मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

लंका दहन हनुमान जी ने नहीं अभी तोह माता पारवती ने किया था क्योंकि हनुमान जी तोह केवल एक निमित मात्र थे


रामायण काल से कल्पो पूर्व की बात है एक समय  लक्ष्मी जी और विष्णु जी जब भगवान शिव-पार्वती से मिलने के लिए कैलाश पर पधारे. कैलाश के वातावरण में अत्यधिक शीतलता होने के कारण लक्ष्मी जी ठंड से ठिठुरने लगीं. क्योंकि कैलाश पर कोई महल भी नहीं था, जहां पर लक्ष्मी जी को थोड़ी राहत मिल पाती. लक्ष्मी ने पार्वती जी से व्यंग्य करते अथवा तंज कसते हुए कहा कि आप खुद एक राज कुमारी होते हुए इस तरह का जीवन कैसे व्यतीत कर सकती हैं क्योंकि की राजकुमारी का जीवन तोह इसके विपरित होता है ! उसके पास राजमहल होता है जहा सभी ऐश्वर्य और साधो सामान होता है   और जाते-जाते उन्होंने पार्वती और शिव जी को बैकुण्ठ आने का न्योता भी दिया.

मां लक्ष्मी के न्योते को स्वीकार करते हुए कुछ दिन बाद शिव और मां पार्वती एक साथ बैकुण्ठ धाम पहुंचे. बैकुण्ठ धाम के वैभव को देखकर पार्वती जी आश्चर्यचकित रह गईं. साथ ही उनके अंदर एक जलन वाली भावना भी  उत्पन गई. इसे देखने के बाद उनकी लालसा बढ़ गई कि उनके पास भी एक भव्य महल हो. जैसे ही मां पार्वती कैलाश पर पहुंची भगवान शिव से महल बनवाने का हठ करने लगीं.

उसी के बाद भगवान शिव ने पार्वती जी को भेंट करने के लिए कुबेर से कहलवा कर दुनिया का अद्वितीय महल बनवाने का कार्य सोप  .

लेकिन जब रावण की नज़र इस महल पर पड़ी तो, उसने सोचा कि इतना सुंदर और भव्य महल तो इस पूरे त्रिलोक में किसी के भी पास नहीं है. इसलिए अब यह महल मेरा होना चाहिए. सोने का महल पाने की इच्छा लेकर रावण ब्राह्मण का रूप धारण कर अपने इष्ट देव महादेव  के पास गया और भिक्षा में उनसे सोने के महल की मांग करने लगा.

भगवान शिव रावण को अपना सबसे बड़ा भक्त मानते थे . इसलिए भगवान शिव अच्छी तरह से जान गये कि उनका अत्यंत प्रिय भक्त रावण ब्राह्मण का रूप धारण कर उनसे महल की मांग कर रहा है. भगवान शिव को द्वार पर आए ब्राह्मण को खाली हाथ लौटाना धर्म विरुद्ध लगा, क्योंकि शास्त्रों में वर्णित है- आए हुए याचक को कभी भी खाली हाथ या भूखे नहीं जाने देना चाहिए एवं भूलकर भी अतिथि का अपमान कभी मत करो.


इसके बाद भोले शंकर ने खुशी-खुशी महल रावण को दान में दे दिया. जब ये बात मां पार्वती को पता चली, तो वो बेहद क्रोधित हो गईं. माता पार्वती को यह बात सहन न कर सकी कि उनके सोने का महल किसी और का कैसे हो सकता है? हालांकि, भगवान शिव ने मां पार्वती को मनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन मां पार्वती ने इसे अपने अपमान के रूप में ले लिया. इसलिए मां पार्वती ने प्रण लिया कि अगर यह सोने का महल मेरा नहीं हो सकता, तो इस त्रिलोक में किसी और का भी नहीं हो सकता.

बाद में यही सोने का महल रावण की लंका के नाम से जाना जाने लगा. मां पार्वती खुद अपने हाथों से इस महल को नष्ट करना चाहती थीं. इसलिए जब रामायण के पात्रों का चयन हो रहा था, तब भगवान शिव ने कहा था कि त्रेता युग में जब राम अवतार होगा, तो मैं उसमें हनुमान का रूप धारण करूंगा और सोने की लंका को नष्ट कर दूंगा. लेकिन मां पार्वती चाहती थीं वे खुद उसका नाश करें. इसलिए रामायण में जब सभी पात्रों का चयन हो गया और मां पार्वती की कोई भूमिका नहीं रही, जिससे वे अपने अपमान का बदला ले सकें तो भगवान शिव ने कहा कि आप अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेरी अर्थात हनुमान की पूंछ बन जाना. जिससे आप खुद उस लंका का दहन कर सकती हैं.

अंत में यही हुआ कि हनुमान जी ने सोने की लंका को अपनी पूंछ से जलाया. पूंछ के रूप में मां पार्वती थीं. इसलिए लंका दहन के बाद मां पार्वती के गुस्से को शांत करने के लिए हनुमान जी को अपनी पूंछ की अग्नि शांत करने के लिए सागर में जाना पड़ा.

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