सोमवार, 27 फ़रवरी 2017
महादेव की पूजा में शंख क्यों वर्जित होता है
रविवार, 26 फ़रवरी 2017
शिव तांडव स्त्रोत
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥
इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥
नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥
फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥
कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥
अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥
कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥
कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥
देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥
इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु में भक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥
शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017
राम नाम सत्य है
राम नाम सत्य है अर्थ है जो सत्य है वो केवल भगवान् राम का ही नाम है ! इस संसार में मनुष्य के शरीर का कोई अर्थ नहीं है क्युकी वो तोह नश्वर है एक दिन उसका अंत हो जाता है केवल एक राम का ही नाम है जो सदा रहेगा अर्थात यह मनुष्य शरीर मृत्यु के बाद उस राम में लीन हो जाती है ! यही परम् सत्य है!
इस राम नाम सत्य है का नाम लेने से यह सिद्ध हो जाता है के प्राणी अपने सांसारिक मोह माया से मुक्त हो गया है और अपने अंतिम सफर पर रवाना हो गया है!
इस राम नाम सत्य है का नाम लेने से यह सिद्ध हो जाता है के प्राणी अपने सांसारिक मोह माया से मुक्त हो गया है और अपने अंतिम सफर पर रवाना हो गया है और उसकी मंजिल अब सिर्फ भगवान् तक पहोचना है ! इस संसार से वो मुक्त हो चूका है!
हिन्दू धर्म के अनुसार राम नाम सत्य है एक मंत्र है जिसका जाप करने से मनुष्य को अपने बुरे कर्मो से मुक्ति मिलती है और यह देह अपने कर्मो के अनुसार एक दूसरा जन्म लेती है!
हिन्दू धर्म में कई धारणाए मिलती है जिसमे एक यह धरना भी है के इसको राम नाम का जाप करने से जिस मनुष्य की मृत्यु हुए है उसके परिजनों को शान्ती प्राप्त होती है और उन्हें यह अहसास होता है के राम नाम ही सत्य है इस संसार में बाकि जो है वो व्यर्थ है!
बुधवार, 22 फ़रवरी 2017
वो एक मात्र शक्ति जिनके तेज से यह समस्त संसार प्रकाशमान है
जिन्हें परिभाषित करना संभव ही नही है ! इस संसार के सभी तत्वों को इनसे पृथक कर उन्हें परिभाषित करना असम्भव होगा !
शनिवार, 18 फ़रवरी 2017
माता लक्ष्मी ज्ञान
माता लक्ष्मी त्रिदेवियों में से एक प्रमुख देवी हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर माता लक्ष्मी कृपा हो जाए वो व्यक्ति सदा सुख पाता है और भक्तो पर उनकी कृपा सदैव बनी रहे ! इस लिए माता ने कुछ नियम बनाए है
मेरी लालसा रखो लेकिन लोलुपता नहीं। लोलुपता में तुम वे कर्म करोगे जिसके कारण मैं तुम्हें विवश हो त्याग दूँगी।
1. जिन्हें मैं प्राप्त हो जाती हूँ उसे तत्काल बुद्धि विवेक के संजोकर रखने का प्रयास करना चाहिये। अक्सर मुझे प्राप्त कर प्राणी यह भूल जाता है। फिर उसका अहंकार एक दिन मुझसे दूर कर देता है।
2. कृपा बरसाने के बाद मैं तुम्हारी परीक्षा लेती रहती हूँ। तुम्हारे धन का दसांश मुझे दान और दुखियों की सेवा के रूप में वापस करना होगा।
3. धन के रूप में साक्षात् मैं वास करती हूँ। उसे अपवित्र प्रकार से रखना, अनुचित प्रकार से उड़ाना और अशुद्ध करना मेरा अपमान है।
4. मैं आई हूँ तो जाने के मार्ग भी खोजती रहती हूँ। कर्म यदि अच्छे नहीं रहे तो मुझे पाकर भी तुम दरिद्र रहोगे।
5. पूर्वजन्म के सुकर्मों के कारण इस जन्म में यदि मैं तुम्हें सुलभ हुई हों, तो मुझे विवश मत समझना। यदि इस जन्म के कर्म उचित न रहे तो मैं उस दिन तुम्हारा साथ छोडूंगी जिस दिन मेरी सबसे अधिक आवश्यकता होगी। दान-पुण्य और दया से हीन व्यक्ति का धन रखा रह जाता है।
शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017
जीवन अनमोल है और प्यार से बढ़कर है
ना जाने दुनियां में कितने लोग ऐसे है जो किसकी न किसी के प्यार में रोज़ मारे जाते है ! चाहे वो प्यार किसी लड़की से करते हो नौकरी से करते हो या कोई अपने आपको आमिर बनने की चाह से प्यार करते हो और कोई पेपर में अच्छे नंबर लानी की चाह रखते हो ! और जब ऐसे व्यक्ति अपने प्यार को हासिल नही कर पाते तोह उनको इसे चीज से आजाद होने का एक ही रास्ता सूझता है और वो है मौत ! और यह लोग इसे प्यार कहते है क्या यही प्यार का असली मतलब होता है !
बुधवार, 15 फ़रवरी 2017
महादेव बोलते है किसी को मिटाने का नहीं अभी तोह उसको पल्वित करना ही सही मार्ग है
महादेव बोलते है किसी को मिटाने का नहीं अभी तोह उसको पल्वित करना ही सही मार्ग है ! इसे लिए कैलाश में सिंह भी और बेल भी मूषक भी और सर्प भी किसी को किसका भय नही ! सभी सुख और शांति से अपना अपना धर्म निभाते आ रहे है ! कहीं कोइए वरचापस और प्रभुता का भय नही ! क्योंकि वरचापस तोह धर्म विरोधी है !
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017
लंका दहन हनुमान जी ने नहीं अभी तोह माता पारवती ने किया था क्योंकि हनुमान जी तोह केवल एक निमित मात्र थे
रामायण काल से कल्पो पूर्व की बात है एक समय लक्ष्मी जी और विष्णु जी जब भगवान शिव-पार्वती से मिलने के लिए कैलाश पर पधारे. कैलाश के वातावरण में अत्यधिक शीतलता होने के कारण लक्ष्मी जी ठंड से ठिठुरने लगीं. क्योंकि कैलाश पर कोई महल भी नहीं था, जहां पर लक्ष्मी जी को थोड़ी राहत मिल पाती. लक्ष्मी ने पार्वती जी से व्यंग्य करते अथवा तंज कसते हुए कहा कि आप खुद एक राज कुमारी होते हुए इस तरह का जीवन कैसे व्यतीत कर सकती हैं क्योंकि की राजकुमारी का जीवन तोह इसके विपरित होता है ! उसके पास राजमहल होता है जहा सभी ऐश्वर्य और साधो सामान होता है और जाते-जाते उन्होंने पार्वती और शिव जी को बैकुण्ठ आने का न्योता भी दिया.
मां लक्ष्मी के न्योते को स्वीकार करते हुए कुछ दिन बाद शिव और मां पार्वती एक साथ बैकुण्ठ धाम पहुंचे. बैकुण्ठ धाम के वैभव को देखकर पार्वती जी आश्चर्यचकित रह गईं. साथ ही उनके अंदर एक जलन वाली भावना भी उत्पन गई. इसे देखने के बाद उनकी लालसा बढ़ गई कि उनके पास भी एक भव्य महल हो. जैसे ही मां पार्वती कैलाश पर पहुंची भगवान शिव से महल बनवाने का हठ करने लगीं.
उसी के बाद भगवान शिव ने पार्वती जी को भेंट करने के लिए कुबेर से कहलवा कर दुनिया का अद्वितीय महल बनवाने का कार्य सोप .
लेकिन जब रावण की नज़र इस महल पर पड़ी तो, उसने सोचा कि इतना सुंदर और भव्य महल तो इस पूरे त्रिलोक में किसी के भी पास नहीं है. इसलिए अब यह महल मेरा होना चाहिए. सोने का महल पाने की इच्छा लेकर रावण ब्राह्मण का रूप धारण कर अपने इष्ट देव महादेव के पास गया और भिक्षा में उनसे सोने के महल की मांग करने लगा.
भगवान शिव रावण को अपना सबसे बड़ा भक्त मानते थे . इसलिए भगवान शिव अच्छी तरह से जान गये कि उनका अत्यंत प्रिय भक्त रावण ब्राह्मण का रूप धारण कर उनसे महल की मांग कर रहा है. भगवान शिव को द्वार पर आए ब्राह्मण को खाली हाथ लौटाना धर्म विरुद्ध लगा, क्योंकि शास्त्रों में वर्णित है- आए हुए याचक को कभी भी खाली हाथ या भूखे नहीं जाने देना चाहिए एवं भूलकर भी अतिथि का अपमान कभी मत करो.
इसके बाद भोले शंकर ने खुशी-खुशी महल रावण को दान में दे दिया. जब ये बात मां पार्वती को पता चली, तो वो बेहद क्रोधित हो गईं. माता पार्वती को यह बात सहन न कर सकी कि उनके सोने का महल किसी और का कैसे हो सकता है? हालांकि, भगवान शिव ने मां पार्वती को मनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन मां पार्वती ने इसे अपने अपमान के रूप में ले लिया. इसलिए मां पार्वती ने प्रण लिया कि अगर यह सोने का महल मेरा नहीं हो सकता, तो इस त्रिलोक में किसी और का भी नहीं हो सकता.
बाद में यही सोने का महल रावण की लंका के नाम से जाना जाने लगा. मां पार्वती खुद अपने हाथों से इस महल को नष्ट करना चाहती थीं. इसलिए जब रामायण के पात्रों का चयन हो रहा था, तब भगवान शिव ने कहा था कि त्रेता युग में जब राम अवतार होगा, तो मैं उसमें हनुमान का रूप धारण करूंगा और सोने की लंका को नष्ट कर दूंगा. लेकिन मां पार्वती चाहती थीं वे खुद उसका नाश करें. इसलिए रामायण में जब सभी पात्रों का चयन हो गया और मां पार्वती की कोई भूमिका नहीं रही, जिससे वे अपने अपमान का बदला ले सकें तो भगवान शिव ने कहा कि आप अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेरी अर्थात हनुमान की पूंछ बन जाना. जिससे आप खुद उस लंका का दहन कर सकती हैं.
अंत में यही हुआ कि हनुमान जी ने सोने की लंका को अपनी पूंछ से जलाया. पूंछ के रूप में मां पार्वती थीं. इसलिए लंका दहन के बाद मां पार्वती के गुस्से को शांत करने के लिए हनुमान जी को अपनी पूंछ की अग्नि शांत करने के लिए सागर में जाना पड़ा.
सोमवार, 13 फ़रवरी 2017
कर्तव्यों की पूर्ति
अपने कर्तव्यों की पूर्ति करना व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म होता है ! और हमारे धर्म के पालन हेतु महादेव का आश्रीवाद सदा हमारे साथ है ! किन्तु समरण रहे कर्म वो ही उचित होता है जिसका परिणाम और उद्देश्य दोनों उचित हो ! जिसे संसार को शती न पहोचे संसार में भय अस्थिरता उत्पन न हो !इसे लिए महादेव ने हमे अपना जीवन स्वत्रांत इच्छा से जीना का अधिकार दिया है किन्तु परिणाम के उत्तर दाई भी हम स्यम ही होंगे
शनिवार, 11 फ़रवरी 2017
क्यों शिव को असत्य बोलने वाले पसंद नहीं
शिव महापुराण के अनुसार जब माता सती और शिव अगस्त मुनि से कथा सुनकर कर लौट रहे थे। उसी दौरान भोलेनाथ ने देखा कि उनके आराध्यदेव भगवान राम माता सीता के वियोग में भटक रहे हैं। उन्हें देखने के बाद शिव ने उन्हें प्रणाम किया, मगर माता सती के मन में राम की परीक्षा लेने का विचार आया।
भोलेनाथ से आग्रह कर वे प्रभु राम की परीक्षा लेने पहुंचीं। लेकिन सती को देखते ही भगवान राम ने सती को माता का संबोधन देते हुए कहा कि आप यहां, भोलेनाथ कहां हैं?
सती के त्याग का एक कारण यह भी रहा कि राम ने सती को माता कहा था, इसलिए उन्होंने अपने आराध्य देव की माता को पत्नी रूप से त्याग कर दिया।
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017
अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख तीर्थस्थल है
यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है।चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है।
इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था।[4] आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।
अमरनाथ यात्रा
अमर नाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलमान और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल १४ किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।पहलगाम से अमरनाथ
पहलगाम जम्मू से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है।
चंदनबाड़ी से १४ किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से ११,१२० फुट की ऊँचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुँच कर ताजादम होते हैं। यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊँचाई क्रमश: १३,५०० फुट व १४,५०० फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहाँ पांच छोटी-छोटी सरिताएँ बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुँच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
बलटाल से अमरनाथ- जम्मू से बलटाल की दूरी ४०० किलोमीटर है। जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटक स्वागत केंद्र की बसें आसानी से मिल जाती हैं। बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं।
गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017
एक बार पार्वती ने शिवजी से पूछा-' प्रभु! लोग इतना कर्मकाण्ड करते हैं फिर भी इन्हें आस्था का लाभ क्यों नहीं मिलता?
शिवजी बोले-धार्मिक कर्मकाण्ड होने पर भी मनुष्य जीवन में जो बने आडम्बर छाया है; यहीं अनास्था है। लोग धार्मिकता का दिखावा करते हैं, उनके मन वैसे नहीं है।
शिवजी ने कहा माता पार्वती से की चोलो आज इन्ह सब की परीक्षा लेते है धरती पर जा कर ?
मां पार्वती ने सुन्दरी साध्वी पत्नी का व शिवजी ने कोढ़ी का रूप धारण किया। मन्दिर की सीढ़ियों के समीप वे पति को लेकर बैठ गयीं। दानदाता दर्शनार्थ आते रहे व रुककर कुछ पल पार्वती जी को देखकर आगे बढ़ जाते। बेचारे शिवजी को गिनें चुनें कुछ सिक्के मिल पाये। कुछ दान दाताओं ने तो संकेत भी किया कि कहाँ इस कोढ़ी पति के साथ बैठी हो। इन्हें छोड दो। पार्वतीजी सहन नहीं कर पायीं, बोलीं-! प्रभु! लौट चलिए अब कैलाश पर। सहन नहीं होता इन पाखण्डियों के यह कुत्सित स्वरूप।
इतने में ही एक दीन-हीन भक्त आया, पार्वतीजी के चरण छुए और बोला- माँ! आप धन्य हैं जो पति परायण हो इनकी सेवा में लगी है। आइये! मैं इनके घावों को धो दूँ। फिर मेरे पास जो भी कुछ सतू आदि हैं, आप हम साथ-साथ खा लें। ब्राह्मण यात्री ने घावों पर पट्टी बाँधी, सतू थमा पुन: प्रणाम, कर ज्योंही आगे बढ़ा वैसे ही शिवजी ने कहा-' यही है भार्ये एकमात्र भक्त, जिसने मन्दिर में प्रवेश से पूर्व निष्कपट भाव से सेवा धर्म को प्रधानता दी।
ऐसे लोग गिने चुने हैं। शेष तो सब आत्म प्रवंचना भर करते है व अवगति को प्राप्त होते हैं। शिव-पार्वती ने अपने वास्तविक स्वरूप में उस भक्त को दर्शन दिये। परमगति का अनुदान दिया व वापस लौट गये।
बुधवार, 8 फ़रवरी 2017
शिव पुराण में भगवान विष्णु के विषय में सर्वविदित तथ्य
विष्णु जी की कांति इन्द्रनील मणि के समान श्याम है। अपने व्यापक स्वरूप के कारण ही उन्हें शिवजी से विष्णु नाम मिला। विष्णु जी का अस्त्र सुदर्शन चक्र है। पीले वस्त्र धारण करने के कारण इन्हें पीतांबर भी कहा जाता है।
सोमवार, 6 फ़रवरी 2017
शिवोहम् =में(आत्मा)ही शिव हु।
नित्योहम= में(आत्मा)नित्य हूँ।मे कल भी था,आज भी हु और कल भी रहूँगा!
शुद्धोहम= में ही विकार रहित परम पवित्र हूँ।
बुद्धोहम= में ही बुद्ध स्वरुप अखण्ड,अटल,निश्छल हूँ।
मुक्तोहम्=में सभी बंधनो से परे , सदैव ही मुक्त हूँ।
शिवोहम् शिवोहम् शिवा स्वरूपम्।
नित्योहम् शुद्धोहम् बुद्धोहम् मुक्तोहम्।
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय......|
शिव का अर्थ है कल्याण...
शिव अजन्मा है, शिव अनंत है...
शिव ही गुरु है, शिव ही ज्ञान है..
शिव संगीत है, शिव नृत्य है...
शिव मे है कृष्ण और कृष्ण मे शिव है...
शिव ही से है योग और योग तो शिव है..
शिव भजे श्री राम को और राम में तो शिव ही शिव है...
शिव है आप के भीतर और मेरी तो सांसो में शिव है...
नमः शिवाय...
कलियुग केवल नाम अधारा ,
सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा।
सुमिर सुमिर नर पावहि पारा।
हर सांस में हो सुमिरन तेरा ,
यूं बीत जाए जीवन मेरा।
हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!
हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!
जब चिंता कोई सताये --सिमरन करो !!
जब व्याकुल मन घबराये --सिमरन करो !!
कोई राह नजर न आये --सिमरन करो !!
अगर बात समझ में न आये --सिमरन करो !!
रविवार, 5 फ़रवरी 2017
गीता सार: संक्षिप्त मे गीता रहस्य
गीता मे लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म के लिए नही है, इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमे आध्यात्म और ईश्वर के बीच जो गहरा संबंध है उसके बारे मे विस्तार से लिखा गया है। गीता मे धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे मे उपदेश दिया गया है।
बुधवार, 1 फ़रवरी 2017
अनजाने कर्म का फल
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर महल के आँगन में भोजन करा रहे थे ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहे थे ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई । किसी को कुछ पता नहीं चला ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की समझ के बहार रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में अनजानेपन में चला हो जाता हैं ....