सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

महादेव की पूजा में शंख क्यों वर्जित होता है



इसके पीछे एक पौराणिक कथा है – एक बार शंखचूड़ नाम का दैत्य  था जो दैत्यराज दंभ का पुत्र था | जब दैत्यराज दंभ ने भगवन विष्णु की कठोर तपस्या की और उनसे एक पराक्रमी पुत्र का वरदान माँगा   | कुछ समय बाद शंखचूड़ का जन्म हुआ | शंखचूड़ जन्म से ही बहुत पराक्रमी था और उसने पुष्कर में ब्रह्मा जी की तपस्या करके उनसे  वर मांगा कि वो कोई। भी देवता उसे मार न पाए  ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच दिया। साथ ही ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी और फिर वे अंतध्र्यान हो गए।

ब्रह्मा का वरदान पाकर उसने तीनो लोको पर विजय पा ली | देवताओ ने शंखचूड़ से दुखी  होकर भगवन विष्णु से मदद मांगी लेकिन विष्णु जी ने कहा इसका जन्म मेरे वरदान से हुआ है  मैं अपना दिया हुआ वरदान खंडित नही कर सकता  | तब देवताओ ने महादेव से प्राथना की, महादेव ने देवताओ को इससे मुक्ति दिलाने का निष्चय किया | लेकिन जब तक उसके पास  श्रीकृष्णकवच और तुलसी थी इसे करके  उसका वध करना  महादेव के लिए भी असम्भव  था ! तब महादेव ने विष्णु जी से सहायता मांगी  तो भगवन विष्णु ने ब्राह्मण का वेश धारण कर के शंखचूड़ से श्रीकृष्णकवच दान में मांग लिया | इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया।

अब न तो उसके पास कवच था और न तुलसी | अब महादेवने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख उत्पन हुआ  ! इस कारन भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा में संख बजाय जाता है और भगवान की ने उसका वध किया था इस लिए उनकी पूजा में शंख वर्जित होता  है!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें