना जप करे

यह एक मात्र मंत्र ऐसा है जिसकी कोई जप संख्या नही है | आप जितना इसका जप करेंगे उतना ही यह सिद्ध होता जायेगा | ॐ नमः शिवाय मंत्र जितना सरल है उतना ही चमत्कार से भरा हुआ है | ब्रहमस्वरुप महा शिव की कृपा पाने का सबसे आसान रास्ता है इस मंत्र का उच्चारण |
भगवान शंकर का पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय ही अमोघ एवं मोक्षदायी है, किंतु विषम काल में यदि भक्त पर कोई कठिन व्याधि या समस्या आन पड़े तब श्रद्धापूर्वक ‘ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरू कुरू शिवाय नमः ॐ’ के मंत्र का एक लाख जप करना चाहिए। यह बड़ी से बड़ी समस्या और विघ्न को टाल देता है।
स्नान के बाद कुश के आसन पर विराजमान होकर रुद्राक्ष माला से शिव के चमत्कारी मंत्रों का जप करना विलक्षण सिद्धि व मनचाहे लाभ देने वाला होता है |

शिव के मंत्र और जप विधि 

यह मंत्र ११ , २१ , १०१ ,१००१ बार बोले जा सकते है | ध्यान रखे की मंत्र उच्चारण सही हो और मन उस समय चंचल नहीं हो |

शिवजी के कुछ नामो से जुड़े मंत्र

ॐ अघोराय नम:
ॐ शर्वाय नम:
ॐ विरूपाक्षाय नम:
ॐ विश्वरूपिणे नम:
ॐ त्र्यम्बकाय नम:
ॐ कपर्दिने नम:
ॐ भैरवाय नम:
ॐ शूलपाणये नम:
ॐ ईशानाय नम:
ॐ महेश्वराय नम:

यह है आशुतोष भगवान शिव को प्रसन्न करने के अत्यंत सरल और अचूक मंत्र। इन मंत्रों का प्रतिदिन रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिए। जप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।
जप के पूर्व शिवजी को बिल्व पत्र अर्पित करना या उनके ऊपर जलधारा लगाना चाहिए।

कुछ अन्य मंत्र 

* ऊर्ध्व भू फट् ।
* नमः शिवाय ।
शिव मंत्र जप विधि
* ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय ।
* ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा ।
* इं क्षं मं औं अं ।
* प्रौं ह्रीं ठः ।
* नमो नीलकण्ठाय ।
* ॐ पार्वतीपतये नमः ।
* ॐ पशुपतये नम:

इसके अलावा काल पर विजय प्राप्त करने वाला महामृत्युञ्जय मंत्र भी सर्वोतम है |
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

सोमवार, 9 अगस्त 2021

अघोर

 

अघोर मार्ग का तन्त्र में बहुत उच्च स्थान है लेकिन अघोर मार्ग पर चलना उतना ही कठिन भी है। आज के समय मे अघोर के प्रति लोग ज्यादा आकर्षित इसलिए हो रहे है क्योकि इस मार्ग में शुद्ध अशुद्ध का कोई नियम नही होता। मास मदिरा स्त्री किसी प्रकार का कोई नियम नही लोगो को ऐसी ही तो आजादी चाहिए। लेकिन मास मदिरा स्त्री का अघोर में क्या महत्व है ये जानना भी आवश्यक है।

मास मदिरा पीकर स्त्री संग लिप्त रहना अघोर नही है। ये अघोर के नाम पर सिर्फ पाखंड है। अघोर क्या पूरे तन्त्र में स्त्री को शक्ति स्वरूप में देखकर पूजन होता है ना कि स्त्री भोग की वस्तु है। स्त्री के अंदर माँ कामाख्या को देखकर पुजन होता है। लेकिन लोगो ने अपनी ही इच्छाओ की पूर्ति के लिए तन्त्र जैसे मार्ग को भी दूषित कर दिया है जिससे आम लोग नाम से भी भय खाते है। अघोर तो भगवान शिव का ही रूप है जो भेदभाव मिटाता है।


मास मदिरा का प्रयोग भोग के लिए किया जाता है क्योकि स्मशानिक शक्तियो का भोग यही है। इसका अर्थ ये नही होता कि आप सयम भी मास मदिरा पीकर पड़े रहो और लोगो को गालिया देकर बात करो। ऐसा करने वाले लोग अघोर को कभी नही समझ सकते।

अघोर कभी नही कहता काले वस्त्र धारण करो स्मशान में बैठो , बड़ी बड़ी मालाएं धारण करो ये सब संसारिकता में रहकर कर रहे हो तो पूर्णतया दिखावा है। ये सब विधि विधान उनके लिए होता है जो संसार से रिश्ता तोड़ चुका हो। सांसारिक गृहस्थ लोग जो अघोर मार्ग से दीक्षा प्राप्त हुए होते है उनको आप पहचान भी नही पाते कि अघोरी है क्योकि सामान्य लोगो की तरह रहते है सिर्फ अपने पूजन के समय वस्त्र धारण करते है।

अघोर में गृहस्थ लोग भी आ सकते है ऐसा नही है इसके लिए कुछ त्याग करने या घरबार छोड़ने की आवश्कयता है। दीक्षा प्राप्त करके अपने घर में सात्विक साधना कर सकते है जिससे आपकी आत्मा की यात्रा आगे बढे सके। 

सोमवार, 26 जुलाई 2021

सावन माह - क्या चढ़ाएं शिव को?

 



शिव बहुत भोले हैं, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कुछ छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है।

1. सावन में रोज 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

2. अगर आपके घर में किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो सावन में रोज सुबह घर में गोमूत्र का छिड़काव करें तथा गुग्गुल का धूप दें।

3. यदि आपके विवाह में अड़चन आ रही है तो सावन में रोज शिवलिंग पर केसर मिला हुआ दूध चढ़ाएं। इससे जल्दी ही आपके विवाह के योग बन सकते हैं।

4. सावन में रोज नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं। इससे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और मन प्रसन्न रहेगा।

5. सावन में गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी तथा पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी।

6. सावन में रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निपट कर समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इससे मन को शांति मिलेगी।

7. सावन में किसी नदी या तालाब जाकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं। जब तक यह काम करें मन ही मन में भगवान शिव का ध्यान करते रहें। यह धन प्राप्ति का बहुत ही सरल उपाय है।

8 .सावन के महीने में किसी भी दिन घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें और उसकी यथा विधि पूजन करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जप करें!

ऐं ह्रीं श्रीं ॐ नम: शिवाय: श्रीं ह्रीं ऐं

प्रत्येक मंत्र के साथ बिल्वपत्र पारद शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र के तीनों दलों पर लाल चंदन से क्रमश: ऐं, ह्री, श्रीं लिखें। अंतिम 108 वां बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद निकाल लें तथा उसे अपने पूजन स्थान पर रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करें। माना जाता है ऐसा करने से व्यक्ति की आमदानी में इजाफा होता है।

9. संतान प्राप्ति के लिए उपाय - सावन में किसी भी दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव का पूजन करें। इसके पश्चात गेहूं के आटे से 11 शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिव महिम्न स्त्रोत से जलाभिषेक करें। इस प्रकार 11 बार जलाभिषेक करें। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। यह प्रयोग लगातार 21 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।

10. बीमारी ठीक करने के लिए उपाय - सावन में किसी सोमवार को पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें।
अभिषेक करते समय ॐ जूं स: मंत्र का जाप करते रहें। इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। इस उपाय से बीमारी ठीक होने में लाभ मिलता है।

11. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

12. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

13. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।

14. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

15 . बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

16 . तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

17 . शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

18. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

19. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।

20. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है।

21. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

22. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

23 . अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

24. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

25. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

26. जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

27 . कनेर के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

28. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

29. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।

30. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजन में शुभ माना गया है।

31. शमी का पत्र शिवलिंग पर चढ़ाने से धन और सौभाग्य म ए वृद्धि होती है। प्रतिदिन शिवमंदिर जाकर तांबे के लोटे में गंगाजल या पवित्र जल भरकर ले जाएँ। उसमें चावल और सफ़ेद चन्दन मिलाकर शिवलिंग पर "ॐ नमः शिवाय" बोलते हुए अर्पित कर दें। जल चढ़ाने के उपरांत भगवान शिव को चावल, बेलपत्र, सफ़ेद वस्त्र, जनेऊ और मिठाई के साथ शमी का पत्र भी चढ़ाएँ।ॐ सोम सोमाय नमः

32.शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

पूजन साधना में भोग का महत्व



 जिस प्रकार इंसान को अपनी स्वास प्रिय होती है उसी तरह देवो को भी अपना भोग प्रिय है। यदि आपने कुछ मांगा है और उसके एवज में भोग नही दिया तो देव शक्ति रुष्ट हो जाती है। आपको भोग सामान्य सी चीज लगती है लेकिन देव देवी के लिए बहुत महत्व रखती है। जब कोई देव या देवी आपके लिए कार्य करती है तो उसमे काफी ऊर्जा का व्यय होता है और ऊर्जा की पूर्ति वो शक्ति आपके दिए भोग से करती है।


हम नित्य पूजन तो करते है लेकिन भोग नही लगाते तो आपके कुलदेव आपके इष्टदेव पूजन तक में भी नही आएंगे क्योकि आने जाने भी में ऊर्जा का व्यय होता है। आप हवन करते है तो सबसे पहले देवो को भोग लगता है तब उनका आवाहन होता है। बहुत से लोग कहते है हम 2-2 घण्टे पूजन करते है लेकिन शांति नही मिलती। सिर्फ दीप जला देने और चालीसा स्तोत्र पाठ कर देने से पूजन पूर्ण नही होता है बिना भोग के पूजन कभी पूर्ण नही हो सकता। जितने भी बड़े मन्दिर है उनमें नियम से भोग लगता है और भोग लगने के बाद मन्दिर में आरती पूजन होता है।

ऐसे ही साधक कोई साधना करता है तो उस देव या देवी का भोग लगता है फिर उसका आवाहन करके अपनी साधना आरम्भ करता है। अगर आप कुछ शक्तियों से इच्छा रखते है तो आपको भी उसके एवज में कुछ देना ही पड़ता है तब ही कुछ प्राप्त होता है।

आप देव देवी को भोग लगाते है इससे भी उनको मिलती है जिससे उनकी तृप्ति हो जाती है। आपको भोजन खाने के बाद ऊर्जा मिलती है लेकिन देव देवी इस भोजन में से जो हम भोग स्वरूप रखते है उसमे से ऊर्जा ग्रहण कर लेते है। क्योकि उनकी कोई देह नही होती। यही कारण है हम पूजन साधना में भोग सबसे पहले लगाते है। किसी शक्तियों से कार्य करवाते है तो भोग लगाते है क्योकि उनको भी कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। 

गुरुवार, 8 जुलाई 2021

दिव्य यात्रा के अनुभव।

 

ध्यान, साधना, मन्त्र जाप करते हुए शारीरिक दर्द, विशेष रूप से गर्दन, कंधे और पीठ में। यह आपके आध्यात्मिक डीएनए स्तर पर गहन परिवर्तन का परिणाम है क्योंकि "ईश्वरीय बीज"(दिव्य ऊर्जा) जागृत होता है।

बिना किसी कारण के लिए गहरी आंतरिक उदासी महसूस करना इस अनुभव से आप अपने अतीत (इस जीवनकाल और अन्य) कि दुखद घटनाओं से मुक्त होने पर अनुभव करते हैं और इससे अकारण दुःख की भावना पैदा होती है । यह कुछ ऐसा हैं जैसे कई वषों तक अपनें घर को छोङ कर नयें घर में जाते है और पुराने घरों की यादें, ऊर्जा और अनुभवों को छोड़ने से जो उदासी अनुभव होतीं है।
वर्तमान परिवार के लोगों से अपनें को अलग महसूस करना, हम पारिवारीक रिश्तों में अपनें पुराने कर्मों के कारण (लेन-देन) से जुड़े हुए हैं। जब आप कर्म चक्र से निकलते हैं, तो पुराने रिश्तों के बंधनो से मुक्त होने लगते हैं। यह अनुभव हैं जैसे कि आप अपने परिवार और दोस्तों से दूर रह रहे हैं। यह समय भी गुजर जाएगा। समय के बाद, यदि आप उपयुक्त हैं तो आप उनके साथ एक नया रिश्ता विकसित कर सकते हैं। हालांकि, रिश्ते को एक नई ऊर्जा के आधार पर निभाया जाएगा बिना कार्मिक संलग्नकता के।

स्वप्न
इनमें आप युद्ध और लड़ाई के सपने, राक्षस के पीछे भागने या ङरावने सपने शामिल हो सकते हैं। इसमे भी पुरानी ऊर्जा को भीतर से रीलिज़ कर रहे हैं, और अतीत की ये ऊर्जा अक्सर युद्ध के रूप में दर्शायी जाती है, डर कर भागने के जैसे इत्यादि। साधना मार्ग पर बढ़ते हुए ये अनुभव भी धीरे धीरे खत्म हो जाएगा।

अकेलेपन की भावना
यह भावना लोगों के साथ होने पर भी अनुभव होती हैं। कई लोगों के होने पर भी आप अपनें आप को अकेले महसूस कर सकते हैं और लोगों कि उस भीङ से वहाँ से भाग जाये ऐसा भी महसूस कर सकतें हैं। यह इसलिए अनुभव होता हैं क्योकि हम निरंतर साधना मार्ग पर चल रहे हैं। अकेलेपन की भावनाओं के कारण आपको चिंता होती है, इस समय दूसरों से बातचीत करना या नयें संबंध बनाने में मुश्किल अनुभव करेगें। अकेलेपन की भावनाएं इस तथ्य से भी जुड़ी हुई हैं कि आपकी मार्गदर्शिकाएँ समाप्त हो चुकी हैं जो आपके सभी जीवन कालों में आपके सभी यात्रा पर रहे हैं। यह उनके लिए दूर करने का समय था ताकि आप उनकी जगह अपने देवत्व से भर सकें। यह समय भी गुजर जाएगा। भीतर का शून्य अपने ही सत्य ईश्वर की प्रेम और ऊर्जा से भर जाएगा।

घर(मंजिल) जाने के लिए एक गहन इच्छा
यह अनुभव शायद किसी भी परिस्थितियों में सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण है। ग्रह(पृथ्वी) छोड़ने और अपनें वास्तविक घर(परम्) पर वापस जाने की एक गहरी और भारी इच्छा का अनुभव है। ध्यान साधना करते हुए आपने अपने आपको पूर्ण स्वच्छ और निर्मल बना लिया अब आप एक शांत ऊर्जा है जो घर जाना चाहती है। इसके लिए मूल कारण काफी आसान है। आपने अपना कर्म चक्र पूरा कर लिया है आपने इस जीवनकाल के लिए अपना अनुबंध पूरा कर लिया है। अब समय आ गया सदा सदा के लिए उस परम् ऊर्जा में विलीन होने का। यही आत्मा की यात्रा है जिसके लिए हम जन्म पर जन्म लेते रहते है।

अगर आप पृथ्वी पर दूसरे कर्तव्य के दौर के लिए तैयार हैं? आप नई ऊर्जा में जाने की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं? अगर हां, वास्तव में आप अभी घर जा सकते हैं। लेकिन आप ये बहुत दूर आ गए है। इसके लिए पूर्ण प्रयास करना होगा गुरु सानिध्य में रहकर। निंरतर ध्यान साधना में जीवन व्यतीत करना होगा तभी ये सम्भव है। कर्म चक्र से निकलना सहज नही है ये गुरु कृपा से ही सम्भव है। इसलिए इस यात्रा के लिए आपको आवश्यकता है एक अनुभवी गुरु की जो आपको पूर्ण और सही मार्गदर्शन दे सके और इस दिव्य यात्रा को पूर्ण करवा है। अब समय है इस परम् मार्ग पर चलने का गुरु सानिध्य में जाने का। ये संसार, रिश्ते नाते हर जन्म में मिल जाते है लेकिन वो बड़े भाग्यशाली होते है जिनको गुरु प्राप्त हो जाते है।

सोमवार, 28 जून 2021

किन पेड़ों की लकड़ी से नहीं बनानी चाहिए भगवान की मूर्ति

1. दूध वाले वृक्ष – जिन पेड़ों से दूध निकलता हो, उनका उपयोग देवताओं की मूर्ति बनाने में नहीं करना चाहिए।

2. कमजोर वृक्ष – जिन पेड़ों को दीमक आदि जंतुओं ने खोखला कर दिया हो, उससे भी देवताओं की मूर्ति न बनवाएं।

3. वल्मीक वाले वृक्ष – जिन पेड़ों के नीचे बांबी (सांप व चींटियों के रहने का स्थान) हो। उससे भी देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए।


4. शमशान के वृक्ष – यदि कोई पेड़ शमशान में उगा हो तो उससे भी देवी-देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए। ये अशुभ होता है।


5. पुत्रक वृक्ष – बिना संतान वाले किसी व्यक्ति ने यदि कोई पेड़ अपने पुत्र के रूप में लगाया हो, उससे भी देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए।

6. सूखा वृक्ष – ऐसे पेड़ जिनके आगे का भाग सुख गया हो या जिनकी एक-दो ही शाखा हो, उससे भी देवताओं की मूर्ति नहीं बनवानी चाहिए।

7. जिस पेड़ पर पक्षी रहते हों तथा हवा, पानी, बिजली या जानवरों से दूषित पेड़ों का उपयोग भी देव प्रतिमा बनवाने में न करें। 

बुधवार, 16 जून 2021

वैराग्य क्या होता है ?



एक समय महादेव अपनी  ज्ञान सभा मैं बैठे थे ! तब किसी ऋषि  ने महादेव से प्रश्न किया के प्रभु आप तोह सदा वैराग्य के प्रतीक माने गए है परंतु विवाह के उपरांत आप इस तरह ग्रस्तआश्रम में प्रवेश करना क्या यह आपके दर्शन शास्त्र के नियम के विपरीत नही होगा तोह क्या आप सदा के लिए वैराग्य को त्याग देंगे प्रभु ?

महादेव ने उत्तर दिया नही ऋषि कदापि नही विवाह श्रिश्टी के उधार के लिए और सांसारिक कर्म के चलते रहने के लिए अनिवार्य है और यही कारन है के मैंने विवाह स्वीकार किया और रहा प्रश्न वैराग्य का  दर्शन शास्त्र के अनुसार और मेरी विचार धरा के अन्तर्गत विवाह और वैराग्य एक दूसरे के पूरक बन सकते है ! मेरा यह विवाह इसी बात का आदर्श उद्धरण बनेगा !

ऋषि ने फिर प्रश्न किया विवाह तोह पवर्ती धर्म का प्रतीक है जिसके द्वारा परिवार की स्थपना होती है और परिवार की स्थापना से उत्पन होती है सांसारिक मोह माया और इच्छाएं उन इच्छाओ के पूर्ति हेतु हम देवी देवताओ को प्रसन करने हेतु हम यग करते है और इसी कारण कर्तव्य नियम विधि विधान यह सब अनिवार्य हो जाता है ! किन्तु वैराग तोह निवरती धर्म का प्रतीक है जिसने सभी मोह माया का त्याग की सांसारिक मोह माया का त्याग ही जीवन का मुख उद्देश्य रह जाता है ? जहा न कर्तव्य महत्व रखता है न विधि विधान और न ही कोई नियम से स्वीकार है दोनों विपरीत दिशा में जाते हुए मार्ग है दोनों का लक्ष्य उतना ही भिन है जितना यह पृथ्वी और आकाश भला दोनों का मिलान कैसे संभव है महादेव ?

महादेव ने उत्तर दिया सब के साथ रहते हुए भी किसी का मोह न करना यह भी तोह वैराग्य हो सकता है ! विवाह के नियमो का पालन करना किन्तु माया में न उलझन , अहम  भाव को दूर रख अपने धर्म की पूर्ति करना यह  वैराग्य के रूप ही तोह है ! यदि कोइए वैवाहिक जीवन की इस परिभाषा को अपना ले तोह विवाह और वैराग्य एक दूसरे के पूरक बन सकते है और यही सबसे उत्तम विवाह का सर्वेष्ट उद्धरण बन जाएगा!


सोमवार, 7 जून 2021

क्यों धरा बजरंगबली हनुमान ने पंचमुखी रूप



यह बात उस समय की है भगवान राम को रावण का युद्ध अन्तिमचरण में था ! तब रावण ने अपने आप को हार से  बचने की लिए एक अंतिम योजना बनाइ !
उसने अपने मायावी भाई अहिरावन को याद किया जो मां भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र मंत्र का का बड़ा ज्ञाता था। 

उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सारी सेना को निद्रा में डाल दिया तथा राम एव लक्ष्मण का अपरहण कर उनकी देने उन्हें पाताल लोक ले गया। कुछ समय बाद जब माया का प्रभाव कम हुआ तब विभिषण समझ गए की ये  कि यह कार्य अहिरावन ने किया है और तब यह सारी  वार्ता विभीषण ने हनुमान जी को समझी और कहा की श्री राम और लक्ष्मण सहायता करने के लिए उन्हें पाताल लोक जाना होगा क्योंकि राम जी और लक्ष्मण जी का हरण किया गया है  तब हनुमान जी ने पाताल  प्रस्थान  किया जहाँ उन्हें पाताल लोक के द्वार पर उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज मिला और युद्ध में उसे हराने के बाद हनुमान जी ने अहिरावण का वध किया और बंधक श्री राम और लक्ष्मण से मिले

वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा।

 उत्तर में वराह मुखदक्षिण दिशा में नरसिंह मुखपश्चिम में गरुड़ मुखआकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।

 इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया।  

गुरुवार, 3 जून 2021

सुबह-सुबह के समय ही क्यों करना चाहिए पूजा ?

 भगवान की पूजा के लिए सुबह-सुबह का समय सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। वैसे तो दिन में कभी भी सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जा सकती है लेकिन ब्रह्म मुहूर्त में पूजा-आराधना करने का विधान है।


शास्त्रों के अनुसार प्रभु भक्ति के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि सुबह के समय हमारा मन शांत रहता है। नींद से जागने के बाद मन एकदम शांत और स्थाई रहता है। दिमाग में इधर-उधर की बातों या व्यर्थ विचार नहीं होते। भगवान की भक्ति के लिए जरूरी है कि मन एकाग्र रहे ताकि प्रभु में पूरा ध्यान लगाया जा सके।
सुबह के बाद दिन में किसी और समय में हम कई कार्य करते हैं जो कि हमारे मन-मस्तिष्क को पूरी एकाग्र नहीं होने देते। जिससे मन अशांत रहता है, कई बुरी और अधार्मिक बातों में भी मन उलझ जाता है। जिससे भक्ति में ध्यान लगाना असंभव जैसा ही होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त को पूजादि कर्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

भगवान उसी भक्ति से प्रसन्न होते हैं जहां मन शांत हो और किसी भी प्रकार की अधार्मिक बातें ना हो। सुबह की गई पूजा के प्रभाव से मन को इतना बल मिलता है कि दिनभर के सारे तनाव आसानी से सहन कर सके। दिमाग तेजी से चलता है, हम एक साथ कई योजनाओं पर कार्य कर पाते हैं। इसी वजह से सुबह-सुबह पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।

मंगलवार, 1 जून 2021

भगवान शिव ने पार्वती को बताए थे जीवन के ये 5 रहस्य

 

भगवान शिव ने देवी पार्वती को समय-समय पर कई ज्ञान की बातें बताई हैं। जिनमें मनुष्य के सामाजिक जीवन से लेकर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की बातें शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती को 5 ऐसी बातें बताई थीं जो हर मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, जिन्हें जानकर उनका पालन हर किसी को करना ही चाहिए-


1. क्या है सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पाप

देवी पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा धर्म और अधर्म मानी जाने वाली बात के बारे में बताया है। भगवान शंकर कहते है-
नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्।।

अर्थात- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या उसका साथ देना। इसलिए हर किसी को अपने मन, अपनी बातें और अपने कामों से हमेशा उन्हीं को शामिल करना चाहिए, जिनमें सच्चाई हो, क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म है ही नहीं। असत्य कहना या किसी भी तरह से झूठ का साथ देना मनुष्य की बर्बादी का कारण बन सकता है।


2. काम करने के साथ इस एक और बात का रखें
आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।

अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।

कई लोगों के मन में गलत काम करते समय यही भाव मन में होता है कि उन्हें कोई नहीं देख रहा और इसी वजह से वे बिना किसी भी डर के पाप कर्म करते जाते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है। मनुष्य अपने सभी कर्मों का साक्षी खुद ही होता है। अगर मनुष्य हमेशा यह एक भाव मन में रखेगा तो वह कोई भी पाप कर्म करने से खुद ही खुद को रोक लेगा।


3. कभी न करें ये तीन काम करने की इच्छा
मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्।

अर्थात- आगे भगवान शिव कहते है कि- किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जैसा काम करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है।

यानि मनुष्य को अपने मन में ऐसी कोई बात नहीं आने देना चाहिए, जो धर्म-ग्रंथों के अनुसार पाप मानी जाए। न अपने मुंह से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए और न ही ऐसा कोई काम करना चाहिए, जिससे दूसरों को कोई परेशानी या दुख पहुंचे। पाप कर्म करने से मनुष्य को न सिर्फ जीवित होते हुए इसके परिणाम भोगना पड़ते हैं बल्कि मरने के बाद नरक में भी यातनाएं झेलना पड़ती हैं।


4. सफल होने के लिए ध्यान रखें ये एक बात

संसार में हर मनुष्य को किसी न किसी मनुष्य, वस्तु या परिस्थित से आसक्ति यानि लगाव होता ही है। लगाव और मोह का ऐसा जाल होता है, जिससे छूट पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इससे छुटकारा पाए बिना मनुष्य की सफलता मुमकिन नहीं होती, इसलिए भगवान शिव ने इससे बचने का एक उपाय बताया है।
-दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते।

अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते।।

अर्थात- भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य को जिस भी व्यक्ति या परिस्थित से लगाव हो रहा हो, जो कि उसकी सफलता में रुकावट बन रही हो, मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना शुरू कर देना चाहिए। सोचना चाहिए कि यह कुछ पल का लगाव हमारी सफलता का बाधक बन रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे मनुष्य लगाव और मोह के जाल से छूट जाएगा और अपने सभी कामों में सफलता पाने लगेगा।


5. यह एक बात समझ लेंगे तो नहीं करना पड़ेगा दुखों का सामना
नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।
सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

अर्थात
- आगे भगवान शिव मनुष्यो को एक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि- मनुष्य की तृष्णा यानि इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं होता और इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है। मनुष्य का अपने मन पर वश नहीं होता। हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। जरुरी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करके शांत मन से जीवन बिताएं।

सोमवार, 31 मई 2021

केदारनाथ को क्यों कहते हैं ‘जागृत महादेव’ ?

एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।


पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विस्वास था अपने शिव पर कि वो जरुर कृपा करेगे। उसे बहुत भुख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी की आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है। वह सन्यासी बाबा उस के पास आया और पास में बैठ गया। पूछा - बेटा कहाँ से आये हो ? उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।

बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा, किन्तु वह कहीं नहीं थे । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला - कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा - तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए ! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा - नही, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।

उन्होंने कहा - लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो ? पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी। कि एक सन्यासी आया था - लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है। हम आपकी भक्ति को प्रणाम करते है।

महादेव के राम

 महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?


महादेव जी ने पार्वती जी से कहते हैं कि हे देवी ! जो व्यक्ति एक बार *राम* कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ।

पार्वती जी ने एक बार महादेव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगाते हैं?उसी समय महादेव जी ने पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग *राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे।

 महादेव   ने कहा कि देखो पार्वती ! इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो *राम* नाम का स्मरण करते हुए आते हैं और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य *राम* नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगों के मुख से *राम* नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ।

राम* नाम निमित्त बनने वाले यह  शव मुझे बहुत प्रिय है।
एक बार महादेव कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।महादेव ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।

पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ।
महादेवने बताया, केवल एक बार *राम* कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा।
एक *राम* नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है।पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच –
*केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?*
*पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।


ईश्वर उवाच-
श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।*

यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।


*आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।*
*लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।*

भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है।

*भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।*
*तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।*

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दूसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।
इसीलिए हमारे देश में प्रणाम

​​​​​​ *राम राम* कहकर किया जाता है।

​​​​​​*जय श्री राम*

गुरुवार, 27 मई 2021

भगवान शिव के आदेश पर लिखी गई श्री रामचरितमानस

 श्रीरामचरित मानस का अपना विशेष स्थान है। इस ग्रंथ में भगवान श्रीराम के जीवन का बहुत ही सुंदर वर्णन मिलता है। अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही तुलसीदासजी ने श्रीरामचरित मानस की रचना संपूर्ण की थी। श्रीरामचरित मानस व गोस्वामी तुलसीदासजी के बारे में ऐसी अनेक बातें हैं, जिन्हें कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको वही बातें बता रहे हैं-


श्रीरामचरित मानस के अनुसार, एक रात जब तुलसीदासजी सो रहे थे तब उन्हें सपना आया। सपने में भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तुरंत ही तुलसीदासजी की नींद टूट गई और वे उठ कर बैठ गए।

तभी वहां भगवान शिव और पार्वती प्रकट हुए और उन्होंने कहा- तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी में काव्य रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी रचना सामवेद के समान फलवती होगी। भगवान शिव की आज्ञा मानकर तुलसीदासजी अयोध्या आ गए।

संवत् 1631 को रामनवमी के दिन वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में रामजन्म के समय था। उस दिन सुबह तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। 2 वर्ष, 7 महीने व 26 दिन में ग्रंथ की समाप्ति हुई। संवत् 1633 के अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इस ग्रंथ के सातों कांड पूर्ण हुए।

एक बार कुछ विद्वानों ने श्रीरामचरितमानस की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने भगवान काशी विश्वनाथ के मंदिर में सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबसे नीचे श्रीरामचरितमानस ग्रंथ रख दिया। मंदिर बंद कर दिया गया।

सुबह जब मंदिर खोला गया तो सभी ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। यह देखकर घमंडी विद्वान बहुत लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदासजी से क्षमा मांगी और श्रीरामचरितमानस को सर्वप्रमुख ग्रंथ माना।

सोमवार, 17 मई 2021

जीवन में सदैव अपने जीवन साथी का सम्मान करो


आज के युग में महिलाओं के सम्मान पर बेहद चर्चा होती है। सब जानते हैं कि महिलाओं को सम्मानपूर्वक सुरक्षित महौल दिया जाए  तो वे अद्भुत कार्य कर सकती हैं। आपको आश्चर्य होगा,कि सृष्टि में सबसे पहले महिला सशक्तिकरण की अलख भी महादेव ने ही किया था।

भगवान शिव ने  अपनी पत्नी से इतना प्रेम और समर्पण का भाव रखा, कि उन्हें योगबल से अपने आधे शरीर का हिस्सा बना लिया। इस रूप में आधे भगवान शिव हैं और आधे माता पार्वती। माता पार्वती ही महाशक्ति हैं जिससे हमारी प्रकृति बनी है। अर्धनारीश्वर रूप यह दर्शाता है कि प्रकृति और पुरुष के संयोग के बिना महाशक्ति अर्जित नहीं की जा सकती। स्वयं शिव भी शक्ति के वियोग में शव स्वरुप हो जाते हैं।

भगवान शिव के इसी प्रेम,सम्मान और समर्पण के प्रतिदान स्वरुप माता पार्वती कई बार अपने पूर्ण शक्तिशाली आदिशक्ति स्वरुप दुर्गा के रुप में प्रकट हुईं और समस्त संसार का रक्षण और पोषण किया।



शुक्रवार, 7 मई 2021

महाभारत युद्ध का 18 दिनों का घटनाक्रम : जानिए किस दिन क्या हुआ था

 


 मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत युद्ध प्रारम्भ हुआ था जो लगातार 18 दिनों तक चला था। यहां जानिए महाभारत युद्ध के 18 दिनों में किस दिन क्या हुआ था…



  • पहला दिन

युद्ध के पहले दिन पांडव पक्ष को भारी हानि हुई थी। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत को शल्य और भीष्म ने मार दिया था। भीष्म ने पांडवों के कई सैनिकों का वध कर दिया था। ये दिन कौरवों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला और पांडव के लिए निराशाजनक था।



  • दूसरा दिन

दूसरे दिन पांडवों को अधिक नुकसान नहीं हुआ था। द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया। भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया। भीम ने हजारों कलिंग और निषाद मार गिराए। अर्जुन ने भीष्म को रोके रखा।


  • तीसरा दिन

तीसरे दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया। इसके बाद भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, लेकिन अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाते हैं, जिससे श्रीकृष्ण स्वयं ही भीष्म को मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं। तब अर्जुन भरोसा दिलाते हैं कि वे पूरे उत्साह से युद्ध लड़ेंगे।


  • चौथा दिन

इस दिन कौरवों अर्जुन को रोक नहीं सके। भीम ने कौरव सेना में हाहाकार मचा दिया। दुर्योधन ने अपनी गजसेना भीम को मारने के लिए भेजी, लेकिन घटोत्कच के साथ मिलकर भीम ने उन सबको मार दिया। भीष्म से अर्जुन और भीम का भयंकर युद्ध हुआ।



  • पांचवां दिन

युद्ध के पांचवें दिन भीष्म ने पांडव सेना में खलबली मचा दी। भीष्म को रोकने के लिए अर्जुन और भीम ने उनसे युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य रोके रखा। भीष्म ने सात्यकि को युद्ध से भागने के लिए मजबूर कर दिया।


  • छठा दिन

इस दिन भी दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। दुर्योधन क्रोधित होता रहा, लेकिन भीष्म उसे आश्वासन देते रहे और पांचाल सेना का संहार कर दिया।


  • सातवां दिन

सातवें दिन अर्जुन कौरव सेना पर हावी हो जाता है। धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है, अर्जुन का पुत्र इरावान विन्द और अनुविन्द को हरा देता है। दिन के अंत में भीष्म पांडव सेना पर हावी हो जाते हैं।


  • आठवां दिन

आठवें दिन भी भीष्म पांडव सेना पर हावी रहते हैं। भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देता है, राक्षस अम्बलुष अर्जुन पुत्र इरावान का वध कर देता है। घटोत्कच दुर्योधन को अपनी माया से प्रताड़ित करता है। तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच, भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है। दिन के अंत तक भीम धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।


  • नवां दिन

नवें दिन दुर्योधन भीष्म से कर्ण को युद्ध में लाने की बात कहता है, तब भीष्म उसे आश्वासन देते हैं कि या तो श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे या किसी एक पांडव का वध कर देंगे। युद्ध में भीष्म को रोकने के लिए श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है और वे शस्त्र उठा लेते हैं। इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं।


  • दसवां दिन

इस दिन पांडव श्रीकृष्ण के कहने पर भीष्म से उनकी मुत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म के बताए उपाय के अनुसार अर्जुन शिखंडी को आगे करके भीष्म पर बाण ही बाण चला देते हैं। अर्जुन के बाणों से भीष्म बाणों की शय्या पर लेट जाते हैं।


  • ग्याहरवां दिन

ग्याहरवें दिन कर्ण युद्ध में आ जाता है। कर्ण के कहने पर द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया जाता है। दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे तो युद्ध खत्म हो जाएगा। दुर्योधन की योजना अर्जुन पूरी नहीं होने देता है। कर्ण भी पांडव सेना का भारी संहार करता है।


  • बारहवां दिन

युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए शकुनि और दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन समय पर पहुंचकर युधिष्ठिर को बंदी बनने से बचा लेते हैं।


  • तेरहवां दिन

इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन से युद्ध करने के लिए भेजता है। भगदत्त भीम को हरा देते हैं, अर्जुन के साथ युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा करते हैं। अर्जुन भगदत्त की आंखो की पट्टी तोड़ देता है, जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है। अर्जुन इस अवस्था में ही उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं। जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, लेकिन निकलना नहीं जानता था। युधिष्ठिर भीम आदि को अभिमन्यु के साथ भेजता है, लेकिन चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ सभी को रोक देता है। केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। वह अकेला ही सभी कौरवों से युद्ध करता है और मारा जाता है। पुत्र अभिमन्यु का अन्याय पूर्ण तरीके से वध हुआ देखकर अर्जुन अगले दिन जयद्रथ वध करने की प्रतिज्ञा ले लेता है और ऐसा न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने को कह देता है।


  • चौदहवां दिन

अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव जयद्रथ को बचाने योजना बनाते हैं। द्रोण जयद्रथ को बचाने के लिए उसे सेना के पिछले भाग मे छिपा देते है, लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा किए गए सूर्यास्त के कारण जयद्रथ बाहर आ जाता है और अर्जुन और वध कर देता है। इसी दिन द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।


  • पंद्रहवां दिन

इस दिन पाण्डव छल से द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की मृत्यु का विश्वास दिला देते हैं, जिससे निराश हो द्रोण समाधि ले लेते हैं। इस दशा में धृष्टद्युम्न द्रोण का सिर काटकर वध कर देता है।


  • सोलहवां दिन

इस दिन कर्ण को कौरव सेनापति बनाया जाता है। इस दिन वह पांडव सेना का भयंकर संहार करता है। कर्ण नकुल-सहदेव को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। भीम दुःशासन का वध कर देता है और उसकी छाती का रक्त पीता है।


  • सत्रहवां दिन

सत्रहवें दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है, तब कर्ण पहिया निकालने के लिए नीचे उतरता है और उसी समय श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन कर्ण का वध कर देता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बने, जिसे युधिष्ठिर मार देता है।



  • अठाहरवां दिन

इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए सभी भाइयों को मार देता है। सहदेव शकुनि को मार देता है। अपनी पराजय मानकर दुर्योधन एक तालाब मे छिप जाता है, लेकिन पांडव द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है। तब भीम छल से दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करता है, इससे दुर्योधन की मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

तुलसी पूजा और उससे होने वाले फायदे

 

 एक आध्यात्मिक और आयुर्वेद के रूप तुलसी का पौधा एक बहुत गुणकारी औषधि हैं. तुलसी का पौधा न केवल आध्यात्मिक शांति के लिए , बल्कि घर को प्रदुषण और ,मौसमी बीमारियों से बचाने के लिए भी तुलसी का पौधा बहुत गुणकारी होता हैं ।

तुलसी का पौधा जिस घर में भी होता हैं. वहाँ त्रिदेव निवास करते हैं.तुलसी के पौधे की नियमित रूप से पूजा करने वाला महापापी व्यक्ति भी पवित्र हो जाता हैं. तुलसी के पत्ते के बिना किसी भी प्रसाद या चरणामृत का कोई महत्व नहीं हैं. विष्णु भगवान की पूजा में तुलसी का प्रयोग ही विष्णु पूजा को सफल बना देता हैं ।

तुलसी की पूजा का हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व हैं, तुलसी की पूजा में इन मंत्रो का जाप करने से घर में , सुख , शांति और वैभव आता हैं.तुलसी की पूजा से अकाल मृत्यु का शोक नहीं हो हैं. तुलसी की पूजा करते समय जब उसे जल अर्पित करे , तो इस मन्त्र का जाप करे,

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।I

तुलसी की पूजा करने के दौरान इस मंत्र का जप करते हुए उनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए ।

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

धन , वैभव , सुख, सम्पदा की प्राप्ति के लिए इस मन्त्र का जाप सर्वाधिक उपयुक्त हैं ।

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।


तुलसी न केवल पूजा अर्चना बल्कि यह स्वस्थ्य की दृष्टि से भी बहुत उत्तम है, तुलसी के पत्ते आयुर्वेद चिकित्सा में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. आइये जानते हैं तुलसी के लाभदायक तत्वों के बारे में.

1- तुलसी में आरोग्यदायक तत्व होते हैं, जो मानव को एकाग्र, बनाते हैं. तुलसी को संजीवनी के समान माना गया हैं,

2- तुलसी की पूजा से घर में सौभाग्य, वैभव और सम्पन्नता आती हैं. क्युकी तुलसी को लक्ष्मी स्वरुप माना गया हैं.

3- तुलसी के पत्ते में अमृत समान गुण हैं. तुलसी की पूजा करने से महापापी के भी पाप समाप्त हो जाते हैं.

4- प्रसाद में तुलसी के पत्तो का होना आवश्यक हैं , जिस प्रसाद (कसार ) में तुलसी के पत्ते नहीं होते, उसे भगवान् भी स्वीकार नहीं करते हैं.

5- विष्णु की पूजा में तुलसी का महत्वपूर्ण स्थान हैं, कोई नैवेद्य , चरणामृत न भी हो , केवल तुलसी को ही अर्पित कर देने से विष्णु पूजा सफल और पूर्ण हो जाती हैं.

तुलसी के महत्व का बखान विष्णु पुराण में निहित हैं. तुलसी का पौधा जिस भी घर में हो, उस घर में सुख ,शांति , समृद्धि , हमेशा बनी रहती हैं. विष्णु पुराण में तुलसी के महत्व का वर्णन करते हुए लिखा हैं कि एकादशी, द्वादशी, संक्रांति ,सूर्य ग्रहण , चंद्र ग्रहण के दिन और सूर्यास्त के पश्च्यात तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए. ऐसी मान्यता हैं, कि माता तुलसी एकादशी का व्रत करती हैं, इसलिए एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते को नहीं तोड़ना चाहिए ।

एकादशी के अलावा रविवार का दिन भी बहुत महत्वपूर्ण हैं , इस दिन भी माता तुलसी के पत्तो को नहीं तोड़ना चाहिए , क्युकी रविवार का दिन विष्णु को प्रिय हैं , ऐसे में लक्ष्मी स्वरूपा माँ तुलसी को तोड़ना विष्णु का अपमान करने जैसा हैं ।

किसी भी प्रसाद में तुलसी के पत्तो का प्रयोग आवश्यक हैं, बिना तुलसी के पत्तो के प्रसाद अपूर्ण माना जाता हैं. इसलिए , चरणामृत हो या कसार प्रसाद उसे बनाने के बाद उसमे तुलसी के पत्ते अवश्य डाले . 

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

जानिए महाभारत में कौन किसका था अवतार

 

 महाभारत में जितने भी प्रमुख पात्र थे वे सभी देवता, गंधर्व, यक्ष, रुद्र, वसु, अप्सरा, राक्षस तथा ऋषियों के अंशावतार थे।

भगवान नारायण की आज्ञानुसार ही इन्होंने धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। महाभारत के आदिपर्व में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। उसके अनुसार-

वसिष्ठ ऋषि के श्राप व इंद्र की आज्ञा से आठों वसु शांतनु के द्वारा गंगा से उत्पन्न हुए।उनमें सबसे छोटे भीष्म थे।भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए।महाबली बलराम शेषनाग के अंश थे।

देवगुरु बृहस्पति के अंश से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ।अश्वत्थामा महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुए।रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया।

द्वापर युग के अंश से शकुनि का जन्म हुआ।अरिष्टा का पुत्र हंस नामक गंधर्व धृतराष्ट्र तथा उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में जन्में।सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए।कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृतिका का जन्म हुआ था।

मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था।कर्ण सूर्य का अंशवतार था।युधिष्ठिर धर्म के, भीम वायु के, अर्जुन इंद्र के तथा नकुल व सहदेव अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे।राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रोपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थी।

दुर्योधन कलियुग का तथा उसके सौ भाई पुलस्त्यवंश के राक्षस के अंश थे।मरुदगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था।अभिमन्य, चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था।

अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था।विश्वदेवगण द्रोपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे।

दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था।कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था।इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से सोलह हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं।

इस प्रकार देवता, असुर, गंधर्व, अप्सरा और राक्षस अपने-अपने अंश से मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए थे।

सोमवार, 22 मार्च 2021

आखिर ! क्या थी हनुमान जी की उडने की गति


बचपन में जब हमारे बड़े हमें रामायण की कहानियां सुनाया करते थे तब हमें लक्ष्मण जी के बेहोश होने पर हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेने जाना व जाने का किस्सा सुनाया जाता था जिसमे संजीवनी बूटी ना मिलने पर पूरा का पूरा पर्वत उठाकर लाने वाला किस्सा रोचक लगता था। 

क्या कभी आपने यह सोचा कि उनके उड़ने की गति क्या होगी ? जिस तरह से हनुमान जी एक ही रात में श्रीलंका से हिमालय के पर्वतों पर पहुंचे ? और पहाड़ उठाकर वापस भी आ गए तो निश्चित ही उनके उड़ने की क्षमता बेहद तेज रही होगी। लेकिन कितनी तेज ? इस बात का सही सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता लेकिन फिर भी आपके मन में उठ रहे सवालों के जवाब खोजने के लिए हमने कुछ तथ्यों का सहारा लिया और गुणा भाग करके हनुमान जी की रफ्तार जानने की कोशिश की है।

अगर इसमे कोई गलती या चूक होने कि संभावना भी हो सकती है। जहां तक हमारी जानकारी है जिस वक्त लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध होने वाला था उससे ठीक पहले मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की तपस्या शुरू की थी और वह तपस्या मेघनाथ ने पूरा दिन की थी। इस पूजा की खबर जब श्रीराम व उनकी सेना को लगी तो विभीषण ने बताया कि अगर मेघनाथ की तपस्या पूर्ण हो गई तो मेघनाथ अमर हो जाएगा उसके बाद तीनों लोकों में मेघनाथ को कोई नहीं मार सकेगा। इसीलिए मेघनाथ की तपस्या किसी तरीके से भंग कर के उसे अभी युद्ध के लिए ललकारना होगा। इसके बाद हनुमान जी सहित कई वानर मेघनाथ की तपस्या भंग करने गए। उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से मेघनाथ की तपस्या भंग करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तब तक रात हो चुकी थी।

लक्ष्मण जी ने रात को ही मेघनाथ को युद्ध के लिए ललकारा, रामायण के अनुसार उस समय रात्रि का दूसरा पहर शुरु हो चुका था। दोस्तों रात्रि का पहला पहर सूर्य अस्त होते ही शुरू हो जाता है और सूर्य उदय होने के साथ ही रात्रि का अंतिम यानी चौथा पहर खत्म हो जाता है। यानी चार पहर होते हैं। इसका मतलब प्रत्येक पहर 3 घंटे का हुआ अब अगर आधुनिक काल की घड़ी के हिसाब से देखें तो लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध रात के करीब 9:00 बजे शुरू हुआ होगा। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मण जी और मेघनाथ के बीच बेहद घनघोर युद्ध हुआ था जो लगभग 1 पहर यानी 3 घंटे तक चला था उसके बाद मेघनाथ ने अपने शक्तिशाली अस्त्र का प्रयोग किया जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। लक्ष्मण जी के मूर्छित होने का समय लगभग 12:00 बजे के आसपास का रहा होगा।

लक्ष्मण जी के मूर्छित होने से समस्त वानर सेना में हड़कंप मच गया मेघनाथ ने मूर्छित लक्ष्मण को उठाने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन जो शेषनाग समस्त पृथ्वी को अपने फन पर उठा सकता था उसी शेषनाग के अवतार को भला मेघनाथ कैसे व क्या उठा पाता। लक्ष्मण जी को ना उठा पाने पर मेघनाथ वापस चला गया। श्री राम अपने प्राणों से भी प्यारे भाई को मूर्छित देखकर शोक में डूब गए, उसके बाद विभीषण के कहने पर हनुमान जी लंका में से लंका के राज्य वैद्य को जबरदस्ती उठा लाए। लक्ष्मण जी अगर 12:00 बजे मूर्छित हुए तो जाहिर है उसके बाद श्री राम के शोक और विभीषण द्वारा सुषेण वैद्य लाने के लिया कहना और हनुमान जी द्वारा सुषेण वैद्य को उठा लाना इन सब में कम से कम 1 घंटा तो लग ही गया होगा। यानी रात्रि के करीब 1:00 बज चुके होंगे | इसके बाद वैद्य द्वारा लक्ष्मण की जांच करने और उनके प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने की सलाह देने और हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करने में भी कम से कम आधा घंटा जरूर लगा होगा।

तो हम ये मान सकते हैं कि बजरंगबली हनुमान आज के समय के अनुसार करीब रात्रि में 1:30 पर संजीवनी बूटी लाने के लिए रावण की नगरी से उड़े होंगे। जहां तक सवाल उनके वापस आने का है तो निश्चित ही वह सूर्य उदय होने से पहले वापस आ गए होंगे। यानि की बजरंगबली के वापस आने का समय लगभग 5:00 बजे का रहा होगा। 1:30 बजे लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए हनुमान जी उड़े और 5:00 बजे तक वापस आ गये इसका मतलब हनुमान जी 3:30 घंटे में द्रोणागिरी पर्वत उठाकर वापस आ गए। लेकिन मित्रों इन 3:30 घंटों में से भी हमें कुछ समय कम करना होगा क्योंकि जैसे ही लंका से निकलकर पवन पुत्र भारत आए तो रास्ते में उन्हें कालनेमि नामक राक्षस अपना रूप बदले मिला।

कालनेमि निरंतर श्री राम नाम का जप कर रहा था लेकिन वास्तव में उसकी मंशा हनुमान जी का समय खराब करने की थी। हनुमान जी ने जब जंगल से रामनाम का जाप सुना तो जिज्ञासावश नीचे उतर आए कालनेमि ने खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी बताया और हनुमान जी से कहा कि पहले आप स्नान करके आओ उसके बाद मैं आपको रावण के साथ चल रहे युद्ध का नतीजा बताऊंगा। भोले हनुमान जी उसकी बातों में आ गए और स्नान करने चले गए | स्नान करते समय उनका सामना एक मगरमच्छ से हुआ जिसे हनुमान जी ने मार डाला।

उस मगर की आत्मा ने हनुमान को उस कपटी कालनेमि की वास्तविकता बताई तो बजरंगबली ने उसे भी अपनी पूंछ में लपेटकर परलोक भेज दिया। लेकिन इन सब में भी हनुमान जी का कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। उसके बाद बजरंगबली ने उड़ान भरी होगी और द्रोणागिरी पर्वत जा पहुंचे लेकिन हनुमान जी कोई वैद्य तो नहीं थे इसीलिए संजीवनी बूटी को पहचान नहीं सके और संजीवनी को खोजने के लिए वह काफी देर तक भटकते रहे होंगे। इसमें भी उनका कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। बूटी को ना पहचान पाने की वजह से हनुमान जी ने पूरा पर्वत ही उठा लिया और वापस लंका की ओर जाने लगे। लेकिन हनुमान जी के लिए एक और मुसीबत आ गई।

हुआ यह की जब पवन पुत्र पर्वत लिए अयोध्या के ऊपर से उड़ रहे थे तो श्री राम के भाई भरत ने सोचा कि यह कोई राक्षस अयोध्या के ऊपर से जा रहा है और उन्होंने बिना सोचे समझे महावीर बजरंगबली पर बाण चला दिया। बाण लगते ही वीर हनुमान श्री राम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे। हनुमान जी के मुंह से श्री राम का नाम सुनते ही भरत दंग रह गए और उन्होंने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने (हनुमान जी) ने उन्हें राम रावण युद्ध के बारे में बताया। लक्ष्मण के मूर्छित होने का पूरा किस्सा सुनाया तब सुनकर वह भी रोने लग गए और उनसे माफी मांगी| फिर हनुमानजी का उपचार किया गया और हनुमान जी वापस लंका की ओर ओर चलें। लेकिन इन सभी घटनाओं में भी बजरंगबली के कीमती समय का आधा घंटा फिर से खराब हो गया। अब हनुमान जी के सिर्फ उड़ने के समय की बात करें तो सिर्फ दो घंटे थे और इन्हीं दो घंटों में वह लंका से द्रोणागिरी पर्वत आए और वापस गए।

अब अगर हम उनके द्वारा तय की गई दूरी को देखें तो श्रीलंका और द्रोणागिरी पर्वत तक की दूरी लगभग “ 2500 किलोमीटर” की है यानी कि यह दूरी आने जाने दोनों तरफ की मिलाकर 5000 किलोमीटर बैठती है और बजरंगबली ने यही 5000 किलोमीटर की दूरी 2 घंटे में तय की। इस हिसाब से हनुमान जी के उड़ने की रफ्तार लगभग 2500 किलोमीटर प्रति घंटा की दर से निकलती है. तो इसकी तुलना अगर ध्वनी की रफ्तार से करें तो उसकी तुलना में हनुमानजी की गति लगभग 2 गुना ज्यादा बैठती है।

आधुनिक भारत के पास मौजूद रसिया से मंगवाए गए लड़ाकू विमान मिग 29 की रफ्तार 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है. अगर इसकी तुलना हनुमान जी की रफ्तार से करें तो यहां पर भी हनुमान जी की रफ्तार ज्यादा निकलती है यानी हनुमान जी आधुनिक भारत के पास मौजूद सबसे तेज लड़ाकू विमान से भी तेज उड़ते थे।

!!जय जय सियाराम!!